25-Aug-2014 10:15 AM
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पिछले तीन वर्षों में 39 आईएएस और 7 आईपीएस अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए थे और ये सभी अंग्रेजीभाषी थे। जाहिर है अंग्रेजी जानने से ईमानदारी नहीं आती बल्कि ईमानदारी संस्कारों से
आती है। आईएएस आईपीएस जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं की विडम्बना यह है कि इनको पास करने वाले इंटेलिजेंट या ब्रिलियेंट तो हो सकते हैं किंतु उतने ही संस्कारवान होंगे इसकी गारंटी नहीं है।
इसीलिए इन सेवाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करने की लड़ाई संसद से लेकर सड़क तक लड़ी जा रही है। इस लड़ाई के केंद्र मेें है अंग्रेजी बनाम अन्य भारतीय भाषाओं का युद्ध। देखा जाए तो पूर्वाेत्तर छोड़कर अधिसंख्यक राज्यों में स्थानीय भाषाएं बोली जाती हैं और आईएएस जैसे पेशे में स्थानीय लोगों से ज्यादा संवाद करना होता है लिहाजा स्थानीय भाषाओं की दक्षता ही पर्याप्त है उसके साथ-साथ हिंदी आती हो तो सोने में सुहागा है और यदि अंग्रेजी आती हो तो भी कोई बुराई नहीं है। किंतु विडंबना तब पैदा होती है जब अंग्रेजी इन सारी भाषाओं के सर पर सवार हो जाती है। सीसैट परीक्षा को लेकर यही लड़ाई चल रही है। सीसैट में जो प्रश्र आते हैं उनकी अंग्रेजी का स्तर बहुत मामूली है और इतनी अंगे्रजी तो आईएएस जैसी परीक्षा की तैयारी करने वाले को वैसे भी आ जाती है इसलिए विरोध उस प्रश्रपत्र का न होकर अंग्रेजियत का है जिसके चलते इस देश के तमाम मेधावी छात्र इन महत्वपूर्ण सेवाओं में आने से वंचित रह जाते हैं। अंगे्रजी ज्ञान भारत में एक ऐसी विशेषता समझी जाती है जिसके आधार पर कोई भी व्यक्ति अयोग्य होते हुए भी कई सेवाओं के योग्य समझ लिया जाता है। मौजूदा लड़ाई इसी मनोवृत्ति के खिलाफ लड़ी जा रही है। अंग्रेजी जानने मात्र से किसी व्यक्ति के कौशल और प्रतिभा में चार चांद लग जाते हैं यह सर्वथा गलत है। अंग्रेजी जानना या न जानना अभ्यर्थी के ऊपर छोड़ा जाना चाहिए। यदि वह उचित समझेगा तो सीख लेगा किंतु अंग्रेजी उसके कॅरियर में बाधक बनेगी तो उसमें निश्चित रूप से कुंठा और विरोध पनपेगा।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व विचारक के.एन. गोविंदाचार्य का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 343 कहता है कि हिंदी देश की राजभाषा है। उसे पहली भाषा और अंग्रेजी को दूसरी भाषा के तौर पर लिया जाए। सीसैट में संसद में 1968 मेें पारित राजभाषा संकल्प का उल्लंघन हो रहा है। इसके अनुसार प्रश्र हिंदी में लिखे जाने चाहिए। जिनका अंग्रेजी में
अनुवाद होना चाहिए। लेकिन सीसैट के प्रश्र-पत्र अंग्रेजी में बनते हैं फिर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होता है। यह संविधान की अवहेलना है और संसद में पारित संकल्प का उल्लंघन भी।
पूर्व इलेक्शन कमिश्नर एन गोपालास्वामी का कहना है कि अंग्रेजी की अनिवार्यता का सवाल उचित नहीं है क्योंकि ये उन बच्चों के लिए बेहतर नहीं है जो क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़े हुए हैं। अगर अंग्रेजी इतनी ही जरूरी है तो इसे सलेक्शन के बाद भी सिखाया जा सकता है। दीपांकर गुप्ता का कहना है कि हमें ये स्पष्ट कर लेना चाहिए कि हमें किस प्रकार के सिविल सर्वेंट चाहिए। हमें सबसे योग्य उम्मीदवार चाहिए या हमें ऐसी व्यवस्था चाहिए जहां सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। आंदोलनकारी छात्रों ने ये दिखाने की कोशिश की है कि कैसे 2011 में सी सैट के लागू होने के बाद से हिंदी माध्यम के छात्रों की संख्या में कमी आई है। लेकिन परीक्षा की क्लोजर एग्जामिनेशन रिपोर्ट दूसरी ही कहानी बयां करती है। आंकड़े बताते हैं कि सी सैट लागू होने से पहले 2010 में भी हिंदी माध्यम छात्रों की संख्या बेहद कम थी। 2012 में यह संख्या बढ़ी। जहां 2011 में केवल 1700 छात्र प्रारंभिक परीक्षा में सफल हुए थे वहीं 2012 में यह संख्या 1976 हो गई।
अंक नहीं जोड़े जाएंगे
सरकार ने कहा है कि संघ लोक सेवा आयोग- यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के प्रारूप में और कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। सरकार को मौजूदा परीक्षा में, जो भी बदलाव करना था, वह कर दिया गया है। यूपीएससी एक संवैधानिक निकाय है और केन्द्र इस मुद्दे पर उसके मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। सरकार ने घोषणा की थी कि सिविल सेवा परीक्षा के सी-सैट प्रश्न पत्र में अंग्रेजी के ज्ञान वाले प्रश्नों के अंक पात्रता अथवा वर्गीकरण के आशय से जोड़े नहीं जाएंगे। यह भी घोषणा की गई थी की 2011 में सी-सैट प्रणाली के शुरु में बैठने वाले परीक्षार्थियों को एक मौका और दिया जाएगा। इस बीच, सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों का आंदोलन जारी है। वे सी-सैट को पूरी तरह समाप्त करने की मांग कर रहे है।
R.K. Binnani