कांग्रेसी मुख्यमंत्री दहशत में क्यों हैं?
05-Sep-2014 07:48 AM 1234765

पहले हुड्डा हूट हुए उसके बाद झारखंड के मुख्यमंत्री फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री चव्हाण मंच पर साथ आने से पीछे हट गए उधर झारखंड में प्रवेश करने पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को झारखंड मुक्ती मोर्चा के कार्यकर्ताओंं ने काले झंडे दिखाए। हूटिंग का यह युद्ध जारी है। बड़े-बड़े महारथी मैदान में हैं। भाजपा जश्र मना रही है कि उसकी लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है उधर कांग्रेस के कई मुख्यमंत्री सकते में हैं जो घोषणा कर चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर नहीं आएंगे। राजनीतिक दलों के नैतिक पतन की यह पराकाष्ठा है। भाजपा का जश्र में डूबना तो और भी ज्यादा चिंतनीय और निंदनीय है। भाजपा ने चुनाव जीता है लेकिन राज्यसभा में अभी भी उसकी संख्या दयनीय है। कई राज्य ऐसे हैं जहां उसकी मौजूदगी शून्य के करीब है। एक लंबी मंजिल भाजपा को तय करना है यह बात अवश्य है कि उसके वोट प्रतिशत में अच्छा खासा इजाफा हुआ है लेकिन इस लोकप्रियता का सबसे बड़ा श्रेय नरेंद्र मोदी को ही दिया जा सकता है। कभी अटल बिहारी और आडवाणी व्यक्ति के रूप में पार्टी से ऊपर उठ गए थे आज नरेंद्र मोदी पार्टी से बड़ा कद रखते हैं। इससे फायदा तो मिल सकता है लेकिन यह फायदा स्थायी नहीं होता। मोदी की लोकप्रियता का सूचकांक भी देर सवेर गिर ही जाएगा तब भाजपा क्या करेगी? यह चिंतन जरूरी है। मात्र जीतना ही नहीं उस विजय को लंबे समय तक टिकाऊ बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है। यदि भाजपा में फीलगुड इसी अंदाज में बढ़ता रहा तो पांच साल बाद वही हालात होंगे जो 2004 में हुए थे। मीडिया में टीआरपी का खेल चल रहा है। आज मोदी हैं तो कल कोई और है। मीडिया की नजरों से ओझल होने में टाइम नहीं लगता इसलिए जनता की नजरों मेें बने रहने के लिए भाजपा कुछ कर दिखाए तो ज्यादा उचित होगा। किराए के हूटरों से चुने हुए मुख्यमंत्रियों को हूट कराना कोई बड़ी बात नहीं है। आज वे हैं कल आप हो सकते हैं।
लेकिन कांग्रेस का कायरपन ज्यादा चिंतनीय है। कांगे्रस के मुख्यमंत्रियों को समझना चाहिए कि मोदी जिस मंच पर होते हंै उस मंच पर जनता भाजपा के दिग्गज नेताओं लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, अरूण जेटली, मुरली मनोहर जोशी आदि और शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह, मनोहर पर्रिकर जैसे तमाम मुख्यमंत्रियों को सुनने से भी इनकार कर देती है। फर्क इतना है कि वहां वे हूटिंग नहीं करते किंतु मोदी-मोदी चिल्लाकर बाकी नेताओं को यह अहसास तो करा ही देते हैं कि वे केवल मोदी को सुनने आए हैं। इसीलिए कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों का शुतुरमुर्गी आचरण स्वीकार्य नहीं कहा जा सकता बल्कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सीतारमैया (सिद्धारमैया) की तारीफ करनी चाहिए जिन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल होना प्रोटोकाल का तकाजा है और वे अवश्य शामिल होंगे। प्रधानमंत्री देश का चुना हुआ प्रतिनिधि है वह जनता के द्वारा उस महत्वपूर्ण पद पर भेजा गया है। प्रधानमंत्री का बहिष्कार करके जनमत का अपमान नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि कांगे्रसी मुख्यमंत्रियों को यह आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है कि उनकी लोकप्रियता इतनी क्यों कम हो गई।
आगामी कुछ माह के भीतर महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली समेत तमाम राज्यों में चुनाव होने वाले हैं जहां भाजपा के लिए कांग्रेस से ज्यादा बड़ी चुनौती है। इन राज्यों के चुनावी परिणाम भाजपा की राज्यसभा मेें प्रभावशीलता और संख्या दोनों को प्रभावित करेंगे। भाजपा महत्वपूर्ण विधेयकों पर हर बार संयुक्त सत्र में फैसला नहीं करवा सकती। उसे सरकार सही तरीके से ही चलाना पड़ेगा। राज्यसभा में बहुमत के लिए बिहार, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश की विधानसभाओं में भाजपा को ज्यादा से ज्यादा सीटें लाना जरूरी है। हूटरों से काडर मजबूत नहीं होता उसके लिए समर्पित कार्यकर्ता चाहिए और जो समर्पित होगा वह हूटिंग जैसा घटिया काम नहीं करेगा। हूटिंग को जनता के रूख की गांरटी मानना भी गलतफहमी है। यह सत्य है कि मोदी लहर का असर अभी भी पर्याप्त है पर नादानी में इसका फायदा उठाने से कहीं भाजपा चूक न जाए। जहां तक कांग्रेेस का प्रश्र है कांग्रेस को इस हरकत का जबाव  चुनाव जीतकर देना चाहिए। उत्तराखंड के उपचुनाव में कांग्रेस जीतने में कामयाब रही। यह कामयाबी बाकी चुनावों में क्यों नहीं दोहराई जा सकती। जब आप कोई बड़ी लड़ाई हारते हैं तो आत्ममंथन का समय मिलता है। कांगे्रस लोकसभा चुनाव की पराजय के बाद ज्यादा संगठित और मजबूत बन सकती है। कांगे्रस को इसका फायदा उठाना चाहिए।

 

ritendra Mathur

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