05-Sep-2014 08:38 AM
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9 माह पहले ही 15 अक्टूबर को मध्यप्रदेश के दतिया जिले स्थित रतनगढ़ में माता के भक्तों पर प्रशासन की लापरवाही का कहर बरपा था और 115 जानें गई थीं। 25 अगस्त को सतना जिले के
चित्रकूट के कामदगिरी में कामतानाथ मंदिर के पास एक बार फिर भगदड़ मची और 10 लोगोंं की मृत्यु हो गई जिनमें 5 महिलाएं भी हैं। यह दुखद हादसा भी सुबह के समय घटा जब श्रद्धालु स्नान-ध्यान करके दर्शनों के लिए परिक्रमा कर रहे थे।
इस मंदिर का रास्ता बहुत संकरा है। सोमवती अमावस्या होने के कारण यहां भारी भीड़ रहती है। देखा जाए तो जहां पर भारी भीड़ की संभावना हो वहां पहले से ही बेरिकेट्स आदि लगाकर भीड़ को नियंत्रित करने तथा लाईन में चलने का निर्देश दिया जाना चाहिए पर पुलिस उतनी सतर्क नहीं है। रतनगढ़ हादसे से भी कोई सबक नहीं लिया गया। बताया गया कि किसी श्रद्धालु का पैर दूसरे के ऊपर पड़ गया था जिसके चलते यह हादसा हुआ। अचानक मची भगदड़ में चीख पुकार के बीच 10 लोग दब गए और 25 बुरी तरह घायल हो गए। हमेशा की तरह इस घटना पर भी जांच-पड़ताल के बाद लीपा-पोती कर दी जाएगी। रतनगढ़ में दो-दो हादसे और धाराजी मेें पानी की धार में 70 लोगों की जल समाधि के बाद भी प्रशासन चेता नहीं है। इतनी सारी कमेटियां बनी हैं और उन्होंने अपनी अनुशंसा भी की है। कहा गया है कि जिले के कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, एसडीएम और एसडीओपी को अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। लेकिन हर बार मौत को आमंत्रण दिया जाता है। कामदगिरी में भी न बेरिकेट्स थे न दर्शन करके लौट रहे और जा रहे श्रद्धालुओंं के लिए प्रथक व्यवस्था थी न ही महिला-पुरुषों की अलग-अलग लाईनेंं लगाई गई थीं। पुलिस की लापरवाही के कारण सब भेड़ चाल में चल रहे थे। जिम्मेदार अधिकारियों ने भी स्वविवेक सेे कोई निर्णय नहीं लिया।
खानापूर्ति की कार्रवाई
आठ साल पहले हुए धाराजी हादसे में दोषी अफसरों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक गिरिजाशंकर शर्मा दो बार यह मामला विधानसभा में उठा चुके हैं। बजट सत्र में गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने सदन को आश्वस्त किया था कि दोषी अफसरों के खिलाफ जल्दी ही अभियोजन की स्वीकृति दी जाएगी, लेकिन अभी तक धारा 197 के तहत अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी। इन अफसरों पर कार्रवाई का मामला भी सामान्य प्रशासन और राजस्व विभाग में ही अटका है। केवल इतना भर किया गया है कि इन अफसरों की या तो एक वेतन वृद्धि रोक ली गई और किसी को तो बस चेतावनी भर देकर छोड़ दिया गया। इन अफसरों को महत्वपूर्ण पदों से हटाया तक नहीं गया है। जब इस मामले में हाईकोर्ट ने निर्देश जारी किए तब आरोपी अफसरों के खिलाफ धारा 304-ए का प्रकरण दर्ज किया गया। इस मामले में गृहमंत्री गुप्ता ने सदन को बताया था कि चूंकि प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए निर्देशों के मुताबिक कार्रवाई की जा रही है।
जानलेवा हादसे
अक्टूबर 15, 2013 : रतनगढ़ माता मंदिर में भगदड़ से 115 लोगों की मृत्यु हो गई।
अक्टूबर 20, 2012 : मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के सलकनपुर मंदिर में शनिवार सुबह सीढिय़ों पर अचानक भगदड़ मच जाने से एक बच्ची सहित तीन महिलाओं की दबकर मौत हो गई और 35 अन्य दर्शनार्थी घायल हो गए।
7 अप्रैल 2005 धाराजी में अमावस्या के मौके पर नर्मदा नदी में स्नान करने पहुंचे 70 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। इंदिरा सागर डेम से पानी छोड़े जाने के बाद नर्मदा का जलस्तर तेजी से बढऩे लगा और देखते ही देखते सैंकड़ों लोग नदी में बह गए।
2006 में भी इसी पुल पर भगदड़ मची थी, उस समय 50 के करीब श्रद्धालु मारे गए थे।
27 मार्च, 2008 मध्यप्रदेश के करीला में सीता मंदिर में भगदड़, 8 की मौत और 12 घायल।
14 जनवरी, 2012 मध्यप्रदेश में जावरा के निकट हुसैन टेकरी में अंगारों पर चलने की भगदड़ में दम घुटने से 12 श्रद्घालुओं की मौत।
24 जुलाई 2003 को मध्य प्रदेश के भिंड जिले के एक थियेटर में आग लगने से 8 लोग मर गए थे और अनेक घायल हुए थे।
15 जुलाई 1996 को सोमवती अमावस्या के अवसर पर उज्जैन में मची भगदड़ के कारण 24 तीर्थ यात्री मारे गए थे।
1991 में, उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में जमा 200,000 लोगों की भीड़ में भगदड़ से 37 लोग मारे गए और 40 घायल हो गए।
मध्य प्रदेश में जुलाई 1993 में एक त्योहार के दौरान मची भगदड़ में कम से कम 20 लोग मारे गए और 100 घायल हो गए।
- Dharmendra Singh kathooriya