05-Sep-2014 07:47 AM
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अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी अब भारतीय जनता पार्टी को मार्ग दिखाएंगे। हालांकि नरेंद्र मोदी व राजनाथ सिंह भी मार्ग दिखाएंगे लेकिन उनका मार्ग सत्ता का

मार्ग है। दरअसल नए नवेले अध्यक्ष अमित शाह ने इन सब को मार्गदर्शक मंडल में नियुक्त किया है। मोदी और राजनाथ तो सरकार में हैं और प्रधानमंत्री, गृहमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित कर रहे हैं। इसलिए उनका कहीं होना या न होना कोई मायने नहीं रखता। क्योंकि वे सरकार की जिम्मेदारियों में ही मशगूल हैं। अटल बिहारी वाजपेयी एक तरह से राजनीतिक विश्राम पर हैं इसलिए वे कहीं भी रहें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। किंतु लाल कृष्ण आडवाणी और जोशी जैसे सक्रिय वयोवृद्धों की संसदीय बोर्ड से विदाई अवश्य ही भाजपा में आमूलचूल परिवर्तन का संकेत दे रही है।
इन वरिष्ठों की जगह अपेक्षाकृत युवा और गतिशील अमित शाह, जेपी नड्डा, शिवराज सिंह चौहान जैसे नए और राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी, अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार, नितिन गडकरी, वेंकैया नायडू, थावरचंद गहलोत और रामलाल जैसे नेताओं की मौजूदगी इस बात का संकेत है कि भाजपा में अगली पीढ़ी पर जिम्मेदारियां हस्तांतरित कर दी गई हैं। यह एक अनिवार्य और सुखद बदलाव है। कम से कम भाजपा ने एक व्यवहारिक और दूरदर्शी कदम उठाया है। अन्य पार्टियों में ऐसे बदलाव प्राय: नहीं देखे जाते। कांग्रेस में तो कई नेता अंतिम सांस तक सक्रिय रहे। द्रुमुक जैसी पार्टियों में तो करूणानिधी अभी भी मुख्यमंत्री बनने के ख्वाब देखा करते हैं। कम्यूनिस्टों में भी रिटायर्ड होने की परंपरा न के बराबर है। हालांकि वहां युवाओं को मौका देने की विशेष कोशिश की जाती है। लेकिन भाजपा ने जिस तरह से वयोवृद्धों को मार्गदर्शक मंडल में भेजने की शुरूआत की है उसे देखते हुए आगामी समय में बढ़ी तादात में मार्गदर्शक भाजपा की शोभा बढ़ाएंगे।
निश्चित रूप से यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पहल पर किया गया है। नई सरकार के सत्तासीन होते ही जिस तरह पहले मंत्रियों की अधिकतम आयु सीमा तय की गई उससे ही संकेत मिल रहे थे कि संगठन मेें भी गुणात्मक बदलाव किया जाएगा। अब देखना है कि नई पीढ़ी भाजपा को किस दिशा में ले जाती है। यूं देखा जाए तो यह भाजपा का स्वर्ण काल ही चल रहा है। केंद्र में वह बहुमत से सत्ता में है। मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों में उसकी सरकार है। बिहार, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में उसकी ताकत बढ़ी है। भाजपा की आक्रामक प्रचार नीति और हिंदुत्व पर स्पष्ट नजरिए ने नई पीढ़ी को भाजपा से जुडऩे का अवसर दिया है। किंतु बहुत सी चुनौतियां भी हैं। हाल ही में उपचुनाव के परिणाम भाजपा के पक्ष में जाते प्रतीत नहीं हुए। उत्तराखंड में सभी सीटों पर उसकी पराजय हो गई तो बिहार में 2 सीटें घट गईं मध्यप्रदेश में भी 2008 के बाद पहली बार उपचुनाव में भाजपा की पराजय हो गई उधर कर्नाटक में बेल्लारी की सीट भाजपा ने खो दी। यह संकेत नई टीम को ज्यादा मेहनत और कुशलता से काम करने की प्रेरणा दे सकता है। अमित शाह ने इसकी शुरूआत कर दी है। राज्यपाल के रूप में कल्याण सिंह को राजस्थान, वजूभाई वाला को कर्नाटक, सी विद्यासागर राव को महाराष्ट्र तथा मृदुला सिन्हा को गोवा की राज्यपाल बनाया गया है। बीजेपी संसदीय बोर्ड में कुल 12 सदस्य होते हैं। पार्टी अध्यक्ष इस बोर्ड का चेयरमैन होता है। पार्टी से जुड़े सारे अहम फैसले यही संसदीय बोर्ड करता है। नेशनल इग्जेक्यूटिव द्वारा इस संसदीय बोर्ड में नियुक्ति की जाती है।
सूत्र बताते हैं कि आडवाणी और जोशी को एकदम से बाहर करने से नाराजगी फैलती, इसलिए उन्हें मार्गदर्शक मंडल में रखा गया है। खबर यह है कि आडवाणी राजनीति से पूर्णत: सन्यास लेकर बेटी प्रतिभा को बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। पार्टी अपने युवा नेताओं को आगे लाने की कोशिश में है। इसी क्रम में कुछ नए चेहरों को संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है। बीजेपी के संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन पर राजनीतिक पार्टियों ने निशाना साधना शुरू कर दिया है। सीपीआई नेता अतुल अंजान ने आडवाणी और जोशी को बोर्ड में जगह न मिलने पर कहा कि जिसने मोदी के विरोध की कोशिश की, उसे किनारे कर दिया गया। वहीं, कांग्रेस के प्रदीप माथुर ने कहा कि यह बीजेपी का आतंरिक मामला है, लेकिन सचाई यही है कि पार्टी के सीनियर नेताओं के दिन खत्म हो चुके हैं। बीजेपी के सबसे सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल में शामिल करने के फैसले से साफ है कि उनके राजनीतिक कद और प्रभाव को अब पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। इस नई भूमिका में उनके पास फैसले लेने संबंधित अधिकार नहीं होंगे। बीते कुछ वक्त के घटनाक्रम पर नजर डालें तो पता चलता है कि नरेंद्र मोदी के उत्थान के साथ-साथ आडवाणी का कद घटता गया। आडवाणी ने पार्टी के अंदर मोदी के बढ़ते कद को रोकने के लिए हर संभव कोशिश की। मोदी जब पार्टी के पीएम पद के कैंडिडेट बनाए गए तो उस वक्त तक यह साफ हो चुका था कि आडवाणी खेमा इस फैसले से खासा नाराज था। बाद में जब मोदी पीएम बने तो आडवाणी को उनकी पसंद का स्पीकर पद तक नहीं मिला। आडवाणी के संसद भवन स्थित कमरे पर लगी नेमप्लेट तक हटा दी गई। यह भी खबरें आईं कि आडवाणी ने किसी निजी जरूरत की वजह से पार्टी से एक चार्टर्ड प्लेन की मांग की, लेकिन अमित शाह ने कथित तौर पर खारिज कर दिया।
vikash dube