भोपाल से दिल्ली तक व्यापमं
31-Jul-2014 11:02 AM 1234992

व्यापमं घोटाले की प्रतिध्वनि भोपाल से दिल्ली की सत्ता के गलियारों में पहुंच गई। इसे वहां पहुंचाने वाले कोई और नहीं बल्कि भाजपा के ही कर्णधार हैं। विपक्ष तो हाथ धोकर सरकार के पीछे पड़ा ही है, लेकिन लगता है कि पानी की बौछारों से घायल सत्यदेव कटारे और अरुण यादव की टीस प्रदेश में सत्तासीन भाजपा के कुछ अहम किरदारों ने भी महसूस की है। केके मिश्रा ने जब प्रेस कांफ्रेंस की थी तो लगा था कि वे अंधेरे में तीर चला रहे हैं। स्वयं मिश्रा को आभाष नहीं था कि तीर निशाने पर बैठ सकता है, लेकिन अंधेरे का तीर शब्दभेदी साबित हुआ और सरकार बैकफुट पर आ गई। अब मुख्यमंत्री हर मंच पर व्यापमं की सफाई देते हैं कि मेरा परिवार दोषी नहीं है।
रास्ते सब बंद हैं...
कूचा ए कातिल के सिवा...
कांग्रेस के प्रदर्शन पर प्रदर्शन जारी है। राज्य के हर क्षेत्र में प्रदर्शन किए जा रहे हैं। दिल्ली में सोनिया के सिपहसालारों द्वारा कान में फूंकने के बाद दिग्विजय सिंह की छवि खराब होने के कारण उन्होंने मध्यप्रदेश में डेरा डालने का प्रयास किया। इसी के चलते उन्होंने भोपाल की एक नामचीन होटल पत्रकारों और कांग्रेसियों को विधानसभा के चलते हुए रात्रि भोज आयोजित किया। भोज का कारण उन्होंने अपने पुराने साथी डंगस... की एक किताब के विमोचन कर डाला। बाद में उसी किताब का विमोचन महामहिम राजपाल से भी दंगस ने करा लिया। इस भोज से मध्यप्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह द्वारा भूचाल लाने की कोशिश की गई। परंतु मध्यप्रदेश के कांग्रेसी दिग्विजय सिंह को  शिवराज की ढाल मान चुके थे। गुना में वे किसानों के मुआवजे को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए, परंतु उन्होंने भूख हड़ताल पर बैठने से पहले यह कह दिया था कि वह नींबू पानी पर ही भूख हड़ताल पर बैठेंगे, लेकिन कांग्रेसियों ने दिग्विजय की चाल को ताड़ लिया और इस बार तिल का ताड़ नहीं बनाया। बल्कि तथ्यों की मिसाइलों के साथ सरकार पर हमला बोल दिया। कभी डंपर कांड में कांग्रेस स्लिप पर कैच कर ली गई थी, लेकिन इस बार कांग्रेस की प्रेक्टिस अभी तक तो कुछ जोरदार प्रतीत हो रही है। बहरहाल खलबली भाजपा के भीतर है और इस खलबली के केंद्र में हैं एक पुस्तिका व्यापमं का सच। इस पुस्तिका के पीछे चाणक्य बुद्धि किसकी है यह कहना तो असंभव है, किंतु इस बार चाणक्य की कुटिलता सरकार पर वूमरेंग कर गई है। लगता है यह पुस्तिका छपवाकर सरकार ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। पुस्तिका के प्रकाशकों ने भूल वश या जानकर रघुनंदन शर्मा की एक नोटशीट बतौर सबूत प्रकाशित कर दी है। इस प्रकाशन के साथ ही रघुनंदन शर्मा कोप भवन में चले गए। जाते भी क्यों नहीं। नोटशीट का प्रकाशन किया जा रहा है इसकी भनक रघुनंदन शर्मा को नहीं थी। यह कौन रणनीतिकार (चित्रकार) है? जिसने रघुनंदन शर्मा जैसे घाघ को विश्वास में लेना उचित नहीं समझा। बहरहाल शर्मा ने भाजपा अध्यक्ष चुनने की बैठक में ही हंगामा कर दिया और चिल्लाने लगे कि मैं अभी प्रेस कांफ्रेंस करता हूं और व्यापमं की हकीकत आलाकमान को बताउंगा इस बौखलाहट को देखते हुए भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने उन्हें शांत किया, लेकिन यह सवाल तो यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा ही हो गया था कि आखिर व्यापमं का सच क्या है और रघुनंदन शर्मा इतने ज्ञानी हैं कि वे व्यापमं का सच जानते हैं। बहरहाल शर्मा ने कुछ खास बातें दिल्ली के मठाधीशों तक पहुंचाई हैं, किंतु भाजपा में नेतृत्व की तासीर बदल चुकी है। अरब सागर से उठती शीतल हवाओं ने भाजपा नेतृत्व को अच्छादित कर रखा है इसलिए मध्यप्रदेश के प्रति उनका रुख क्या है किसी को ज्ञात नहीं। सभी देखो और इंतजार करो के मोडÓ में हैं, लेकिन रघुनंदन शर्मा की शिकायत ने शांत पानी में हलचल तो पैदा की है। इसकी बानगी तब देखने को मिली जब मुख्यमंत्री ने अपने खास सिपहसालार और खेवनहार मनोज श्रीवास्तव को विदाई देने का मन बना लिया। मनोज श्रीवास्तव ने कई मौकों पर कृष्ण बनकर द्रोपती रूपी सरकार को अनावृत होने से बचाया था। चाहे वह नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह द्वारा विधानसभा में सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के बारे में कांग्रेस द्वारा गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए लाया गया स्थगन प्रस्ताव हो या फिर भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस का हल्ला बोल। श्रीवास्तव के तरकस में कुछ ऐसे ब्रह्मास्त्र थे जिन्होंने प्रतिपक्ष के सारे दिव्यास्त्रों को विफल किया। लिहाजा उनको दरकिनार करने की कैफियत समझ से परे है पर मुख्यमंत्री जिस तरह बौखला गए हैं उस बौखलाहट में वे किसी न किसी को हलाल तो करते ही। अब उनकी तलवार के वार के नीचे पहली गर्दन उनके खासमखास की आ गई तो इसमें सीएम का क्या दोष। बहरहाल कांग्रेसी मंसूबों पर बार-बार पानी फेरने वाले मनोज श्रीवास्तव अब सीएम के साथ नहीं हैं और सीएम ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से व्यक्तिगत तौर पर मिलकर चर्चित और विख्यात और थोड़े बहुत कुख्यात इकबाल सिंह बैंस को अपना प्रमुख सचिव बनाने के लिए अर्जी पेश की है। बैंस चाहे करामाती न हों, लेकिन उनकी एक खासियत है कि पूर्व में वे सीएम के प्रमुख सचिव थे तब कांग्रेस अपेक्षाकृत शांत बनी रहती है। हालांकि इसके लिए आरएसएस व संगठन से लेकर तमाम स्तर पर मुख्यमंत्री को विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन जब बैंस सिरमौर हुआ करते थे उस वक्त कांग्रेस के विरोध का सूचकांक थोड़ा नीचा था। डम्पर कांड पर अवश्य कांग्रेस ने हंगामा किया था, लेकिन डम्पर कांड के जंजाल से भी बैंस कुशलता पूर्वक सरकार को निकाल ले गए थे। इसलिए उनका पुनर्वास कोई आश्चर्यजनिक घटना नहीं है।
व्यापमं घोटाले का प्रमुख आरोपी सुधीर शर्मा अचानक प्रकट हो गया। वह कहां से प्रकटा, कैसे प्रकटा इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि शर्मा राजधानी भोपाल से ही अवतरित हुआ। यह गौर करने वाली बात है कि सुधीर शर्मा महीनों तक एसटीएफ को चकमा देने मेें कामयाब रहा और बाद में बड़े नाटकीय ढंग से उसने मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी पंकज सिंह माहेश्वरी की अदालत में समर्पण कर दिया। उसका समर्पण करना तय माना जा रहा था क्योंकि फरारी के चलते उसकी सम्पत्ति कुर्क किए जाने का मामला अदालत में विचाराधीन था और एसटीएफ ने भी शर्मा को भगौड़ा घोषित कर 10,000/- रुपए का ईनाम की राशि की घोषणा भी कर दी थी। शर्मा ने अपनी अग्रिम जमानत की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगा रखी थी। वहां से जमानत रद्द होने के बाद सुधीर शर्मा के पास कोई चारा नहीं था। शर्मा के आत्मसमर्पण ने कई अहम सवालों को जन्म दिया है।
थोड़ा पीछे लौटकर इस वर्ष जनवरी में राजीव गांधी प्राद्योगिकी विश्वविद्यालय के उपकुलपति पीयूष त्रिवेदी, पंकज त्रिवेदी के यहां 29 जनवरी 2014 को पड़े छापे की तरफ देखें तो स्पष्ट समझ में आता है कि यह छापा खानापूर्ति के लिए डाला गया था जिसमें कुछ भी हाथ नहीं लगा। त्रिवेदी के विरूद्ध लोकायुक्त में अपराध क्रमांक 51/2014 दर्ज है लेकिन छापा मारने के लिए उनके भाई पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी सितम्बर 2013 में हुई थी और 7 माह बाद लोकायुक्त पुलिस ने किस के इशारे पर छापे की कार्रवाई की। जाहिर है त्रिवेदी को लीपापोती करने का मौका मिल गया और उसके पास से कोई सबूत भी प्राप्त नहीं हो सके क्योंकि सबूतों को तो उसने पहले ही ठिकाने लगा दिया था। देखा जाए तो यह पूरी कार्रवाई त्रिवेदी को बचाने के लिए की गई क्योंकि त्रिवेदी के हाथ में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य थे जिनसे बड़ी मछलियां आसानी से शिकार हो सकती थीं। पंकज, पीयूष, श्रीमती वंदना और उनके स्व. पिता नटवरलाल कई कॉलेजों में डायरेक्टर रहे हैं। जाहिर सी बात है की कोई भी कॉलेज में डायरेक्टर बनाने के पहले उस संस्था में हिस्सेदारी तय हो जाती है और वही पीयूष त्रिवेदी का परिवार कई इंजीनियरिंग संस्थानों से जुड़े हुए कॉलेजों में हिस्सेदारी रखता है और उसी के वह वाइस चांसलर बने बैठे हैं।
अब खनन कारोबारी सुधीर शर्मा का आत्मसमर्पण भी कुछ इसी अंदाज में हुआ है। व्यापमं का मामला प्याज के छिलकों की तरह खुलता जा रहा है लेकिन जिस तरह प्याज की परत पूरी निकलने के बावजूद हाथ कुछ नहीं लगता उसी तरह इस मामले में भी सूत्रधारों तक कानून का शिकंजा कस पाएगा इसमें संदेह ही है। जिस तरह त्रिवेदी को बचाया गया और शर्मा को सुरक्षित रखा गया तथा उचित समय पर वह प्रकट हुआ उससे साफ समझ में आ रहा है कि व्यापमं की बिसात कुछ इस तरह बिछाई गई है जिससे केवल प्यादे ही पिट पाएंगे। एसटीएफ को कोर्ट ने आदेश दिया था कि सुधीर शर्मा आत्मसमर्पण नहीं करेंगे तो उनकी संपत्ति कुर्क कर ली जाएगी। सवाल यह उठता है कि उनकी संपत्ति कुर्क करने में इतना समय क्यों लगा। सूत्र बताते हैं कि सुधीर शर्मा जानबूझकर पुलिस से छिपता रहा और 4,000 हजार करोड़ी सुधीर शर्मा ने अपने संपत्ति ठिकाने लगा दी। कारण सीधा सा है कि कहीं उसकी संपत्ति प्रवर्तन निदेशालय अटैच न कर ले।
एसटीएफ की तैयारी भी उतनी सटीक नहीं है। अदालत के आदेश के बावजूद एसटीएफ सही समय पर केस डायरी प्रस्तुत नहीं कर पाई जिसके कारण डीएसपी गिरिराज सिंह बघेल को कोर्ट की अवमानना का नोटिस मिलने की नौबत तक आ गई थी उधर व्यापमं का सचÓ नाम से एक पुस्तिका भाजपा की बैठक में वितरित होने के बाद विधानसभा में हंगामा हुआ इसमें कुछ गोपनीय दस्तावेज भी छापे गए हैं। सब इंस्पेक्टर और पीएमटी की परीक्षाओं में घोटाले के आरोपियों से पूछताछ जारी है। एसटीएफ ने सब इंस्पेक्टर परीक्षा 2012 में घोटाले करने के आरोपी इंस्पेक्टर अजय सिंह पवार को गिरफ्तार कर लिया है पवार ने अपने बेटे समेत सात उम्मीदवारों को पास कराया था और हर उम्मीदवार से 8 से 10 लाख रुपए वसूले थे। जाहिर है यह पैसा उसने अकेले हजम नहीं किया होगा। जब तक एसटीएफ उन लोगों तक नहीं पहुंचेगी जिन्होंने विभिन्न परीक्षाओं में प्राप्त रकम हजम की है तब तक कुछ खास हासिल नहीं हो पाएगा। व्यापमं की कई परीक्षाओं में गड़बड़ी करने वाले डॉ. दीपक यादव ने भी पूर्व परीक्षा नियंत्रक एसएस भदौरिया समेत कुछ राजनेताओं के नाम बताए हैं यादव को 16 जुलाई को ग्वालियर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उसका कहना था कि पीएमटी में 2004 से गड़बड़ी हो रही है। पीएमटी 2013 में गड़बड़ी करने वाले पीडब्ल्यूडी के एग्ज्यूक्यूटिव इंजीनियर एसएस रावत ने भी सरेंंडर कर दिया है। रावत पर अपनी बेटी अदिति का दाखिला पैसे देकर कराने का आरोप है।
लेकिन बड़े लोगों को बचाने का खेल जारी है। एसटीएफ ने जिस एक्शन शीट के आधार पर एफआईआर दर्ज की है उस शीट का संविदा शिक्षक वर्ग-2 के दाखिल चालान में जिक्र नहीं है। पंकज त्रिवेदी और नितिन महिन्द्रा का जो मेमोरेण्डम पेश किया गया है वह एफआईआर के अनुरूप नहीं है इसका अर्थ यह हुआ कि जिस आधार पर छोटी मछलियों को जाल में फंसा लिया गया उसी आधार पर बड़ी मछलियां जाल में नहीं फंस पाएंगी। यह दोहरा मापदंड इस पूरे मामले को गोलमाल बना रहा है। पांच वर्ष पूर्व जेईई मामले में गिरफ्तार झारखण्ड के राजीव प्रसाद और पुलिस आरक्षक भर्ती घोटाले में बिहार के ही नमन भण्डारी सहित तमाम आरोपियों की रिमांड के बाद कुछ नए तथ्य सामने आने की संभावना बलवती हुई है। डेन्टल कॉलेज में डीमेट के माध्यम से हुए फर्जीवाड़े की जांच भी रफ्तार पकड़ सकती है।
एमपी पीएससी घोटाले मेंं अंतर्देशीय रैकेट शामिल
मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग के घोटाले का जाल भी सारे देश में फैला हुआ है बिहार, उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों से इसके तार जुड़े हुए हैं। कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान की भांजी को केंद्र में रखकर इस घोटाले पर सदन में हंगामा किया लेकिन यह मामला ज्यादा बड़ा है और कई नामी-गिरामी लोग इसकी चपैट में आ सकते हैं। फिलहाल तो पांच व्यक्तियों के खिलाफ एसटीएफ ने एफआईआर दर्ज की है।
एसटीएफ के मुताबिक झारखंड निवासी राजीव प्रसाद ने खुलासा किया है कि उसने एमपी पीएससी की मेन्स की परीक्षाओं के पर्चों की भी तैयारी कराई थी। उसने यह तैयारी पेपर होने से दो दिन पूर्व बनारस के एक होटल में कराई थी। राजीव ने पूछताछ में बताया है कि पीएससी की वर्ष 2012 परीक्षा के पर्चे उसने प्रिंटिंग प्रेस से हथियाए थे।
राजीव प्रसाद के साथ आगरा केंट निवासी दिनेश कपिल, विनय कुमार डेन्डे और बिहार के पटना निवासी संजय कुमार यादव चार जुलाई से रिमांड पर थे। आरोपियों को दिल्ली तिहाड़ जेल से आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी पेपर लीक मामले में प्रोडक्शन वारंट पर लाया गया था।

पीयूष त्रिवेदी क्यों है बाहर?
व्यापमं घोटाले की जद्दोजहद में हम प्रदेश के उन छात्रों का अभिनंदन करना तो भूल ही गए जो राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में बेहतरीन माक्र्स पा रहे हैं। पहले कभी इस विश्वविद्यालय का रिजल्ट 20 प्रतिशत के करीब ही हुआ करता था, लेकिन अब पास होने वाले छात्रों की दर अचानक बढ़ गई है। उनके माक्र्स भी बेहतर आ रहे हैं। यह चमत्कार कैसे संभव हुआ। निश्चित रूप से पीयूष त्रिवेदी जैसे करामाती व्यक्ति को इसका श्रेय देना पड़ेगा, लेकिन क्या करें मजबूरी है। जिस तरह का माहौल है उसके चलते हर सफलता के पीछे षड्यंत्र नजर आता है। वैसे पीयूष चतुर्वेदी का रिकार्ड भी काबिले गौर है और वे व्यापमं घोटाले की आंच से बचने में कामयाब कैसे हो गए यह शोध का विषय हो सकता है।

इसके बाद भी नहीं चेते
मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में एक ही पिता के पुत्र या पुत्री होना वरदान साबित हो गया क्योंकि परीक्षा आयोजकों की कृपा से बहन-भाईयों को आगे पीछे रोल नंबर अलॉट कर दिए गए। हालांकि इस भूल को सुधार लिया गया लेकिन यह तो पता चल ही गया है कि परीक्षाओं में गड़बड़ी कितनी आसान है ऐसा ही कुछ प्री-पीजी फर्जीवाड़े मेंं सीटों की खरीद फरोख्त को लेकर हुआ था जिसके बाद एसआईटी ने भाजपा के पूर्व मंत्री शीतला सहाय के दामाद डॉ. बीआर श्रीवास्तव सहित आठ के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। खास बात यह है कि सीटों का सौदा करने का यह कारोबार भी व्यापमं के पूर्व कंट्रोलर सुधीर सिंह भदौरिया के जरिये चलता था जो पंकज त्रिवेदी से जुड़ा हुआ था। यह सारे अंतरसंबंध इस बात का प्रतीक हैं कि ईमानदार प्रत्याशियों का हक मारने वाले एक-दूसरे के कितने मददगार हैं। दुख की बात यह है कि जिन शीतला सहाय की स्मृति में कुछ पत्रकारों को पुरस्कृत किया जा रहा था उन्हीं के दामाद की वीरगाथा के चर्चे से पेपर भरे हुए थे।

झा का कृपापात्र सुधीर शर्मा
व्यापमं घोटाले के प्रमुख आरोपी सुधीर शर्मा की सत्ता के गलियारों में पहुंच अब रहस्य का विषय नहीं है। वह (प्रदेश के कुछ समाचार पत्रों ने सुधीर शर्मा के लिए सम्मानित शब्दों का प्रयोग किया है क्यों यह तो वे ही जानें) प्रभात झा का करीबी था और उन्हीं की कृपा से मध्यप्रदेश शिक्षक सेल का अध्यक्ष बनाया गया था। बाद में शर्मा ने सत्ता के कई प्रभावशाली लोगों की निकटता अपनी प्रतिभाÓ के दम पर प्राप्त कर ली और इस नैकट्य ने उसके आर्थिक सशक्तिकरण में व्यापक योगदान दिया। शायद जांच-पड़ताल का रुख इस ओर भी मुड़े।

कौन है सुधीर शर्मा?
सुधीर शर्मा आचार्य से विदिशा के एक कॉलेज में संविदा आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर था। यह 90 के दशक की बात है। विदिशा आकर वह सिरोंज के तत्कालीन विधायक लक्ष्मीकांत शर्मा का करीबी हो गया। बाद में उसने भोपाल स्थित एक कॉलेज में पोस्टिंग हासिल की। इसके अलावा वह शर्मा का ओएसडी भी रहा। लक्ष्मीकांत शर्मा के खनिज राज्यमंत्री बनने के बाद वर्ष 2006 में पढऩे-पढ़ाने का काम वाला सरकारी नौकरी छोड़कर वह खनन के व्यवसाय में उतर गया। फिर शुरू हुआ भोपाल, दिल्ली, मुंबई, सहित अन्य बड़े शहरों में संपत्ति खरीदने का सिलसिला। चंद वर्षों में ही वह करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन बैठा। एक एक कर कई कम्पनियां बनती चली गयी।  सितम्बर 2013 में  एक के बाद एक नई कंपनियां बनाता गया। दो साल पहले जब इनकम टैक्स अधिकारियों ने उसके ठिकानों पर दबिश दी तो सुधीर के पास चार हजार करोड़ रुपए की संपति होने का अनुमान जताया।  छापे के दौरान शर्मा के घर से ही तीन करोड़ रुपए नगद मिले थे। केन्द्रीय जांच ब्यूरो की भोपाल शाखा ने भाजपा में सत्ता और संगठन से जुडे खनिज व्यवसायी सुधीर शर्मा पर शिकंजा कसते हुए आयकर विभाग की एक रिपोर्ट के आधार पर जोनल कंट्रोलर आफ माइंस, इंडियन ब्यूरो आफ माइंस (आईबीएम) डायरेक्टर जनरल माइंस एंड सेफ्टी (डीजीएमएस) के अधिकारियों एवं एक निजी खनिज फर्म एसआर फैरो एलायज से संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध किया था। सीबीआई की एक विज्ञप्ति के अनुसार इन अधिकारियों एवं फर्मो के खिलाफ आयकर विभाग की एक एप्रेजल रिपोर्ट के आधार पर प्रकरण पंजीबद्ध किये गये थे।  इस रिपोर्ट में इस बात के पर्यापत सबूत बताये गये थे कि उक्त निजी फर्म द्वारा अधिकारियों को राशि का भुगतान किया गया है।  विज्ञप्ति के अनुसार इन नियामक संस्थाओं के अधिकारी जबलपुर, नागपुर और सूरत स्थित खदानों से संबंधित हैं। विज्ञप्ति में कहा गया कि आयकर विभाग के निदेशक (इन्वेस्टिगेशन) के.जी.गोयल की एक शिकायत, जिसमें आईटी एक्ट की धारा 132 के तहत एसआर फैरो के विभिन्न संस्थानों पर मारे गये आयकर छापे की एप्रीजल रिपोर्ट शामिल है, के आधार पर प्रकरण दर्ज किये गये हैं। सूत्रों के अनुसार एप्रेजल रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि कि एस आर फैरो द्वारा 12 लाख रुपये से अधिक का भुगतान आईबीएम एवं डीजीएमएस के अधिकारियों को किया गया है। उक्त फर्म खनिज उत्खनन से जुडी है और झाबुआ जिले के कजली डोंगरी में मेगनीज अयस्क तथा जबलपुर जिले के ग्राम सिंदुरसी में लोह अयस्क उत्खनन में लगी हुई थी।  तब तक एसआर फैरो के मालिक सुधीर शर्मा भाजपा में सत्ता और संगठन से जुडे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में अपना दबदबा कायम कर चुके थे। आयकर विभाग ने 2012 में भी उसके  विभिन्न संस्थानों पर छापा मारा था।

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^