19-Feb-2013 11:06 AM
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मध्यप्रदेश काली कमाई के कुबेरों का स्वर्ग बनता जा रहा है। पिछले दो वर्ष के दौरान ही कई ऐसे अधिकारियों, कर्मचारियों के घर छापे पड़े हैं जिनकी संपत्ति अरबों, खरबों तक पहुंच चुकी है और विभाग ने भी करीब 13 सौ करोड़ रुपए की काली कमाई बरामद की है। प्रदेश में 83 अधिकारियों और बाबुओं के यहां लोकायुक्त पुलिस ने छापेमारी की कार्रवाई की है। यह कार्रवाई बदस्तूर जारी है। हाल ही में आईएफएस अधिकारी व मुख्य वन संरक्षक बीके सिंह के घर लगभग 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति भोपाल और उज्जैन में बरामद हुई। लोकायुक्त पुलिस ने सिंह के कई ठिकानों पर छापा मारा और लंबे समय तक चली कार्रवाई में परत-दर-परत जो कहानी सामने आई उससे पता चला कि सिंह ने अपनी 25 वर्षीय नौकरी में तनख्वाह तो कुल 75 लाख पाई, लेकिन उनके पास 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति जमा हो गई। संपत्ति जमा करने का यह खेल लंबे समय से चल रहा था और इसमें अब वनविभाग में पनपते भ्रष्टाचारकी गंध भी समा गई है। एक मामूली से अफसर सिंह के पास लाखों रुपए नगद मिले हैं। जिस वक्त छापा पड़ा वे 7 लाख रुपए नगद, रिवाल्वर और संपत्ति के कागज लेकर भागने लगे लेकिन टीम के सदस्यों ने उन्हें गेट से कूदकर पकड़ लिया। सिंह के पास

भोपाल, सीहोर रोड पर दो करोड़ रुपए का फार्म हाउस है। चूना भट्टी स्थित जानकी नगर में 1 करोड़ रुपए का बंग्ला है। भोपाल के दिपाड़ी में 70 लाख रुपए की जमीन है। भोपाल के ही निकट एक अन्य जगह पर 50 लाख रुपए की 8 बीघा जमीन है, सीहोर में एक करोड़ रुपए की जमीन है, एक दर्जन से अधिक बैंक खाते हैं, फिक्स डिपॉजिट है, शेयर हैं, म्यूचुअल फंड है उसके बाद उत्तरप्रदेश में थ्री स्टार होटले, पेट्रोलपंप, 200 बीघा जमीन, 50 लाख रुपए का पैतृक मकान, मैरिज गार्डन, बंगला सहित कई ऐसी संपत्तियां हैं जो एक मामूली से अफसर के रुतबे के हिसाब से बहुत अधिक हंै। 1987 बैच के आईएफएस अफसर डॉ. सिंंह भोपाल, छिंदवाड़ा, सीहोर, होशंगाबाद के बाद अब उज्जैन में पदस्थ थे। टीम को मिले रिकार्ड से यह भी पता चला है कि सिंह ने गौतम इंस्फ्रास्ट्रेक्चर नाम से कंपनी बना रखी है। जिसमें करोड़ों का निवेश किया गया है। एक मुख्य वनसंरक्षक होते हुए इतनी अधिक दौलत जोडऩा संदेहास्पद होने के साथ-साथ सरकार की लापरवाही का नतीजा भी है। सरकार सिंह के धनवान होने का इंतजार करती रही और बाद में लोकायुक्त पुलिस ने उनके यहां छापा मारा। हालांकि यह सच है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जिस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ फ्री-हेंड देकर रखा है उससे भ्रष्ट अधिकारियों में खौफ व्याप्त है। किंतु इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सिंह को बचाने की भरसक कोशिश की गई थी। बाद में जब यह मामला मीडिया में उछला तो सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया। उससे पहले उन्हें उज्जैन से हटाकर लघु वनोपज संघ भोपाल में कार्यपालक निदेशक बना दिया गया था। जिस पर कई सवाल खड़े हुए थे। लेकिन धन के मिलने का सिलसिला यहीं तक नहीं रुका। लोकायुक्त पुलिस का छापा बैरागढ़ स्थित एक विद्युत वितरण कंपनी के सीएमडी कार्यालय के अर्जुन लालवानी नाम के क्लर्क के यहां पड़ा तो सबको बहुत आश्चर्य हुआ। एक मामूली से क्लर्क के यहां 25 करोड़ रुपए की संपत्ति के दस्तावेज हैरान करने वाले थे। इस क्लर्क के पास बारह दुकानें, 4 फ्लेट हैं, दो स्थानों पर भूमि है, दो गैरेज हैं, 4 प्लाट हैं, सौ से अधिक प्रकार के जेवर हैं और 22 परिसंपत्तियों में उसका निवेश है। बैरागढ़ में एक कामर्शियल काम्पलेक्स है। लाखों की एफडीआर है, जमीनें हैं। पिछले दो साल में जो भी छापे पड़े हैं उनमें अधिकांश मोटी कमाई वाले अफसर और कर्मचारी पकड़े गए हैं। वर्ष 2011 में 37 छापों में 70 करोड़ रुपए की संपत्ति पकड़ाई थी। वर्ष 2012 में 86 छापों में 113.44 करोड़ रुपए की संपत्ति बरामद हुई है और अभी वर्ष 2013 में आगे क्या होने वाला है यह किसी को पता नहीं है। लेकिन जिस तरह से यह कार्रवाई की जा रही है उससे साफ है कि आने वाले दिनों में कुछ और नाम भी सामने आएंगे।
मध्यप्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचार से अर्जित काली कमाई को जब्त करने के लिहाज से मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय अधिनियम 2011Ó बनाया हुआ है। इस कानून को लेकर प्रचार किया गया था कि इसके दायरे में सरपंच से लेकर मुख्यमंत्री और चपरासी से लेकर प्रमुख सचिव हैं। सेवानिवृत्त अधिकारियों, पूर्व जन-प्रतिनिधियों और मंत्रियों पर भी इसका शिकंजा कसेगा। इस कानून से सजा प्राप्त लोकसेवक फैसले की अपील केवल उच्च न्यायालय में कर सकेंगे। इसमें यह भी प्रावधान है कि भ्रष्ट तरीकों से कमाई गई संपत्ति को सरकार जब्त कर लेगी और जब्त भवनों में सरकारी विद्यालय व कार्यालय खोले जाएंगे। लेकिन यह कानून हाथी के दिखाने के दांत सबित हुआ। इसे वजूद में आए करीब डेढ़ साल हो चुका है और इस दौरान व इससे पहले भ्रष्टाचारियों की अरबों की काली कमाई का खुलासा हो चुका है, लेकिन ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है कि किसी भ्रष्टाचारी की संपत्ति जब्त कर उसमें बिहार की तर्ज पर पाठशाला खोली गई हो? इसके उलट अब तो यह महसूस हो रहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक ज्यादातर कानून व संस्थाएं आम आदमी पर बड़ा बोझ बन रही हैं। जिस बिजली-बाबू के घर से 42 करोड़ की संपत्ति बरामद हुई है। जाहिर है यह बाबू और बिजली विभाग के अधिकारी मिलीभगत से काली कमाई करने में लगे थे। एक किसान को तो बिजली न मिलने के बावजूद बिजली चोरी का आरोपी बनाकर उस पर मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है, लेकिन बाबू के यहां से करोड़ों की चोरी मिलने के बावजूद उसे तत्काल जमानत मिल जाती है।
भोपाल से राजेश बोरकर के साथ
उज्जैन से श्याम सिंह सिकरवार