19-Feb-2013 11:03 AM
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ज्यादा दिन नहीं बीते जब मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में एक मासूम बच्ची के साथ उसके सौतेले माता-पिता द्वारा दरिंदगी और हत्या के बाद सारा शहर सड़कों पर उतर आया था। उस समय यह कहा गया कि यह घटना घर के भीतर घटी जहां पुलिस की दखलंदाजी नहीं होती। लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जब 4 फरवरी को गृहमंत्री निवास के पास एक आठ वर्षीय बच्ची काजल धूरिया का क्षत-विक्षत शव मिला तो प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया। दिल्ली को देश की सबसे असुरक्षित राजधानी महिलाओं के हिसाब से माना जाता है, लेकिन इस घटना के बाद लगा कि यह खिताब भोपाल शहर को मिलने वाला है। क्योंकि पिछले दिनों में ऐसी कई घटनाएं हुई है जिनमें महिलाओं के साथ अत्याचार बढ़े हैं।
मध्यप्रदेश में महिलाओं की स्थिति अन्य प्रदेशों की अपेक्षा बेहतर मानी जाती थी खासकर पंचायती राज्य में बराबरी की हिस्सेदारी के बाद उनकी हैसियत में गुणात्मक सुधार दर्ज किया गया था, लेकिन हाल ही में बलात्कार सहित तमाम घटनाओं के बढ़ते आंकड़ों ने महिलाओं की दृष्टि से प्रदेश की उपलब्धियों पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। यह ऐसे समय में हुआ है जब प्रदेश में लाड़ली लक्ष्मी योजना सहित तमाम योजनाएं महिलाओं के उन्नयन और कन्या भू्रण हत्या जैसे जघन्य सामाजिक अपराधों को रोकने के लिए की जा रही हैं। गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता के निवास के पास जिस बच्ची का शव मिला उसे एक निकटस्थ व्यक्ति ने ही अपनी हवश का शिकार बनाकर उसके शव के साथ पाश्विक कृत्य कराएं डाला था। शहर के बीचों-बीच पुलिस थाने से कुछ ही दूरी पर यह दर्दनाक हादसा घट गया और किसी को भनक तक नहीं लगी। लोगों को शव का पता भी उस वक्त चला जब एक कुत्ते को बच्ची का पैर मुंह में दबाए देखा गया। इससे हालात का अंदाजा स्वत: ही लगाया जा सकता है। राजधानी में ही एक लड़की ने छेड़छाड़ से तंग आकर तीन मंजिला बिल्डिंग से छलांग लगा दी थी। महिलाओं की असुरक्षा का आलम भोपाल में यह है तो बाकी प्रदेश में क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। कुछ समय पहले एक आंकड़ा सामने आया था कि मध्यप्रदेश में वर्ष 2012 में ही महिलाओं पर अत्याचार के 4606 मामले दर्ज किए गए। उसके बाद के आंकड़े और भी भयानक होंगे। उमरिया जिले में एक राष्ट्रीय उद्यान में स्थित सत्तारूढ़ दल के विधायक के भाई के रिसार्ट में एक विदेशी युवती के साथ दुष्कर्म का मामला भी जनवरी माह में सामने आया था। भिंड शहर के पुलिस नियंत्रण कक्ष प्रभारी एएसआई एमएल शर्मा को एक विधवा आरक्षक के साथ छेड़छाड़ और अश्लील हरकत के आरोप में निलंबित भी किया गया था। इन घटनाओं से यह पता चलता है कि महिलाओं के प्रति न ही पुलिस संवेदनशील है और न ही राजनीतिज्ञ सभी के हाथ महिलाओं के खून से रंगे हुए हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में लगातार तीसरे वर्ष सर्वाधिक बलात्कार की घटनाएं हुई है। वर्ष 2008 में 2937 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुईं और ऑकड़ा 2009 में 2998 तथा 2010 में 3135 तक पहुंच गया अर्थात मध्यप्रदेश में हर दिन लगभग 8 महिलाए बलात्कार की शिकार हो रही है। मध्यप्रदेश में घरेलु हिंसा के मामलों में भी स्थिति गंभीर है। वर्ष 2010 में 3756 महिलाऐं घरेलू हिंसा का शिकार हुई अर्थात प्रदेश में हर दिन 10 महिलाओं को उनके रिश्तेदारों द्वारा प्रताडि़त किया जा रहा है। मध्यप्रदेश सरकार की लाड़ली लक्ष्मी योजना और कन्यादान जैसी योजना के चलते समाज में दहेज की मांग बढ़ी है साथ ही प्रदेश में दहेज हत्या के प्रकरणों में वृद्धि हुई है। वर्ष 2003 में 648 दहेज हत्या हुई वहीं ये ऑकड़ा 2010 में बढ़कर 892 तक पहुंच गया अर्थात हर दिन तीन महिलाओं की दहेज के लिये हत्या की गई। आलम यह है कि हर रोज नौ से ज्यादा महिलाएं वहशी दरिंदों के हवस का शिकार बन रही हैं। दिसंबर माह में ही विधानसभा में कांग्रेस विधायक राम निवास रावत द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने बताया था कि राज्य में जनवरी 12 से 31 अक्टूबर के बीच 10 माह में 2868 महिलाओं को हवस का शिकार बनना पड़ा है। इन 10 माह में 2613 महिलाएं बलात्कार व 255 महिलाएं सामूहिक बलात्कार का शिकार बनीं। बलात्कार का शिकार बनी 20 महिलाओं की हत्या कर दी गई, जबकि 26 ने आत्मग्लानि के चलते मौत को गले लगा लिया। इन वारदातों में शामिल 3394 लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। सरकार के आंकड़े बताते हैं कि बलात्कार की सबसे ज्यादा 150 वारदातें इंदौर में हुई हैं। इनमें से 141 बलात्कार और नौ सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हुईं। महिलाओं की अस्मत तार-तार किए जाने के मामले में जबलपुर दूसरे स्थान पर है, जहां 115 महिलाओं की इज्जत से खेला गया। इसी तरह राजधानी भोपाल में 114 महिलाओं के साथ अस्मत लूटने की वारदातें हुईं। इनमें 111 बलात्कार व तीन सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हैं। बेटमा रेप केस, देवालपुर (लिम्बांदापार गांव) के मूक बधिर के साथ रेप, मुलताई में दलित छात्रा के साथ गैंग रेप, बैतूल में आदिवासी समुदाय की नाबालिग लड़की के साथ रेप और शिकायत करने पर उसकी मां का कत्ल, बैरसिया गैंगरेप, राजगढ़ गैंगरेप, छिंदवाडा में नाबालिग लड़की के साथ रेप, शिवपुरी (मानपुरा गांव) में गैंगरेप आदि जैसी बड़ी घटनाएं मध्यप्रदेश में महिलाओं और किशोरियों के असुरक्षित होने की कहानी बयान करती हैं। वर्ष 2011 में भोपाल जिले में 382, इंदौर में 287, ग्वालियर जिले में 327 और जबलपुर में 152 बलात्कार के मामले में दर्ज किए गए हैं।

महिलाओं के साथ रेप, लूट, अपहरण, चोरी, हत्या के प्रयास इत्यादि के कुल 54418 (2011) क्राइम हुए हैं। जिसमे इंदौर में सबसे ज्यादा 18915 तथा दूसरे न पर भोपाल 14287 है। इसके बाद ग्वालियर और जबलपुर है। म.प्र. में 2010 में महिलाओं के साथ 16468 क्राइम हुए हैं, जो कि पूरे देश में 5 वे स्थान में था। प्रदेश में 2004 से 2011 तक 35 हजार 395 बच्चियां लापता हुई हैं।
वर्ष 2008 में मध्यप्रदेश में 892 किशोरियों और 2852 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना घटी। राजधानी भोपाल में सबसे अधिक 76 किशोरियों के साथ दुष्कृत्य किया गया। सर्वाधिक किशोरियों के साथ दुष्कर्म वाले दस प्रमुख जिले माने गए - भोपाल, सतना, छिंदवाड़ा, बैतुल, विदिशा, खंडवा, बालाघाट, रतलाम, नरसिंहपुर और गुना। किशोरियों के साथ दुष्कर्म के मामलों में प्राय: पुलिस की लापरवाही के कारण फरियादी को समय पर न्याय नहीं मिल पाता। हाल में भोपाल और बैतुल के दो मामलों में पुलिस मुख्यालय ने केस डायरी मंगवाई तो उसमें प्रकरण की रिपोर्ट समय पर न लिखने, पर्यवेक्षण न करने, आरोपी को लाभ पहुंचाने के लिए साक्ष्य न जुटाने जैसी खामियां पाई गईं। हैरानी की बात तो यह है कि प्रदेश के अन्य शहरों सहित राजधानी भोपाल में भी सभी स्तरों पर विभिन्न वय की स्त्रियों पर निरंतर अत्याचार के मामले अखबार की सुर्खियों में हैं।
वर्ष 2009 की हाल की कुछ घटनाओं पर गौर करें तो छतरपुर, बैतुल, सागर, इंदौर, ग्वालियर, रायसेन के सलामतपुर, मुलताई, मुरैना और भोपाल में स्त्रियों पर अत्याचार के जो हृदयविदारक मामले सामने आए, उनमें एक भी अपराधी को पकड़ा नहीं गया है। कुछ अन्य मामलों में भी अपराधियों को पकडऩे में विफल मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा पुरस्कार की घोषणा की जा चुकी है। अब जनता की जिम्मेदारी है कि वह अपराधियों को तलाशे और पुलिस के हाथों में सौंपकर उनसे इनाम हासिल करे। आलम यह है कि यदि पुलिस किसी अपराधी को पकड़ ले तो उसे सम्मानित किया जाना चाहिए क्योंकि पुलिस की निष्क्रियता और उदासीनता की पौ बारह है। पुलिस का यह रवैया घोर चिंताजनक है। यह आश्चर्यजनक है कि राजधानी में मानवाधिकार आयोग, राज्य महिला आयोग, नौकरशाह, मंत्रीगण, राजनेता और विरोधी दल के सूरमा सभी शांत हैं। किसी का ध्यान पुलिस के निकम्मेपन पर नहीं जाता। सरकार स्वर्णिम मध्यप्रदेश का स्वप्न देख रही है, जबकि राज्य ने विभिन्न अपराधों और अत्याचारों के मामले में देश के अन्य राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।
यह भी कहा जा रहा है कि करीब 76 हजार लोगों की पुलिस फोर्स साढ़े छ: करोड़ लोगों की रक्षा करने में असमर्थ है। जनसंख्या के लिहाज से 809 लोगों की सुरक्षा का जिम्मा एक पुलिसकर्मी पर है।