नेपाल में प्रचंड समर्थन
25-Aug-2014 10:26 AM 1234823

जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाली युवक जीत बहादुर को उसके परिवार से मिलाया तो उन्होंने लाखों नेपालियों का दिल जीत लिया। मोदी पिछले एक दशक से यही करते आ रहे हैं- सही मौके पर सही कदम उठाना और सही बात कह जाना। यही उनकी कामयाबी का राज है। संभवत: इसीलिए मोदी की नेपाल यात्रा कामयाबी की मिसाल बन गई। मोदी ये बखूबी जानते हैं कि भारत को सुरक्षित और अखंड बनाए रखना है तो नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों से मधुर संबंध बनाना होगा ताकि चीन और पाकिस्तान की घेराबंदी का मुकाबला किया जा सके। इसीलिए 17 वर्ष बाद जब मोदी के रूप में भारत का कोई प्रधानमंत्री नेपाल पहुंचा तो नेपाल के साथ रिश्तों में नई गर्माहट पैदा हुई। नेपाली प्रधानमंत्री सुशील कोइराला और उप प्रधानमंत्री सहित तमाम बड़े राजनीतिज्ञों का मोदी के स्वागत में आना और माओवाद के प्रभाव के बावजूद भारत के साथ कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर सहमति प्रकट करना निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक पहल है जिसका फायदा आने वाले दिनों में अवश्य मिलेगा।
मोदी ने नेपाल यात्रा के दौरान हर कदम सोच समझकर उठाया। नेपाल की संविधान सभा (संसद) में अपना भाषण नेपाली भाषा की कुछ पंक्तियों से आरंभ किया और बाद में हिन्दी में बोले जिसे नेपाल में सभी लोग समझते हैं और बोलते भी है। उनके करीब एक घंटे के भाषण में नेपाली सांसदों ने कई बार मेजें थपथपा कर अपना अनुमोदन व्यक्त किया मोदी ने स्पष्ट किया कि हमारी मंशा नेपाल के आंतरिक मामलों में दखल देने की नहीं है। बल्कि सहयोग और सहायता देने की है। नेपाल एक सार्वभौम देश है। हम नेपाल से सीमा से नहीं बल्कि दिल से जुड़े हुए हैं। उन्होंने माओवादियों के विद्रोह की ओर इशारा करते हुए युद्ध से बुद्ध की ओर जाने की सराहना की और कहा कि पूरा विश्व इस समय नेपाल में लोकतंत्र के इस प्रयास को देख रहा है। मोदी ने नेपाल के लिए 10,000 करोड़ नेपाली रुपये के रियायती दर पर कर्ज देने और 5000 मेगावाट की पंचेश्वर बहुद्देशीय बांध परियोजना पर काम शुरू करने की भी घोषणा की। दोनों देशों ने तीन समझौतों पर मुहर लगायी। दो अन्य बड़े समझौतों पर शीघ्र ही दस्तखत होने की संभावना है। जिस ढंग से सड़कों पर जबरदस्त भीड़ ने मोदी का स्वागत किया उसे अभूतपूर्व कहा जायेगा। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पूर्व नेपाल जाकर भूमिका तैयार कर चुकी थीं। अब वे म्यांमार यात्रा में भी ऐसा ही प्रयास कर रही हैं। मोदी द्वारा पशुपतिनाथ मंदिर में विशेष पूजा (रुद्राभिषेक) ने भी नेपाल के लोगों को भावविभोर कर दिया। नेपाल के अनेक लोगों ने कहा कि मोदी ने अपनी यात्रा से नेपाल का मान बढ़ाया है। आशा की जाती है कि अब भारत और नेपाल के बीच मैत्री के नये अध्याय का सूत्रपात होगा।
भारत और नेपाल दो ऐसे पड़ोसी देश हैं जिनके सदियों से घनिष्ट सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध रहे हैं। वस्तुत: अपने देश जैसा लगता है विदेश नेपाल, जिसकी यात्रा के लिए भारतीयों को आज भी न किसी पासपोर्ट की जरूरत है न वीसा की और ना ही ढेर सारे पैसों की। दोनों की धार्मिक मान्यताएं भी लगभग एक जैसी हैं। भारत में लाखों नेपाली काम करते हंै। यहां तक कि ब्रिटिशकाल से नेपाल के गुरखा सिपाही भारतीय सेना में अपनी वीरता का परिचय देते आ रहे हैं। इतने गहरे संबंध शायद ही किन्हीं अन्य दो देशों में हों। लेकिन खेद की बात है कि हाल के वर्षों में दोनों देशों के रिश्तों में काफी तल्खी आयी है। इसके कई कारण हैं। नेपाल के कट्टरपंथी तत्व, चीन का बढ़ता प्रभाव और भारत की उदासीनता। यह इसी से स्पष्ट है कि भारत के लिए भू-राजनीतिक स्थिति और अन्य कारणों से इतने महत्वपूर्ण पड़ोसी देश में पिछले 17 वर्ष से भारत का कोई प्रधानमंत्री नहीं गया, जबकि इस बीच चीनी प्रधानमंत्री समेत तीन उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडलों ने नेपाल की यात्रा की और नेपाली प्रधानमंत्री समेत सात उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल चीन गये। नरेन्द्र मोदी ने सार्क संगठन के अंतर्गत अपने पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध बनाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री पद के अपने शपथग्रहण समारोह में जिन देशों के शासनाध्यक्षों को आमंत्रित किया उनमें नेपाल भी था जिसके प्रधानमंत्री सुशील कोइराला अल्प सूचना पर दिल्ली पहुंच गये। 17 वर्ष की इस अवधि में नेपाल में माओवादियों ने भारी उत्पात मचाया, वहां राजशाही का अंत हो गया और अंतत: लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हो गयी। हालांकि वर्षों से संविधान निर्माण की प्रक्रिया लटकते रहने से वहां राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है। हालात धीरे-धीरे बदलने लगे हैं। चीनी प्रभाव के कारण नेपाल की भारत पर निर्भरता घटती जा रही है। नेपाल अब वह नेपाल नहीं रहा जो 1950 में भारत-नेपाल मैत्री संधि के समय था और भारत के साथ मधुर संबंधों का पक्षधर था।
सरकार ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेपाल यात्रा से भारत और नेपाल के बीच आपसी विश्वास बढ़ा है और इस यात्रा ने नेपाल के साथ हमारे महत्वपूर्ण संबंधों को नयी गति, नयी दिशा और नया उत्साह दिया है जिसे हम आगे और मजबूत करेंगे। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री की हाल की नेपाल यात्रा पर  संसद के दोनों सदनों में दिये बयान में कहा कि प्रधानमंत्री जी अपनी नेपाल यात्रा से बहुत ही संतुष्ट हैं। उन्होंने सभी नेपाली नागरिकों के दिलों और मन को छुआ है जिसे उन सभी ने व्यक्त भी किया जिनसे उन्होंने मुलाकात की थी और जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य राजनीतिक दलों के नेता शामिल हैं। नेपाल के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंध हमारे साझा इतिहास, भूगोल और संस्कृति से जुड़े हुए हैं, रोटी बेटी का संबंध है। हमारा लगातार यह प्रयास रहा है कि इन नजदीकी संबंधों को व्यापार और निवेश, जलविधुत शक्ति, सीमा पर बेहतर आवागमन, रक्षा, सुरक्षा, शिक्षा और पर्यटन के माध्यम से सभी स्तरों पर सुदृढ़ किया जाये।

सुषमा स्वराज की विदेश यात्राएं
ढाका: 25-27 जून 2014, बांग्ला देश के विदेश मंत्री अबुल हसन महमूद के बुलावे पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की यात्रा में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई।
काठमांडु: 25-27 जुलाई 2014, नेपाल की यात्रा के दौरान सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा की भूमिका तैयार की।
नाय पी ताव, 8-11 अगस्त 2014, म्यांमार की यात्रा में द्विपक्षीय बातचीत के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका तैयार की।

ईराक में अमेरिका की वापसी?
आतंकवादी संगठन आईएसआईएस जिसे कुछ लोग इसिस या आईसिस भी कह रहे हैं अब ईराक में अमेरिकी हवाई हमलों और सेनाओं का मुकाबला करेगा। अमेरिका इतने दिनों तक तो शांत बैठा रहा और उसने आईसिस को ईराक में कदम बढ़ाने का मौका दिया लेकिन जैसे ही आईसिस ने ईसाइयों ओर यजीदियों को निशाना बनाना शुरू किया अमेरिका इस युद्ध में कूद पड़ा। अमेरिका द्वारा ईराक में फिर से हवाई हमले शुरू करने के साथ ही यह तय हो गया है कि अब लड़ाई लंबी चलेगी। ईराक की सेनाएं उतनी दक्ष नहीं हैं। दूसरी तरफ आईसिस के आतंकी छापामार लड़ाई करने में भी माहिर हैं। वे कुर्दों, शिया सहित अन्य गैर सुन्नी समुदाय के ऊपर कहर ढहा रहे हैं। उनकी महिलाओं का अपहरण कर लिया गया है और जबरन धर्मांतरण कर उन्हें सुन्नी बनाया जा रहा है। आईसिस ने ईसाइयों को भी चेतावनी दी है कि उनके समक्ष केवल तीन विकल्प हैं धर्म बदलें, टैक्स दें या मरें। मूल समस्या यह है कि आईसिस को मिलने वाले धन के स्रोत के बारे में दुनिया को कुछ पता नहीं है। आईसिस हथियारों से लैस है और उसके लड़ाके सैनिकों को ही नहीं बल्कि आम जनता को भी निशाना बना रहे हैं। यजीदी समुदाय पर आईसिस का कहर आपदा बनकर आया है। पुरुषों को मारा जा रहा है और महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है।
यजीदियों की पूजन पद्धति हिंदुओं से मिलती-जुलती है लेकिन 50 के दशक में ये लोग ईसाइयों के संपर्क में आए और बहुत से यजीदी ईसा को मानने लगे बाद में बचे यजीदियों के तौर-तरीके ईसाइयों जैसे हो गए। कुर्दों और शियाओं ने जो अपेक्षाकृत उदार हैं यजीदियों में आए इस बदलाव को सहजता से लिया और सारे समुदाय मिल-जुल कर रहने लगे। किंतु सुन्नियों का एक वर्ग मानता है कि यजीदियों को इस्लाम ग्रहण कर लेना चाहिए। इसी कारण आईसिस ने चेतावनी दी है कि यजीदी या तो इस्लाम ग्रहण करें या मरने के लिए तैयार रहें। इस चेतावनी के बाद ईराक के अशांत क्षेत्रों में मध्ययुगीन, बर्बर दृश्य देखने को मिल रहा है जहां तलवार के दम पर एक समुदाय के विश्वास और आस्था को बदला जा रहा है। चिंता तो इस बात की है कि आस-पास के सारे मुस्लिम देश खामोश हैं मानों वे इस वहशियत को मौन स्वीकृति प्रदान किए हुए हैं। बेहतर होता यदि अमेरिका की बजाए आस-पास के सारे मुस्लिम देश मिलकर ईराक को बचाने की कोशिश करते। ईराक का एक समृद्ध इतिहास रहा है लेकिन जिस तरह पिछले 2 दशक से यह देश युद्ध में झोंक दिया गया है उसने सारे ईराक को तहस-नहस कर दिया है। जिस तरह के हालात यहां पर हैं उन्हें देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि आने वाले दिनों में लड़ाई लंबे समय तक चलती रहेगी जिसके हाथ में हथियार होंगे वही लडऩे लगेगा। फिलहाल कुर्दों को हथियार दिए जा रहे हैं लेकिन कौन जाने कल कुर्द भी किसी मकसद को लेकर लडऩे लगें।
ईराक जंग का मैदान बना हुआ है। अमेरिका ने ड्रोन विमानों से जो हमले किए हैं उससे आईसिस आतंकियों का आगे बढऩा कुछ हद तक रुका है लेकिन सवाल वही है कि इन आतंकियों के पास इतना धन और संसाधन कहां से आए? इतने अत्याधुनिक हथियार आतंकियों के हाथ कैसे लग जाते हैं? इसे देखकर तो लगता है कि परमाणु बम जैसे हथियारों को भी आतंकी हासिल कर सकते हैं। यह दुनिया के लिए चिंता का विषय है। ईराक में अमेरिका ने भारी तादात में हथियारों की आपूर्ति की है। लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि यह असलहा आतंकियों के हाथ नहीं लगेगा।

 

Dharmendra Kathuria

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