25-Aug-2014 10:29 AM
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अब 16 वर्ष की उम्र के किशोर को भी जघन्य अपराधों में किसी पेशेवर अपराधी की तरह सजा दी जाएगी। सरकार जघन्य अपराध में दोषी पाए गए किशोर को 16 वर्ष की उम्र में वयस्क मानने 
संबंधी कानून शीघ्र लाने वाली है। इससे उन अपराधियों को सजा देने का रास्ता साफ होगा जो अवयस्क होने के कारण कठोर सजा से बच जाते हैं। सरकार के सभी मंत्रालयों ने इस उम्र को घटाकर 16 करने के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी है। महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने वर्ष 2000 में बने उस कानून में संशोधन का सुझाव दिया था जिसमें 18 साल तक की उम्र को बचपन और किशोर अवस्था घोषित किया गया है। दरअसल दिसंबर 2012 में जब निर्भया के साथ दिल्ली में जघन्य, पाश्विक बलात्कार हुआ था तो सारे देश में विरोध का जो सैलाब आया था उसके बाद मनमोहन सरकार सख्त कानून बनाने का निर्णय ले चुकी थी किंतु उस समय जेएस वर्मा कमेटी के कुछ सुझावों को दरकिनार कर दिया गया था जिसमें अपराधी की उम्र 16 वर्ष होने पर उसे वयस्कों के समान ही सजा देने और बलात्कार के प्रकरण में फांसी देने का प्रावधान भी था। सरकार ने सहमति से संबंध बनाने की न्यूनतम उम्र उस समय 16 वर्ष बरकरार रखी थी।
प्रश्र यह था कि सहमति से संबंध 16 वर्ष की उम्र में बनाया जा सकता है तो इस उम्र में जबरन बलात्कार करने वाले किशोर को वयस्क मानते हुए सजा क्यों नहीं दी जा सकती? संभवत: इसीलिए जब विपक्ष ने विरोध प्रकट किया तो सरकार ने सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष करने की घोषणा कर दी। लेकिन अब अपराधी को 16 वर्ष की उम्र में वयस्क घोषित करने संबंधी पहल से फिर विरोधाभास पैदा हो गया है। ज्ञात रहे कि डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई थी जिसमें यह मांग की गई थी कि निर्भया कांड में शामिल उस 17 वर्षीय किशोर को भी वयस्क मानते हुए वयस्कों के समान सजा दी जाए। अगर 18 साल से कम उम्र लड़की सहमति से भी शारीरिक संबंध बनाने के लिए कानूनन अयोग्य है तो 18 साल से कम उम्र लड़का जबरन शारीरिक संबंध बनाने के योग्य कैसे करार दिया जा सकता है? सरकार के सक्षम होने की दलील मान भी लें तो फिर लड़कियों के मामले में सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की समय सीमा 18 करने की क्या तुक रह जाता है? अगर लड़कों के मामले में सरकार यह मान रही है कि 18 वर्ष से कम उम्र में शरीर संबंध बनाने में सक्षम हो जाता है, तो लड़कियों के मामले में कानूनन इंकार कैसे कर सकेगी? सरकार का यह विरोधाभाषी प्रस्ताव है जो आनेवाले दिनों में कानूनी पेचीदिगियां पैदा करेगा। मोदी सरकार के इस फैसले से कुछ गंभीर संकट पैदा हो सकते हैं। मसलन, उस वक्त सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र बढ़ाने के लिए जो सबसे बड़ा तर्क दिया गया था वह यही कि पुरुषों के मामले में अगर वयस्क होने की उम्र 18 साल निर्धारित है तो फिर महिलाओं के मामले में यह 16 साल क्यों रहनी चाहिए? उस वक्त सिविल सोसायटी की ओर से जो लोग सहमति से संबंध बनाने की उम्र 18 वर्ष का प्रावधान करने की मांग कर रहे थे उनका सबसे बड़ा तर्क यही था कि ऐसा प्रावधान हो जाने से लड़कियों की मानव तस्करी पर रोक लगाने में मदद मिलेगी। लेकिन अब सरकार पुरुषों के मामले में यह कानूनी बदलाव करने जा रही है कि 16 वर्ष में रेप जैसे गंभीर मामलों में नौजवान किशोर की बजाय वयस्क माना जाएगा तो फिर लड़कियों के मामले में यह 18 साल कैसे रह पायेगा?
सरकार जो प्रावधान कर रही है उसके पीछे तर्क है कि अगर कोई नौजवान 18 साल से कम उम्र में शारीरिक संबंध बना सकता है तो उसे बाल या किशोर कैसे माना जा सकता है? इसका मतलब एक तरफ सरकार यह मान रही है कि शारीरिक विकास 18 साल से पहले ही ऐसा हो जाता है कि शारीरिक संबंध बन सकते हैं। बस सजा सिर्फ इसलिए दी जानी चाहिए कि ऐसे संबंध अगर असहमति से बनते हैं तो बलात्कार की श्रेणी में गिने जायेंगे और उनकी सुनवाई भी नियमित अदालत में ही होनी चाहिए। सरकार की इस बात को सही मान लें तो समझ आता है कि सारा संकट सहमति और असहमति के बीच फंसा है। तब सवाल उठता है कि अभी जो कानूनी प्रावधान किये गये हैं उसके मुताबिक 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सहमति से संबंध बनाना भी बलात्कार के दायरे में आता है। यानी वही सरकार जो नये संशोधन के जरिए एक तरफ यह मानने जा रही है कि 18 साल से कम उम्र में शारिरीक संबंध बनाये जा सकते हैं तो दूसरी तरफ वही सरकार कह रही है कि 18 साल से कम उम्र में शारीरिक संबंध नहीं बनाये जा सकते हैं क्योंकि उस उम्र के पहले तक शरीरिक संबंध बनाने के लिए अविकसित होता है। अगर सहमति से भी ऐसे संबंध बनते हैं तो इसके लिए दोषी नौजवान के लिए अधिकतम उम्रकैद तक का प्रावधान किया गया है। यह सजा तब भी निर्धारित है जबकि यह साबित हो जाए कि संबंध सहमति से बने थे। तो फिर किशोर बलात्कार के ऐसे मामलों में अदालतें क्या फैसला देंगी? लड़के और लड़की के लिए खुद सरकार बालिग और नाबालिग की दो अलग अलग उम्र कैसे कायम रख पायेगी?
देखा जाए तो सरकार को इस कानून को लाने से पहले सहमति से संबंध बनाने की उम्र 16 वर्ष करना चाहिए। भारत जैसे देशों मेें यौन परिपक्वता की उम्र वैसे भी अन्य देशों के मुकाबले कम है क्योंकि यहां की जलवायु के चलते लड़के-लड़की छोटी उम्र में ही परिपक्व हो जाते हैं। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कोई कानून जब बना दिया जाता है तो उसको लागू करते वक्त न्यायालय सभी पहलुओं का ध्यान रखता है। इसीलिए यह कानून बन भी गया तो विरोधाभासों के चलते इसका सदुपयोग शायद ही हो पाए।
Ajay Dheer