25-Aug-2014 09:59 AM
1234762
बीते दिनों की एक तस्वीर है जिसमें इंदिरा गांधी नटवर सिंह के विवाह में बतौर गवाह दस्तखत कर रही हैं। इससे समझ में आता है कि देश के प्रथम परिवार और कांग्रेस के परवरदिगारों से नटवर

की कितनी निकटता थी। लेकिन अचानक ये क्या हो गया कि नटवर उस परिवार के प्रति हमलावर हो गए जिसकी कृपा से राजनीति में उनकी थोड़ी-बहुत पहचान बन पाई थी। दरअसल नटवर ने अपनी किताब वन लाइफ इज नॉट एनफÓ में सोनिया गांधी और उनके परिवार पर जो निशाना साधा है उसकी भूमिका तो उस समय ही बन गई थी जब नटवर सोनिया के खयालों की रहगुजर से ओझल हो गए थे। नटवर ने बहुत कोशिश की किंतु राजनीतिक पैतरेबाजी के चलते वे प्रथम परिवार के प्रियवर नहीं बन सके। अपनी किताब में यदि नटवर नेहरू गांधी परिवार से दूर हो जाने की कैफियत भी बताते तो किताब ज्यादा रोमांचक हो सकती थी।
यह स्वयं सिद्ध है कि कांग्रेस के डीएनए में परिवार राज है। इसलिए जो परिवार को प्रिय होता है वही सत्ता में फलता-फूलता है और जिसे परिवार का स्नेह न मिले उसकी हालत नटवर जैसी हो जाती है। नटवर से पहले भी कई कांग्रेसी बागी हुए हैं लेकिन उन्होंने बकायदा लेखन करके अपनी बगावत खुलेआम प्रकट नहीं की थोड़े बहुत शब्दों में अपनी नाराजगी जताते हुए उन्होंने तौबा कर ली। संभवत: वह लोग कुछ गुंजाइश छोडऩा चाहते थे। लेकिन नटवर मान बैठे हैं कि कांग्रेस ही नहीं बल्कि राजनीति में भी अब उनका भविष्य शून्य है। भाजपा से उनकी अगली पीढ़ी की निकटता कई सोपान आगे बढ़ चुकी है। लिहाजा नटवर बेबाकी से लिख पढ़ सकते हैं और जो मन में आए कह सकते हैं। लेकिन उनका दर्द जिस तरह बयां हो रहा है उससे तो यही लग रहा है कि उनकी नाराजगी का कारण कांग्रेस में हुई उनकी उपेक्षा है। यदि उन्हें यह उपेक्षा नहीं झेलनी पड़ती तो शायद यह किताब उतनी आक्रामक न होती। लेकिन किताब लिखी गई है तो उसमें दिए गए तथ्यों को खारिज नहीं किया जा सकता चाहे वह राजीव गांधी की शाहबानो मामले, अयोध्या में विवादास्पद ढांचे या दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र आंदोलन जैसे मुद्दों पर की गई नादानी हो या फिर अहंकार वाले अज्ञानियों की टीम पर राजीव गांधी की निर्भरता हो। यह सारे तथ्य बहुत महत्वपूर्ण हैं और उतना ही महत्वपूर्ण है अरूण सिंह का ऑपरेशन ब्रॉसस्टैक्स के बारे में राजीव गांधी को अंधेरे में रखना जिसके चलते भारत-पाकिस्तान युद्ध की कगार पर पहुंच गए थे। नटवर ने और भी कई खुलासे किए हैं लेकिन सोनिया पर उनका हमला कुछ इस तरह का है कि सोनिया तिलमिला उठी हैं और उन्होंने भी किताब लिखने का ऐलान कर दिया है। यदि ऐसा हुआ तो लालकृष्ण आडवाणी, जसवंत सिंह, नटवर सिंह जैसे तमाम नेताओंं की कतार में सोनिया भी खड़ी हो जाएंगी।
बहरहाल नटवर ने बताया है कि सोनिया अंतरआत्मा की आवाज पर नहीं बल्कि अपने बेटे की आवाज पर प्रधानमंत्री पद से दूर रहीं थीं। नटवर का तो यह तक कहना है कि इस अंश को हटवाने के लिए सोनिया अपनी बेटी प्रियंका के साथ उनसे निजी तौर पर मिलने भी आईं थीं। संभवत: नटवर सही बोल रहे हैं क्योंकि इस किताब के बाद जो प्रतिक्रिया सोनिया गांधी ने दी वैसी प्रतिक्रिया मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की पुस्तक पर नहीं दी थी।
2005 में तेल के भोजन घोटाले में संप्रग सरकार से इस्तीफा देने वाले नटवर ने यह भी बताया है कि सोनिया के पास हर फाइल जाती थी किंतु फिर भी गांधी परिवार कांग्रेस को जोड़े रखता है अन्यथा कांग्रेस 5 टुकड़ोंं में बंट जाती। नटवर सिंह का कहना है कि 50 कांग्रेसियों ने नटवर सिंह को फोन करके सच लिखने के लिए बधाई दी है। यह कांग्रेसी कौन हैं क्या इसका खुलासा नटवर अगली किताब में करेंगे क्योंकि सोनिया गांधी के जीवन को नटवर सिंह ने चार हिस्सों में बांटा है। पहला फेज 25 परवरी 1968 को राजीव गांधी के साथ शादी से शुरु होता है, जो बेफिक्री का है। दुनिया में एक अलग और ताकतवर पहचान पाने का है। जिन्दगी में सारे सुकून का एहसास करने का है। लेकिन इसके बाद से सोनिया की जिन्दगी बदलती है। 31 अक्टूर 1984 के बाद से सोनिया के जिन्दगी एकदम बदल जाती है। जब गोलियों से छलनी इंदिरा गांधी को आर के धवन के साथ सोनिया गांधी कार से एम्स ले जाती हैं। खून से लथपथ इंदिरा गांधी के साथ एम्स पहुंचते पहुंचते सोनिया गांधी को भी सियासी खून का एहसास हो जाता है। इसीलिये जैसे ही राजीव गांधी के पीएम बनने की बात होती है, वैसे ही सोनिया यह कहने से नहीं चूकती कि अगर आप प्रधानमंत्री बने तो तो मारे जायेंगे और राजीव गांधी यह कहकर पीएम बनते है कि मैं तो वैसे भी मारा जाऊंगा। 1984 से 1991 तक सोनिया के इस जीवन में तीसरा बदलाव राजीव गांधी की हत्या के बाद शुरु होता है। मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी खुद को एकदम अकेले पाती हैं। लेकिन कांग्रेस के भीतर की कश्मकश में राजीव गांधी के बाद कौन वाली परिस्थितियों में सोनिया गांधी नटवर सिंह से ही सलाह लेती हैं। और नटवर सिंह इंदिरा के करीबी पीएन हक्सर से सलाह लेने का सुझाव देते हैं। हक्सर उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा का नाम रखते हैं। और शंकरदयाल शर्मा जब पीएन हक्सर गोपी अरोड़ा को यह कहकर खाली लौटे देते हैं कि उनकी उम्र और तबियत पीएम पद संभालने की इजाजत नहीं देती तो फिर अगला नाम पीवी नरसिंह राव का सामने आता है। यानी सोनिया की खामोश राजनीति भी कांग्रेस के लिये मायने रखती है। और 1998 में यह खामोशी टूटती है तो नटवर सिंह की कलम सोनिया गांधी के लिये एक नये हालात को देखती हैं। 14 मार्च 1998 को दिल्ली के सीरीफोर्ट में सोनिया गांधी बेटी प्रियंका गांधी के साथ राजनीति में कूदने के लिये पहुंचती हैं और नटवर सिंह को बगल में बैठाती हैं तो सोनिया सानिया के नारे से कांग्रेस के भीतर यह सोच कर उल्लास भर जाता है कि कांग्रेस सत्ता में लौटेगी। कांग्रेस 2004 में सत्ता में लौटती भी है। लेकिन सत्ता में लौटने के बाद भी सोनिया गांधी पीएम बनने से इंकार करती तो इंकार गांधी परिवार की सियासी राजनीति को उड़ान दे देता है। ध्यान दें तो नटवर सिंह की कलम से निकली वन लाइफ इज नाट इनफ 2004 के बाद के बाद सोनिया गांधी के उस पांचवें शेड को राजनीतिक के ऐसे कटघरे में खड़ा कर देती है, जहां से गांधी परिवार की साख खत्म दिखायी दे। और आखिरी सवाल यही से खड़ा हो रहा है कि अब कांग्रेस का क्या होगा जिसके लिये गांधी परिवार ही सबकुछ है।
सोनिया गांधी और तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव के बीच के सर्द रिश्ते पूर्व विदेशमंत्री नटवर सिंह की आत्मकथा में खुलकर सामने आ गए। सिंह के अनुसार सोनिया ने कभी राव को पसंद नहीं किया जबकि राव को इसकी वजह कभी समझ नहीं आई। राव ने सोनिया के साथ अपने रिश्ते ठीक करने के लिए दिसंबर 1994 में सिंह की मदद ली। राव ने तब सिंह से कहा था कि वे सोनिया से निबट सकते हैं, लेकिन वे ऐसा नहीं करना चाहते हैं और सोनिया के सलाहकार मेरे खिलाफ उनके कान भर रहे हैं। सिंह तब नेहरू-गांधी परिवार के बहुत नजदीक थे। पूर्व विदेशमंत्री ने अपनी आत्मजीवनी में लिखा कि केंद्रीय कार्यसमिति के एक या दो वरिष्ठ सदस्यों ने यह छवि बनाई कि वे (सोनिया) सुधार प्रक्रिया से खुश नहीं हैं और राव उनको नजरअंदाज कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के तकरीबन सभी वरिष्ठ सदस्य इससे वाकिफ थे कि गांधी उनसे नाराज हैं। उन्होंने लिखा कि आने वाले माह में एक मोड़ आया जब 7 आरसीआर (प्रधानमंत्री निवास) और 10, जनपथ के बीच संवाद लगभग समाप्त हो गया।
किताबें जिन पर बवाल मचे
जिन्ना: इंडिया-पार्टिशन-इंडिपेंडेंस—जसवंत सिंह ने लिखी विवाद हुआ।
द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर-मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने लिखी विवाद हुआ।
मनमोहन सिंह क्रूसेडर ऑर कॉन्सपिरेटर कोलगेट एण्ड अदर ट्रुथ्स—रिटायर्ड प्राशसिन अधिकारी पीसी पारख।
मिशन आर एण्ड ए डब्ल्यू—गुप्तचर एजेंसी रॉ के रिटायर्ड अधिकारी आरके यादव ने लिखी चर्चित नहीं हुई।