आरटीओ का विकल्प क्या है?
05-Sep-2014 07:38 AM 1234783

देश भर में फैले रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस सर्वाधिक चहल-पहल वाली जगह हंै। रेल्वे स्टेशनों के बाद इन्हीं सरकारी कार्यालयों में सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। सरकार की आमदनी का भी यह बेहतरीन जरिया हैं और आरटीओ से जुड़े कर्मचारियों से लेकर दलालों तथा अन्य सभी की जेबें भी भरी रहती हैं। अब मोदी सरकार के केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऐलान किया है कि शीघ्र ही आरटीओ बंद किए जाएंगे और सरकार आरटीओ दफ्तर की लालफीताशाही और आम नागरिकों को होने वाली प्रताडऩा को बंद कर मोदी सरकार एक नई ऑनलाइन व्यवस्था शुरू करने की तैयारी की जा रही है। सरकार चाहती है कि जगह-जगह कैमरे लगे हों और कोई सिग्नल तोड़ता है, तो ऑनलाइन व्यवस्था के तहत उसके घर चालान पहुंचा कर जुर्माना वसूला जाए, लायसेंस परमिट भी आनलाईन पैसा जमा कर पोस्ट से अपने आप आये, सरकार आम नागरिकों को वाहन चलाने का प्रशिक्षण दिलाने का काम करे। आने वाले कुछ महीनों में कानून बनाकर ये नई व्यवस्था लागू की जा सकती है। सड़क सुरक्षा नियमों को सख्त बनाने के लिए सरकार सेंट्रल मोटर व्हीकल एक्ट में भी संशोधन पर विचार कर रही है। परिवहन मंत्रालय अन्य देशों जैसे यूके, यूएस, कनाडा, जर्मनी, जापान और सिंगापुर के मोटर एक्ट का भी अध्ययन कर रहा है।
परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल में सड़क सुरक्षा नियमों को प्राथमिक मुद्दा बताया था और सड़क सुरक्षा मानकों को सख्त करने का संकेत दिया था। सड़क सुरक्षा मानकों पर पुलिस व ऑटोमोबाइल कंपनियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे परिवहन मंत्रालय के उच्चाधिकारियों ने सभी सवारी गाडियों में एयरबैग लगाने का पक्ष लिया है। शुरूआत में बसों सहित सभी सवारी गाडियों में सामने की दो सीटों पर एयरबैग और सभी तरह के दोपहिया वाहनों में डिस्क ब्रेक को अनिवार्य बनाया जाएगा। अभी केवल हाई-स्पीड दोपहिया वाहनों में डिस्क ब्रेक और महंगी कारों में ही एयरबैग जैसे सुरक्षा उपाय अपनाए जा रहे हैं। हालांकि वर्तमान में सभी गाडियों में केवल सीट बेल्ट को ही अनिवार्य रखा गया है, जो सुरक्षा के लिहाज से पर्याप्त नहीं है।
सड़क हादसों के लिहाज से भारत, दुनिया भर में सबसे खतरनाक साबित हो रहा है। देश भर में सड़क हादसों से सालाना 1.4 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जो सीधे तौर पर सड़क सुरक्षा मानकों की कमजोर स्थिति का संकेत देता है। सड़क हादसों को घटाने के लिए केंद्रीय परिवहन मंत्रालय, सेंट्रल मोटर एक्ट में संशोधन कर ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर सख्ती करने और वाहनों के साथ नए सुरक्षा मानकों को जोडऩे जैसे उपायों पर विचार कर रहा है। सड़क सुरक्षा मानकों को सख्त करने के उद्देश्य से सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय सुरक्षा के कुछ मूल उपायों को लागू करने पर विचार कर रहा है। इनके पीछे कमजोर सुरक्षा मानक, विभिन्न स्तरों पर सुरक्षा व ट्रैफिक नियमों की अनदेखी व अप्रशिक्षित वाहन चालक जैसे कारण जिम्मेदार पाए गए हैं।
लेकिन भ्रष्टाचार सबसे बड़ा कारण है ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने कुछ समय पहले बताया था कि हर ट्रक ड्रायवर वर्ष भर में औसतन 79,920 रुपए की रिश्वत देता है। इस प्रकार देश भर में दौड़ रहे 36 लाख ट्रकों से ही 22 हजार 200 करोड़ रुपए की रिश्वत ली जाती है। लेकिन यह तो ट्रकों का ही आंकड़ा है। बसों से लेकर अन्य चौपहिया वाहनों और उनसे भी बड़ी तादात में दुपहिया वाहनों से जो पैसा वसूला जाता है उसे भी शामिल किया जाए तो रिश्वत का आंकड़ा एक-डेढ़ लाख करोड़ रुपए निकलता है। इससे निपटने के लिए सरकार रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस के स्थान पर लैंड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी बनाने जा रही है लेकिन सवाल वही है कि इस अथॉरिटी के बनने से भ्रष्टाचार कैसे रुकेगा? नियम कानून तोडऩे और कागज बनवाने के लिए तो कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था बना ली जाएगी किंतु इस व्यवस्था को लागू कौन करवाएगा? जो लागू करेंगे वे वसूली नहीं करेंगे इस बात की गारंटी कौन दे सकता है? मिसाल के तौर पर यदि सड़क पर कहीं गड्ढा होगा तो एजेंसी उसकी मरम्मत करा सकेगी किसी भी तरह के अतिक्रमण को हटा सकेगी। सड़क किनारे रेहड़ी पटरी की इजाजत नहीं होगी। ट्रैक पर टेस्ट लेने के बाद ही ड्रायविंग लाइसेंस जारी करेगी। पुराने लाइसेंस ट्रैक पर परीक्षण के बाद रिन्यू होंगे। सड़क पर जुलूस, प्रदर्शन या बारात निकालने की इजाजत नहीं होगी। कानूनों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ लाइसेंस रद्द होने व गाड़ी का परमिट रद्द होने जैसी कार्रवाई होगी। लेकिन रेहड़ी वाले तो आज भी अवैध ही हैं और अपनी कमाई का कुछ हिस्सा हर दिन पुलिस को पहुंचाकर जीवन चलाते हैं। ड्रायविंग टेस्ट के बगैर लाइसेंस देना कानूनी रूप से तो अभी भी गैर कानूनी है लेकिन पैसे लेकर दलाल हर काम आसान करवा देते हैं। पैसे का यह तंत्र फर्जी और पाप से भरा हुआ अवश्य है किंतु एक तथ्य यह भी है कि हजारों आरटीओ एजेंट के पेट इसी पापी पैसे से पल रहे हैं। उन्हेें आजीविका का वैकल्पिक साधन और पुनर्वास देना भी सरकार का ही दायित्व है बहरहाल नई व्यवस्था में लाइसेंस, रजिस्टे्रशन, परमिट और हेल्थ सर्टिफिकेट जारी करने सहित सभी काम ई-गवर्नेंस के दायरे में आ जाएंगे। ड्रायविंग लाइसेंस से जुड़े आंकड़े कम्प्यूटरीकृत होंगे। लाइसेंसों की डुप्लीकेटिंग रोकी जाएगी। यह भी पता चलेगा कि किस व्यक्ति ने कितनी बार कानून तोड़ा है। चौराहों पर पुलिस जवानों के बजाय सीसीटीवी कैमरों से वयवस्था संभाली जाएगी। सीसीटीवी से कानून तोडऩे वालों की पहचान होगी। उम्मीद है कि संसद के अगले सत्र में नया वाहन विधेयक अस्तित्व में आ जाएगा। लेकिन इसके लिए हर स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन करना होगा यदि यह परिवर्तन लाया गया तो सुखद ही होगा ऐसी की जानी चाहिए।

 

RMP Singh

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