31-Jul-2014 10:58 AM
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अंतत: ब्रिक्स देशों द्वारा स्थापित होने वाला बहुप्रतीक्षित बैंक अपने अंजाम तक पहुंच ही गया। 6 लाख करोड़ रुपए की लागत से यह बैंक चीन के औद्योगिक शहर शंघाई में स्थापित होगा और भारत

अगले 6 वर्ष के लिए इसकी अध्यक्षता करेगा। कोशिश तो यही की गई थी कि भारत के किसी शहर में इस बैंक का मुख्यालय स्थापित हो किंतु चीन ने विश्व की महाशक्ति होने के नाते अपना रूतबा यहां भी दिखाया इतना अवश्य रहा कि इस बैंक का नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सुझाया और भारत को पहली बार इस बैंक की अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला है।
नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्रा का यह पहला अहम फैसला था जो भारत की सफल विदेश नीति की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम साबित हो चुका है। ब्रिक्स ब्राजील, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का संगठन है। देखा जाए तो इस संगठन के अंतर्गत विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या आ जाती है जो एक महत्वपूर्ण और गौर करने लायक तथ्य है। इसलिए इन देशों द्वारा स्थापित बैंक का उतना ही महत्व है जितना अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक या एशियाई डेवलपमेंट बैंक जैसी संस्थाओं का है जो कि विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। लेकिन ब्रिक्स बैंक जिसका नाम न्यू डेवलपमेंट नरेन्द्र मोदी द्वारा सुझाया गया है, एक दूसरी दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें विश्व की सबसे बड़ी साम्यवादी ताकत चीन शामिल है। इस प्रकार साम्यवाद और पूंजीवाद का अद्भुत संतुलन इस बैंक में देखने को मिलेगा। वैसे भी ब्रिक्स ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान स्थापित कर ली है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस संगठन की अहमियत लगातार बढ़ती जा रही है और ताजा शिखर बैठक इस मायने में अहम है कि उन मसलों को तरजीह मिली, जिनकी बुनियाद पर यह संगठन खड़ा हुआ था। ब्रिक्स बैठक के एजेंडे में सबसे ऊपर था दो वित्तीय संस्थानों के गठन पर अंतिम फैसला। ये दो वित्तीय संस्थान हैं- न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) व आपात निधि कोष (सीआरए)। ये दो संस्थान वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को नया आकार दे सकते हैं। एनडीबी विश्व बैंक की तरह काम करेगा। यह 100 अरब डॉलर के फंड से बुनियादी ढांचों और सतत विकास परियोजनाओं को आर्थिक मदद करेगा। इस नए बैंक का मुख्यालय शंघाई में होगा और इसे 50 अरब डॉलर की शुरुआती पूंजी से खोला जाएगा, जिसमें हर सदस्य देश का समान हिस्सा होगा। वहीं, सीआरए का काम सदस्य देशों को आर्थिक मंदी से महफूज रखना होगा। साथ ही, यह संगठन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसे पश्चिमी संस्थानों पर उनकी निर्भरता घटाएगा।
ब्रिक्स की संभावनाओं के बारे में अब तक काफी कुछ लिखा-सुना जा चुका है। उम्मीद लगाई जा रही है कि यह पश्चिमी आधिपत्य वाले वैश्विक संगठनों की बराबरी करेगा, क्योंकि ब्रिक्स के देश इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले हैं कि वे बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं। ये सदस्य देश मिलकर वैश्विक जीडीपी का 20 प्रतिशत के हिस्सेदार हैं। मौजूदा वैश्विक वित्तीय संस्थान, जैसे कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक अपनी गलत और सख्त नीतियों के कारण बदनाम हैं। आर्थिक मंदी से जूझते देश मानते हैं कि इनकी मदद लेने से उनकी हालत और बिगड़ी है। ऐसे में, ब्रिक्स के ताजा कदम राहत भरे कहे जा सकते हैं। एक दशक पहले जब से यह विचार उत्पन्न हुआ है तथा 2009 में शिखर बैठक की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है तब से भारत न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाता रहा है। अब तक आयोजित सभी 6 शिखर बैठकों में भारत के प्रधान मंत्री ने देश का प्रतिनिधित्व किया है।
पांच देशों के बीच समानताओं एवं सिनर्जी पर आधारित अंत्रा ब्रिक्स व्यापार बढ़कर 203 बिलियन अमरीकी डालर हो गया है तथा नेताओं पूरा विश्वास है कि यह 500 बिलियन अमरीकी डालर पर पहुंच जाएगा। पिछले कुछ वर्षों में, इस समूह ने घोषित सामरिक चरित्र प्राप्त किया है तथा पांचों देश वर्तमान समय के ज्वलंत वैश्विक मुद्दों पर अपने संयुक्त दृष्टिकोण का निर्माण कर रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, शहरीकरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा नवाचारी साझेदारी का निर्माण आदि को शामिल करने के लिए अंत्रा ब्रिक्स सहयोग में दृढ़ता से विस्तार हुआ है।
वैश्विक भू-राजनीति में ब्रिक्स का एक विशेष करेक्टर एवं महत्व है क्योंकि इन पांच देशों का जीडीपी पीपीपी पर 24 ट्रिलियन अमरीकी डालर बनता है, यहां 40 प्रतिशत विश्व की आबादी रहती है तथा विश्व का एक चौथाई भू-क्षेत्र है। ब्रिक्स एक अनोखा समूह है, यह ऐसा समूह नहीं हो जो भूगोल से बंधा है जैसे कि यूरोपीय संघ या आसियान। यह समुदाय आधारित क्लब भी नहीं है जैसे कि ओपेक यह सुरक्षा आधारित गठबंधन नहीं है जैसे कि नाटो। यह विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) पर भारत की निर्भरता को कम करेगा। साथ ही यह अधोसंरचना परियोजनाओं के लिए आसान शर्तों पर कर्ज उपलब्ध कराने का एक नया रास्ता भी खोल देगा। भारत ब्रिक्स बैंक के जरिए चीन और रूस की दिग्गज कंपनियों को अपने बुनियादी क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। वैसे तो संप्रग सरकार के कार्यकाल में ही ब्रिक्स बैंक के गठन का फैसला हो गया था, मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स देशों के छठवें शिखर सम्मेलन में भारत का पक्ष खूब मजबूती से रखा है। इस वजह से बैंक का पहला मुखिया एक भारतीय को बनाने का फैसला हुआ।
सरकारी सूत्र मानते हैं कि यह बैंक कई तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक वरदान साबित हो सकता है। बंदरगाह, सड़क व दूरसंचार नेटवर्क को उन्नत बनाने पर यह बैंक खास तौर पर ध्यान देगा। चूंकि भारत को इन तीनों क्षेत्रों में बहुत ज्यादा फंड की दरकार है, इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा फंड लेने की कोशिश करेगा। इसके अलावा अगर भारतीय कंपनियां रूस में पेट्रोलियम संपत्तियों को खरीदती हैं या दक्षिण अफ्रीका में कोई अन्य ऊर्जा निवेश करते हैं तो यह बैंक उन्हें अतिरिक्त वित्तीय मदद देगा। यही नहीं, ब्रिक्स बैंक चीन व रूस की कंपनियों को भारत निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसके भरोसे सदस्य देशों के बैंक एक-दूसरे के मुल्क में ज्यादा खुलकर निवेश कर सकेंगे।
ये मिलेंगे फायदें
- फंड जुटाने को विश्व बैंक और आईएमएफ पर कम होगी निर्भरता।
- रूस में पेट्रोलियम परिसंपत्तियां खरीदने को मिलेगा आसान कर्ज।
- इसके जरिये चीन की कंपनियों को भारत में निवेश का मिलेगा प्रोत्साहन।
- सड़क, पोर्ट और दूरसंचार क्षेत्र को खास तवज्जो मिलने के आसार।
अब जापान और नेपाल जाएंगे मोदी
सुषमा स्वराज की सफल नेपाल यात्रा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा का मार्ग प्रशस्त हुआ है। वे अगस्त माह के पहले सप्ताह में नेपाल की यात्रा करेंगे। मोदी की नेपाल यात्रा महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हो सकती है। नेपाल का चीन की तरफ झुकाव और वहां माओवाद का शिकंजा ऐसी चिंता है जो भारत को लंबे समय से परेशान कर रही है। मोदी की यात्रा से निश्चित रूप से ड्रेगन का प्रभाव इस पर्वतीय देश में कम करने में मदद मिलेगी। उधर जापान में भी मोदी का उत्सुकता से इंतजार हो रहा है। ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में जाते समय नरेंद्र मोदी जापान की यात्रा भी करना चाहते थे, किंतु ब्रिक्स के पहले मानसून सत्र में देश की नौकरशाही इस तरह व्यस्त हो गई कि मोदी की जापान यात्रा की तैयारियां नहीं हो पाईं। अब मोदी सितंबर माह में जापान जा सकते हैं। उधर अमेरिका में भी मोदी की यात्रा को लेकर तैयारियां चल रही हैं। मोदी अमेरिका में सीनेट को संबोधित कर सकते हैं। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब अमेरिका ने उन्हें वीजा देने से इनकार कर दिया था, लेकिन बदले हुए राजनीतिक हालात में मोदी अमेरिका की पहली पसंद बन गए हैं। वैसे भी विश्व व्यापार संगठन में जिस तरह भारत ने वीटो किया है उसे देखते हुए मोदी की विदेश यात्राओं का हर पड़ाव अहम माना जा सकता है।