05-Sep-2014 07:34 AM
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हाल ही में सरकार ने अर्थ व्यवस्था की पहली तिमाही के आंकड़े जारी किए। इन आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से जून के बीच आर्थिक विकास दर 1.1 प्रतिशत की बढ़त के साथ 5.7 प्रतिशत पर पहुंच

गई जो कभी 4.6 प्रतिशत हुआ करती थी। इस वृद्धि का श्रेय मौजूदा सरकार को नहीं दिया जा सकता क्योंकि यूपीए सरकार ने भी जाते-जाते अंतिम माहों में कुछ पूंजी निवेश किए थे जिससे विकास दर उछली है। विकास दर उछलने के साथ ही मौजूदा सरकार की प्रशंसा में कसीदे पढऩे वाले भी उछलने लगे हैं लेकिन इस सरकार को श्रेय तभी मिलेगा जब यह विकास दर लगातार बढ़ती जाएगी और 8 से 10 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच सकेगी। विकास दर की दृष्टि से भारत दुनिया में वैसे भी 10वें नंबर पर है। सच तो यह है कि वर्तमान मेें जो वास्तविक विकास दर है उसके लिजाज से भारत 64वें नंबर पर है और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओंं में भी भारत शीर्ष 10 मेंं शामिल नहीं है शीर्ष पर तो मंगोलिया जैसे देश हैं, लेकिन शीर्ष पर हमेशा ही छोटे देश रहते हैं हमारे पड़ौसी श्रीलंका की विकास दर भी साढ़े छ: प्रतिशत है और हमसे ज्यादा है।
वर्ष 2013 में सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था में 2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था भी डांवाडोल रही इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि वैश्विक संकेतों से भारत अछूता नहीं रह सकता। हालांकि ऐसोचेम और सीआईआई ने इस वर्ष विकास दर का आंकड़ा 6 प्रतिशत को पार करने की बात कही है लेकिन कुछ बड़ी अड़चनें राह देख रही हैं। मिसाल के तौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोल ब्लॉक आवंटन में पिछले आवंटनों को रद्द किया जाए या नहीं यह फैसला सितंबर माह में आएगा। यदि कोल ब्लॉक आवंटन रद्द होते हैं तो इसका दुष्प्रभाव देश के विकास पर पड़ेगा क्योंकि अर्थव्यवस्था की रफ्तार तभी मायने रखती है जब बिजली, सड़क, पानी जैसी बुनियादी अधोसंरचना मजबूत हो।
केंद्र में स्थिर सरकार होने से निवेशकों का भरोसा लौटा है। सरकार ने भी बजट में कई प्रावधान किए हैं जैसे रेल्वे में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश, रक्षा और बीमा में 49 प्रतिशत विदेशी निवेश, जीएसटी पर सर्वसम्मति बनाने की कोशिश। इसके अतिरिक्त टैक्स विवाद कम करने की पहल भी निवेशकोंं का हौसला बढ़ा रही है। एफआईआई निवेश 1 लाख करोड़ को पार कर गया है लेकिन अभी इस निवेश का विश्लेषण किया जाना बाकी है कि किस क्षेत्र में कितना निवेश आ रहा है। भारत जैसे देशों में अब कृषि में भी विदेशी निवेश होना चाहिए। खेती 4 प्रतिशत से घटकर 3.8 प्रतिशत पर स्थिर है जो कि चिंताजनक है। खेती की विकास दर बढ़े बगैर विकास का फायदा आम जनता तक नहीं पहुंच पाएगा। खेती इस देश के 60 प्रतिशत लोगों की आजीविका को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करती है। इस वर्ष मानसून की कमी कृषि विकास दर को पर्याप्त नुकसान पहुंचा सकती है।
दूसरी तरफ हमें खनन कानूनों को ज्यादा पारदर्शी और आसान बनाने की आवश्यकता है। खनन लाइसेंस से लेकर कोल ब्लॉक आवंटन तक सारी प्रक्रिया इस तरह होनी चाहिए कि उत्पादकों और निवेशकों को निराशा न हो। कभी खनन में विकास दर घटकर ऋणात्मक 3.9 प्रतिशत तक पहुंच चुकी थी जो अब बढ़ी है और धनात्मक 2.1 प्रतिशत हुई है। मैन्यूफेक्चरिंग में भी बहुत सुधार हुआ है लेकिन प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इंडिया मेक का जिक्र किया था और कहा था कि जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट इसका अर्थ यह है कि मैन्यूफैक्चरिंग में भारत को बहुत आगे जाने की आवश्यकता है और रियल्टी क्षेत्र भी तभी सुधर सकेगा। इस क्षेत्र में बढ़ते दामों को नियंत्रित करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है यदि शहरी आवास गरीब और मध्यम वर्ग की जेब के दायरे से बाहर निकलते हैं तो पूरा रियल्टी सेक्टर मंदी के दौर में जा सकता है। जहां तक बिजली, सड़क, पानी जैसे क्षेत्रों का प्रश्र है इसमें बिजली सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण है। भारत को कोयले पर निर्भरता कम करनी होगी। परमाणु ऊर्जा अच्छा विकल्प है पर इसके खतरों से दुनिया अंजान नहीं है उधर सौर ऊर्जा जैसे गैर परंपरागत क्षेत्रों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन इसे उन क्षेत्रों तक विस्तारित करना होगा जहां सौर ऊर्जा की पर्याप्त संभावना है। इसलिए जीडीपी की बढ़त ही पर्याप्त नहीं है सुधार हर क्षेत्र में होना चाहिए।
सर्वाधिक जीडीपी वाले 10 देश
1. अमेरिका
2. चीन
3. जापान
4. जर्मनी
5. फ्रांस
6. ब्रिटेन
7. ब्राजील
8. रूस
9. इटली
10. भारत
(अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा 2013 में जारी सूची के अनुसार)
Sunil Singh