25-Aug-2014 10:06 AM
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हाल ही मेें जब पीएससी परीक्षा 2013 में पूछे गए 50 प्रतिशत से ज्यादा प्रश्र एक निजी वेबसाईट और गाइड से मेल खाते हुए पाए गए तो लगा कि किस तरह इतनी महत्वपूर्ण परीक्षा में लापरवाही

की जाती है। यह महज संयोग नहीं था प्रश्रपत्र को देखकर लग रहा था कि गाइड और वेबसाईट को सामने रखकर प्रश्रपत्र सेट किया गया है। यह लापरवाही जानबूझकर हुई या फिर अनजाने में कहना मुश्किल है किंतु इतना सत्य है कि मध्यप्रदेश पीएससी भी व्यापमं की परीक्षाओं की तरह संदिग्ध और अनियमितताओं से भरी हुई है।
मध्यप्रदेश पीएससी को अपेक्षाकृत विश्वसनीय परीक्षा कहा जाता था लेकिन अब लग रहा है कि इस परीक्षा का इतिहास भी अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से भरा पड़ा है तथा आने वाले दिनों में एसटीएफ की जांच में इस परीक्षा से जुड़ा कोई न कोई बड़ा रहस्योद्घाटन अवश्य हो सकता है। फिलहाल 2012 की दोनों परीक्षाएं भी एसटीएफ की जांच में हुये खुलासे के बाद निरस्ती की कगार पर हैं और अब हाल ही में 27 जुलाई को संपन्न हुई 2013 की प्रारंभिक परीक्षा पर भी संदेह के बादल मंडरा रहे हैं। जिसके अधिकांश प्रश्न किसी गाइड से मेल खा रहे हैं। पीएससी द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं के प्रश्रपत्रों में गड़बड़ी कोई नई बात नहीं है। मसलन, एक प्रश्र के एक से अधिक उत्तर होना या फिर विकल्पों में सही उत्तर का न होना आयोग की आदतों में शामिल हो चुका है। 27 जुलाई को संपन्न हुई परीक्षा में भी इस प्रकार की खामियां रहीं लेकिन इस बार कुछ ऐसे खुलासे हुये जिनके कारण प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये किताबें प्रकाशित करने वाले पब्लिकेशन हाऊस भी कटघरे में आ गये हैं। सबसे पहले खबर आई कि अरिहंत पब्लिकेशन की गाईड से लगभग 25 सवाल पूछे गये इसके साथ एक अन्य पब्लिकेशन का नाम भी सामने आया। अब एसटीएफ ने खुलासा किया है। कि पूरा प्रश्रपत्र ही कानपुर के दो पब्लिशरों जायसवाल और कैपीटल डॉटकॉम द्वारा प्रकाशित मॉडल पेपर्स से लिया गया है। यह बात एसटीएफ की पूछताछ में इलियास नामक व्यक्ति ने बताई है। इसमें अब कोई शक नहीं रह गया है कि प्रारंभिक परीक्षा 2013 के प्रश्रपत्र भी बेचे गये हैं। कुछ समय पूर्व हार्ईकोर्ट ने एमपीपीएससी में एक छात्रा द्वारा दिए गए सही उत्तर को जांच कर्ताओं द्वारा गलत करार दिए जाने के निर्णय को बदल दिया था।
सवाल यह है कि जब पहले से ही आयुर्वेद और अन्य परीक्षाओं में पेपर खरीदी और लीक होने जैसे मामलों के चलते जांच की कार्रवाई चल रही थी तो फिर 2013 की प्रारंभिक परीक्षा में सतर्कता क्यों नहीं बरती गई? परीक्षा केंद्रों पर पहचान-पत्र जमा करवाने, अंगूठा लगवाने या अन्य पहचान के प्रमाण जमा करवाने से क्या होना था अगर खेल पहले ही खेला जा चुका था? लाखों परीक्षार्थियों की आंखों में खुलआम क्यों धूल झोंक दी गई। दूसरा पेपर तो छोडि़ए पहले पेपर को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आयोग इस मामले में कितना गंभीर रहा है। आमतौर पर सामान्य ज्ञान के पेपर में करंट अफेयर्स और अन्य प्रश्र ज्यादा से ज्यादा दो—तीन महीने पुराने घटनाक्रमों पर ही होते हैं, लेकिन इस बार के सामान्य ज्ञान के पेपर में अपडेशन जैसी कोई चीज नहीं दिखी। इस पश्र पत्र को देखकर ऐसा लगाता है कि जो प्रश्रपत्र 29 अप्रैल को होने वाली परीक्षा के लिये तैयार किया गया था वही 27 जुलाई को दे दिया गया। इस प्रश्रपत्र में अपडेशन की बात इसलिये की जा रही है क्योंकि अप्रैल के बाद से दो बार और परीक्षा की तिथी बढ़ चुकी थी, लेकिन जो एक बार हो गया सो हो गया पेपर सेट करने वालों ने और आयोग ने भी यह करना जरूरी नहीं समझा क्यों?
जो लोग प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उन्हें अच्छे से पता होगा कि कुछ साल पहले तक सिर्फ यूनिक, प्रतियोगिता दर्पण, क्रॉनिकल जैसी पत्रिकाएं ही बाजार में होती थीं, लेकिन पिछले तीन चार सालों में इंदौर के दो पब्लिकेशन बाजार में काफी चर्चित रहे अरिहंत और पुणेकर। ये भी तथ्य छुपा हुआ नहीं है कि इनसे बाहर के प्रश्र बमुश्किल ही प्रश्रपत्रों में पूछे जाते हों खासतौर से एटीट्यूट टेस्ट और सी-सेट में एसटीएफ की जांच के बाद अब कानपुर के भी कुछ पब्लिशरों के नाम सामने आये हैं। ऐसे में एक बात तो तय है कि इस तरह का मफिया कोई दो-चार महीनों में नहीं पनपा है बल्कि बकायदा इसकी जड़ों को सींचा गया है दबंगों की सरपरस्ती में। एक सवाल यहां यह भी है कि क्या आयोग के पास इतने दक्ष लोग ही नहीं हैं जो ठीक ढंग से पेपर सेट कर सकें? ऐसी कोई परीक्षा नहीं होती आयोग की जिसके प्रश्र पत्रों में गड़बड़ी न हो। आखिर ये स्थिति बनती क्यों है? अगर किसी खास पब्लिशर की किताबों से पेपर तैयार किये भी जा रहे हैं तो क्या उनके साथ इन अधिकारियों के कमीशन का खेल है। क्या आयोग के पास एक ऐसा एक्सपर्ट पैनल भी नहीं है जो त्रुटिरहित पश्रपत्र तैयार करवा सके? या फिर राज्य लोकसेवा आयोग में भी व्यापमं की तरह अभी और परतें उघडऩी बाकी हैं। पेपर बेचने वाले लीक करने वालों को तो एसटीएफ ने पकड़ लिया, लेकिन इसके पीछे वास्तव में आयोग से जुड़े लोग ही होंगे, जिसकी गहराई से जांच की जानी अति आवश्यक है।
यह तो हुई पेपर लीक करने और खरीदी वाली गड़बड़ी की बात। एक गड़बड़ी जो हुई परीक्षा के दौरान कि इस बार अटेंडेंस सीट पर परीक्षार्थी का अंगूठा लगाया जाना था, जो कई सेंटर्स पर लगाया गया, लेकिन कई परीक्षा केंद्रों पर यह नहीं लगवाया गया। ऐसे एक नहीं कई परीक्षा केंद्र हैं जिनमें परीक्षा के दौरान परीक्षर्थियों से सीट पर अंगूठा नहीं लगवाया गया। ऐसा क्यों किया गया इसका जवाब तो परीक्षा केंद्रों के कर्ता-धर्ता ही दे पायेंगे या फिर आयोग। जब इस बारे में राज्य लोकसेवा आयोग की सचिव से बात की गई तो उन्होंने कहा कि अंगूठा लगाना कंपलसरी नहीं था।