21-Aug-2014 06:54 AM
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नेशनल हेरॉल्ड अखबार अब पंडित जवाहर लाल नेहरू की बौद्धिक विरासत के रूप में नहीं बल्कि विवादित संपत्ति के रूप में चर्चित है। कभी नेहरू ने इस अखबार को आजादी की आवाज बनाना चाहा

था लेकिन बाद में यह कांग्रेस की आवाज बन गया। इस अखबार का कांग्रेसीकरण इसके पतन का कारण बना और 2008 में 70 वर्ष की आयु में इस अखबार ने दम तोड़ दिया। किंतु कांग्रेस के लगभग 50 वर्ष के शासन में अखबार की जो आर्थिक सेहत बनी उससे लगभग 2000 करोड़ रुपए की स्थाई पूंजी खड़ी हो गई। यह पूंजी ही विवाद पैदा कर रही है।
कभी इस अखबार को बचाने के लिए कांग्रेस ने 90 करोड़ रुपए का बिना ब्याज का कर्ज भी दिया था लेकिन असली विवाद तब पैदा हुआ जब 26 अप्रैल 2012 को यंग इंडिया कंपनी ने इस अखबार के मालिकाना हक वाले एसोसिएटेड जर्नल्स को मात्र 50 लाख रुपए में अधिग्रहित कर लिया जबकि इसकी परिसंपत्तियां 1600 करोड़ रुपए की बताई जाती हैं। यंग इंडिया कंपनी में 76 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हैं। जाहिर है यह उनकी निजी मिलकीयत है और इस प्रकार अखबार भी उनकी निजी मिलकीयत बन गया। अब प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है और इस मामले की जांच में कहीं मनी लॉड्रिंग का कोई मामला तो नहीं बनता है। इस जांच को कांग्रेस ने एनडीए सरकार की साजिश बताया है। पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा है कि यह सब राजनीतिक बदले की भावना से किया जा रहा है। 26 जून को निचली अदालत ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी सहित तीन अन्य लोगों को हेराल्ड मामले में समन जारी किया था, जिसमें उनसे यह स्पष्टीकरण मांगा गया है कि क्या उन्होंने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर व्यक्तिगत फायदों के लिए पद का दुरुपयोग किया था। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने गांधी परिवार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि ये परिवार हेराल्ड की संपत्तियों का अवैध ढंग से उपयोग कर रहा है। इनमें दिल्ली का हेराल्ड हाउस और अन्य संपत्तियां शामिल हैं। वे इस आरोप को लेकर 2012 में कोर्ट गए। कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद फिलहाल सोनिया-राहुल को राहत प्रदान की है, लेकिन कब तक यह देखना बाकी है। भोपाल में भी महाराणा प्रताप कॉम्पलेक्स में नेशनल हेराल्ड की जमीन पर विशाल मेगामार्ट सहित तमाम व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्णय दिया था लेकिन इसके बाद भी ये गतिविधियां जारी हैं। प्रेस कॉम्पलेक्स को लेकर नोटिस भी दिया जा चुका है। एमपी नगर के जोन वन में तीस साल पहले नेशनल हेराल्ड ग्रुप को अखबार के नाम पर एक एकड़ जमीन बीडीए ने लीज पर आवंटित की थी। कुछ समय तक यहां से हेराल्ड समूह का अखबार नवजीवन प्रकाशित भी हुआ। बाद में वित्तीय संकट के चलते समाचार पत्र का प्रकाशन बंद करना पड़ा। तत्कालीन गु्रप के प्रबंधन ने इस जमीन को किसी और को हस्तांतरित कर दिया। इसके बाद यहां भव्य व्यापारिक परिसर स्थापित हो गया जिसमें विशाल मेगामार्ट, जैसे कई और भी बड़े प्रतिष्ठान स्थापित हैं। तीस साल की अवधि पूरी होने पर भोपाल विकास प्राधिकरण ने व्यापारिक प्रतिष्ठानों को लीज नवीनीकरण का नोटिस जारी किया, लेकिन जमीन के वर्तमान कर्ता-धर्ता ने कोई जवाब नहीं दिया और न ही लीज रेंट अदा किया। प्राधिकरण करीब छह माह तक जवाब का इंतजार करता रहा और किसी ने भी उससे संपर्क नहीं किया। बाद में प्राधिकरण ने निर्णय लिया था कि मेगा मार्ट वाले भवन का कब्जा वापस लेकर इस पर ताला लगाया जाए। उल्लेखनीय है कि हाल ही में बीडीए ने प्रगति पेट्रोल पंप पर अपना कब्जा वापस ले लिया था। यह मामला भी विशाल मेगामार्ट की तरह था, जिसमें लीज निरस्त करने के बाद बीडीए ने कब्जा प्राप्त किया। संबंधित पार्टी न्यायालय भी गई जहां से निर्णय प्राधिकरण के पक्ष में हुआ था। एमपी नगर जोन वन और जोन टू में कई ऐसे भूखंड हैं जहां हस्तांतरण तो हो गया, पर बीडीए को इसकी जानकारी नहीं दी गई और न ही लीज रेंट जमा किया गया। अब इन सभी की सूची तैयार की जा रही है ताकि संस्था इन पर अपना कब्जा ले सके। सभी को नोटिस जारी कर लीज नवीनीकरण के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन शहर के व्यावसायिक क्षेत्र महाराणा प्रताप नगर के नजदीक स्थित प्रेस कॉम्प्लेक्स में यह अकेला मामला नहीं है। सरकार की ही मानें तो यहां तीन दर्जन से अधिक अखबारों द्वारा जमीन की लीज संबंधी प्रावधानों का मनमाने तौर पर उल्लंघन जारी है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अखबारों को व्यावसायिक गतिविधि मानते हुए सभी भूखंड आवंटियों को व्यावसायिक दर से रकम वसूलने के नोटिस जारी किए थे। मगर सरकार उनसे 510 करोड़ रुपये की यह रकम अब तक वसूल नहीं कर पाई है। 30 साल के लिए दिए गए अधिकतर भूखंडों की लीज साल 2012 के पहले समाप्त हो चुकी है। एक भी लीज का नवीनीकरण न होने के बावजूद अखबार मालिकों के लिए प्रेस कॉम्प्लेक्स व्यावसायिक गतिविधियों का गढ़ बना हुआ है। वहीं सरकार पर इसका सीधा असर राजस्व में हो रहे करोड़ों रुपये के नुकसान के तौर पर पड़ रहा है।
अस्सी के दशक में दो रुपये 30 पैसे प्रति वर्ग फुट के हिसाब से 39 भूखंड बांटे गए थे। भोपाल विकास प्राधिकरण (बीडीए) ने इस बड़े क्षेत्र को विकसित करने का बोझ भी अपने खर्च पर उठाते हुए अखबारों के लिए बिजली की निरंतर आपूर्ति जैसी तमाम सुविधाएं दीं। 30 साल के लिए दिए गए अधिकतर भूखंडों की लीज साल 2012 के पहले समाप्त हो चुकी है। प्रेस कॉम्प्लेक्स का मौजूदा भाव 20 हजार रुपये प्रति वर्ग फुट से अधिक है और यही वजह है कि आज प्रेस कॉम्प्लेक्स में प्रेस से अधिक व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स दिखाई देते हैं। इस मामले में नया मोड़ तब आया जब एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल और अस्पताल से ठीक विपरीत मीडिया को व्यावसायिक गतिविधि मानते हुए रियायती दर पर आवंटित जमीन पर नाराजगी जताई। साथ ही उसने राज्य सरकार को अखबारों से जमीन आवंटन की तारीख से व्यावसायिक दर पर रकम वसूलने का निर्देश भी दिया। इसके बाद आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 2006 में एक सर्वे किया। अखबार के संपादन और छपाई संबंधी कार्यों के लिए जारी हुए भूखंडों में यदि अपवादों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर को प्रकाशकों द्वारा व्यावसायिक संपत्ति में बदल दिया गया है। कुछ प्रकाशकों ने भूखंड बेच दिए हैं जबकि कुछ ने उसके आधे से अधिक हिस्से पर आवासीय और व्यावसायिक परिसर बनाकर किराए पर दे दिया। इसके अलावा कुछ ने अखबार के कार्यालय में ही अपनी दूसरी कंपनियों के कॉरपोरेट कार्यालय खोल दिए हैं। 2006 में बीडीए ने अनुबंध के विरुद्ध भूखंडों के उपयोग परिवर्तन को लेकर सभी प्रकाशकों को वसूली नोटिस भेजे थे लेकिन अब तक वसूली की रकम पांच गुना बढऩे के बावजूद किसी से यह रकम नहीं ली जा सकी है। प्रकाशकों का तर्क है कि यदि उन्हें आवंटन के दौरान ही यह स्पष्ट कर दिया जाता कि बाद में उनसे बाजार दर वसूली जाएगी तो हो सकता है कि वे अपना अखबार यहां के बजाय कहीं और से चलाते।
स्वामी के आरोप
्रसोनिया-राहुल की कंपनी यंग इंडिया ने दिल्ली में सात मंजिला हेराल्ड हाउस को किराये पर कैसे दिया। इसकी दो मंजिलें पासपोर्ट सेवा केंद्र को किराये पर दी गईं जिसका उद्घाटन तत्कालीन विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने किया था। यानि यंग इंडिया किराये के तौर पर भी बहुत पैसा कमा रही है।
द्यराहुल ने एसोसिएटेड जर्नल में शेयर होने की जानकारी 2009 में चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में छुपाई और बाद में 2 लाख 62 हजार 411 शेयर प्रियंका गांधी को ट्रांसफर कर दिए. राहुल के पास अब भी 47 हजार 513 शेयर हैं।
द्यआखिर कैसे 20 फरवरी 2011 को बोर्ड के प्रस्ताव के बाद एसोसिएट जर्नल प्राइवेट लिमिटेड को शेयर हस्तांतरण के माध्यम से यंग इंडिया को ट्रांसफर किया गया जबकि यंग इंडिया कोई अखबार या जर्नल निकालने वाली कंपनी नहीं है?
द्यकांग्रेस द्वारा एसोसिएट जर्नल प्राइवेट लिमिटेड को बिना ब्याज पर 90 करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज कैसे दिया गया जबकि यह गैर-कानूनी है क्योंकि कोई राजनीतिक पार्टी किसी भी व्यावसायिक काम के लिए कर्ज नहीं दे सकती?
द्यजब एसोसिएटेड जर्नल का ट्रांसफर हुआ तब इसके ज्यादातर शेयरहोल्डर मर चुके थे ऐसे में उनके शेयर किसके पास गए और कहां हैं?
द्यआखिर कैसे एक व्यावसायिक कंपनी यंग इंडिया की मीटिंग सोनिया गांधी के सरकारी आवास 10 जनपथ पर हुई?
क्या है नेशनल हेराल्ड से जुड़ा पूरा विवाद...
द्य पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना की।
द्य अखबार की स्थापना 8 सितंबर 1938 को लखनऊ में की गई थी।
द्य अखबार के पहले संपादक भी पंडित जवाहर लाल नेहरू ही थे।
द्य प्रधानमंत्री बनने तक नेहरू नेशनल हेराल्ड बोर्ड के चेयरमैन रहे।
द्य आजादी की लड़ाई में इस अखबार ने अहम भूमिका अदा की।
द्य अखबार ने बाद में हिंदी नवजीवन और उर्दू कौमी आवाज अखबार भी निकाला।
द्य आजादी के बाद भी नेशनल हेराल्ड कांग्रेस का मुखपत्र बना रहा।
द्य खराब आर्थिक हालात के चलते 2008 में अखबार का प्रकाशन बंद हो गया।
द्य 2008 में अखबार का मालिकाना हक एसोसिएटेड जर्नल्स के पास था।
द्य नेशनल हेराल्ड को चलाने वाली कंपनी एसोसिएट जर्नल्स ने कांग्रेस पार्टी से बिना ब्याज के 90 करोड़ का कर्ज लिया।
द्य कांग्रेस ने कर्ज देने का मकसद कंपनी के कर्मचारियों को बेरोजगार होने से बचाना बताया।
द्य नेशनल हेराल्ड अखबार का प्रकाशन इसके बावजूद दोबारा कभी शुरू नहीं हुआ।
द्य 26 अप्रैल 2012 को यंग इंडिया कंपनी ने एसोसिएटेड जर्नल्स का मालिकाना हक हासिल कर लिया।
द्ययंग इंडिया कंपनी में 76 फीसदी शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हैं।
द्यइनमें से 38 फीसदी सोनिया गांधी और 38 फीसदी राहुल गांधी के हैं।
द्यबाकी शेयर सैम पित्रोदा, सुमन दुबे, मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के पास हैं।
द्ययंग इंडिया ने हेराल्ड की 1600 करोड़ की परिसंपत्तियां महज 50 लाख में हासिल कीं।
Rajesh Borkar