19-Feb-2013 10:59 AM
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भोपाल के स्वनामधन्य जेपी अस्पताल के कारनामे दिनो-दिन मशहूर हो रहे है। मरीजों के इलाज की गुणवत्ता और सेवा का आलम तो सर्वज्ञात है ही लेकिन लगता है कि प्रभारी मंत्री से लेकर प्रमुख स्तर तक के सारे अधिकारियों ने इस अस्पताल को अपनी प्रयोगशाला बना डाला है। इसी कारण यहाँ लगातार प्रयोग ही चलते रहते हैं और डॉक्टर, स्टॉफ से लेकर मशीनें तक ठीक होने का नाम ही नहीं लेती। प्रमुख सचिव प्रबीर कृष्ण तो दिन रात मेहनत करके मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर से और बेहतर बनाने के लिए जुटे रहते हैं। लेकिन उनकी इस तत्परता को बाकी लोगों का साथ नहीं मिल पाता। वे अकेले बजट से लेकर अन्य व्यवस्थाओं की मॉनीटरिंग भी करते हैं पर नतीजा सिफर ही रहता है क्योंकि जिन निचले कर्मचारियों पर इन योजनाओं को अंजाम देने का दारोमदार है। वे गहरी नींद में सोए हुए हैं। प्रबीर कृष्ण का कहना है कि अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी नहीं है और न ही बजट की कमी है। लेकिन उनकी इस दावेदारी को चिकित्सक और कर्मचारी दोनों खोखला साबित करने में लगे हुए हैं। राजधानी के ही जयप्रकाश अस्पताल की दुर्दशा के किस्से जब आए दिन सुनाई देते हैं तो जिला अस्पतालों, ग्रामीण अस्पतालों की क्या दुर्दशा होगी उसे समझना कठिन नहीं है। स्वास्थ्य विभाग बामुश्किल भ्रष्टाचार के दलदल से निकलता नजर आ रहा है, लेकिन विभाग के अधिकारियों की खुमारी अभी भी टूटी नहीं है। वे स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की बजाए अपनी खुद की बेहतरी चाहते हैं। डॉक्टर कुछ ले देकर जिला स्तर पर सीएमओ बनने की जुगाड़ बिठाते रहते हैं तो बाकी अन्य अफसर भी मलाईदार पदों पर पहुंचाना चाहते हैं इस प्रक्रिया में स्वास्थ्य सेवाओंं को

बेहतर करना एक स्वप्न ही बनकर रह गया है।
हाल ही में जेपी अस्पताल में हड्डी के फ्रेक्चर का इलाज करवाने आए ओमकार सिंह नामक मरीज को अस्पताल में ऐसे इलाजÓ मिला कि अब वह अपने मर्ज का इलाज कराने कभी किसी सरकारी अस्पताल नहीं जाएगा। रविशंकर बोर्ड कालोनी निवासी ओमकार का बांया पैर कार की टक्कर में टूट गया था। ओमकार को जेपी अस्पताल में भर्ती कराया गया एक्सरे में पता चला कि उनके पैर की एक हड्डी टूट गई है और पास वाली हड्डी में मामूली फै्रक्चर है। अस्थी रोग विशेषज्ञ डॉ. पारस जैन इस प्रकरण को देख रहे थे बाद में ओंकार का आपरेशन कर उनके पैर पर प्लास्टर बांध दिया गया। इसके बाद जब दोबारा उनके पैर का एक्सरे कराया गया तो पैर की टूटी हड्डी तो जुड़ी नहीं बल्कि दूसरी मामूली फ्रैक्चर वाली हड्डी भी एक्सरे में टूटी दिखी। इस घटना से घबराए परिजन ने उन्हें तत्काल एक प्राइवेट अस्पताल में शिफ्ट कर दिया। ओंकार की बहन का कहना है कि पारस जैन ने मरीज का आपरेशन किया था। दूसरे डॉक्टर ने एक्सरे देखा तो पता चला कि केस सुधरने की बजाए बिगड़ गया है और इसमें पैसों के साथ-साथ समय की भी बर्बादी हुई। ऐसे प्रकरण आए दिन सुनाई पड़ते हैं। सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। मुफ्त दवा वितरण से लेकर मुफ्त इलाज तक तमाम सेवाएं सरकार की तरफ से मरीज के स्वास्थ्य के लिए प्रदान की जा रही है। लेकिन स्वास्थ्य महकमें में व्याप्त लापरवाही ने सरकारी योजनाओं को ध्वस्त कर डाला है। ऐसे ही एक घटनाक्रम में जेपी अस्पताल में ही 11 फरवरी को रात्रि 11 बजे 72 वर्षीय शकुंतला माहेश्वरी को एमएलबी कॉलेज में प्रोफेसर उनकी बेटी और दो बेटों ने पसलियों में दर्द की शिकायत होने पर जेपी अस्पताल में पहुंचे। उस वक्त रूम नंबर 12 में डॉ. बलराम उपाध्याय थे। जब मरीज को लेकर उनके पास पहुंचेे तो डॉ. उपाध्याय ने एक अन्य डॉक्टर की सिफारिश के बावजूद मरीज को हाथ लगाना तक मुनासिब नहीं समझा बल्कि मर्ज पूछकर तुरंत ईसीजी के लिए भेज दिया। ईसीजी मशीन खराब थी। वह गलत रीडिंग दे रही थी, उसके बाद डॉक्टर बलराम ने कहा कि इन्हें बगैर जांचों के ही एडमिड करा दिया जाए। साथ ही उन्होंने फिजिशियन डॉक्टर द्विवेदी को काल किया जो कि बमुश्किल 40 मिनट बाद अस्पताल में पहुंचे और पहुंचने के बाद इस तरह चिल्ला रहे थे मानो उनकी नींद में खलल पड़ गया हो और अपने इमरजेंसी के डॉक्टरों को डांट रहे थे कि इतनी इमरजेंसी क्या आ गई थी। अगर मैं इमरजेंसियां देखता रहूंगा तो मेरा क्या होगा। उन्होंने भी पेशेंट को हाथ लगाना मुनासिब नहीं समझा और बिना हाथ लगाए ही कहा कि कल सबेरे 10 बजे ओपीडी में हाजिर हो जाए।
इस तरह की घटनाएं आए दिन हो रही हैं। स्वाइन फ्लु के मरीजों को भी डॉक्टर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकाते हैं। इसी कारण स्वाइन फ्लु के मरीज प्राइवेट अस्पतालों का रुख कर रहे हैं। जेपी हास्पिटल के आईसोलेशन वार्ड में ताला लगा हुआ है। पिछली साल भी स्वाइन फ्लु के समय जेपी अस्पताल में एक भी मरीज को भर्ती नहीं किया गया था। इस साल भी यही आलम है। लोगों का कहना है कि जैसे ही पता लगता है कि मरीज गंभीर हो रहा है तो उसे डॉक्टर दूसरे अस्पताल में रेफर कर देते हैं। अन्य रोगों में भी यही रवैया अपनाया जा रहा है। इसी कारण स्वास्थ्य सेवाएं सरकार की अच्छी मंशा के बावजूद लगातार बदतर होती जा रही हैं।