05-Sep-2014 08:04 AM
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15 अगस्त 2014 को 15 अगस्त 1989 के बाद पहली बार किसी ऐसे प्रधानमंंत्री ने देश को संबोधित किया जिसकी सरकार बैसाखियों पर नहीं टिकी थी। जाहिर है पूर्ण बहुमत वाले प्रधानमंत्री के भाषण

में जो आग जो तेज और जो संकल्प होना चाहिए वह मोदी के भाषण में था। उन्हें विश्वास था कि वे जो कुछ भी बोलेंगे उसके लिए सहयोगी दलों की दहलीज पर मत्था टेकने नहीं जाना पड़ेगा। इसलिए मोदी बोले और देश की जनता जो लंबे समय से प्रधानमंत्रियों को लिखा हुआ भाषण भावहीन, प्राणहीन चेहरे से पढ़ते हुए देख रही थी वह जनता मोदी का भाषण सुन प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकी।
मोदी ने घोषणाओं की बजाए जनता के दायित्वों का बोध कराना उचित समझा और अपने मसालेदार भाषण में हर तरह का तड़का लगाया। उन्होंने अत्यधिक गरीब लोगों के लिए बैंक खाता खोलने और उनके लिए 1,00,000 रुपये के बीमा योजना की घोषणा की। जन धन योजना के तहत गरीब लोगों का एक लाख रुपये का बीमा कराया जाएगा। नरेंद्र मोदी ने विश्वभर के निवेशकों से अपील की कि वे भारत विनिर्माण का केंद्र बनाएं। सामान कहीं भी बेचें, लेकिन इसका उत्पादन भारत में करें। हमारे पास कौशल और योग्यता है। हमारा सपना होना चाहिए कि हम विश्वभर में कह सकें, मेड इन इंडिया। मोदी ने देश की प्रगति के लिए भारतीयों से जातिवाद और सांप्रदायिकता के जहर को छोडऩे और एकता को गले लगाने की अपील की। यह शर्म की बात है कि आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी जातिवादी और सांप्रदायिक राजनीति जारी है। उन्होंने भावुक स्वर में कहा कि यह कब तक चलता रहेगा। बहुत लड़ाई लड़ ली, बहुत लोगों की जानें गईं, पीछे मुड़कर देखिए, क्या किसी को कुछ मिला? मोदी ने कहा कि सालों से चल रहे रक्तपात ने भारत माता को केवल गहरे घाव दिए हैं।
कभी-कभी लगता है कि नपे-तुले भाषणों के बदले उनके भाषण एक साथ इतने सारे सपने दिखाते हैं जिनका पूरा होना असंभव-सा लगता है। गांवों में शौचालय बनाने और ब्रॉडबैंड व्यवस्था चालू करने के बारे में एक ही सांस में बात करना कुछ ऐसा ही लगता है। लेकिन जैसा मोदी ने कहा, यह इंटरनेट संपर्क व्यवस्था सिर्फ नगरों के लिए नहीं उन गांवों के लिए चाहिए जो आज भी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए तरसते हैं। वे टेक्नोलॉजी को ग्राम विकास के लिए इस्तेमाल कराना चाहते हैं। जो देश एक साथ कई कालखंडों में जी रहा हो, जहां कुछ क्षेत्र और कुछ वर्ग आज भी बैलगाड़ी युग से आगे नहीं जा पाए हैं, जहां औरतों को अंधेरे की प्रतीक्षा होती है ताकि खुले मैदान में भी अंधकार उनका परदा बन सके, वहां टेक्नोलॉजी के साथ शौचालय की बात तो करनी ही होगी। इसलिए शौचालय, ब्रॉडबैंड संपर्क, स्वास्थ्य सुविधाएं और प्राथमिक शिक्षा अलग-अलग बातें नहीं हैं, आपस में जुड़ी हुई हैं। वायदे महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि लोग प्रधानमंत्री से इसकी उम्मीद करते हैं। कुछ वायदे ऐसे थे जो आम आदमी के लिए सहज रूप से ग्राह्य नहीं रहे होंगे, लेकिन कुछ उसके दैनिक जीवन से जुड़े हुए थे। नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि विश्व के संपन्न सैलानी भारत भ्रमण करने आएं। लेकिन वे यह भी जानते हैं कि हमारे ऐतिहासिक नगरों में भी सफाई की इतनी हालत खराब है कि विदेशी सैलानी की विरक्ति का यह एक बड़ा कारण बन गया है। देश के नगरों-गांवों से गंदगी समाप्त करने के लिए मोदी ने भावात्मक लक्ष्य रखा है- गांधीजी की 150वीं जयंती के अवसर पर हम उन्हें स्वच्छ भारत की भेंट दें क्योंकि उनको सफाई बहुत पसंद थी। सत्ता संभालते ही मोदी ने अपने मंत्रियों और नौकरशाहों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने का अभियान चलाया। लाल किले के समारोह में अधिकारियों को शामिल रहने का आदेश जारी करते हुए उन्होंने इसी भावना को व्यक्त किया।
लेकिन इस बार प्रधानमंत्री ने देश के लगभग आठ सौ सांसदों के सामने भी एक चुनौती पेश की। सांसदों का काम कानून बनाना, नीतियों की समीक्षा करना और सरकार को सचेत करना है। लेकिन वे लाखों मतदाताओं के प्रतिनिधि भी होते हैं। क्या उन्हें मतदाताओं के बीच जाकर कुछ व्यावहारिक, कुछ रचनात्मक करने की आवश्यकता नहीं है? सांसदों को एक निश्चित राशि विकास में व्यय करने का अधिकार दिया गया है, लेकिन ये कार्य वे स्वयं नहीं करते, प्रशासन उनकी ओर से करता है।
प्रधानमंत्री ने सुझाया है कि हर सांसद किसी भी एक गांव को चुन कर उसके सर्वांगीण विकास का उत्तरदायित्व ले। यह चुनौती अगर राज्यों में विधायक भी लें तो ग्रामीण विकास का एक व्यापक अभियान आरंभ होगा। प्रधानमंत्री की कुछ बातें बहुत लोगों के सिर के ऊपर से गुजर गई होंगी। लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए बुनियादी ढांचा सुधारना होगा ताकि बड़े उद्योगपतियों में यहां पैसा लगाने की रुचि जागे। बिजली चाहिए, सड़कें चाहिए, संचार व्यवस्था चाहिए, कुशल प्रशासन चाहिए और व्यावहारिक योजना चाहिए। इसीलिए प्रधानमंत्री ने योजना आयोग के बदले नई संस्था के विकास की बात कही है। आज के दौर में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें निजी व सरकारी दोनों क्षेत्रों को संभालने की क्षमता हो।
-TP Singh & Sanjay shukla