राज्यसभा में सरकार की मुसीबत
21-Aug-2014 06:37 AM 1234753

केंद्र में सत्तासीन भाजपा सरकार लोकसभा में भले ही भारी बहुमत में हो किंतु राज्यसभा में सरकार की मुसीबत बरकरार है और कई अहम बिल पारित होने से अटक सकते हैं। वैसे सरकार के पास संयुक्त सत्र बुलाने का विकल्प है किंतु सरकारें आम तौर पर संयुक्त सत्र से बचा करती हैं। इसीलिए लोकसभा में बहुमत में आई भाजपा ने अब कांग्रेस को तेलंगाना सहित तमाम विधेयकों पर दिए गए सहयोग का स्मरण दिलाया है लेकिन लगता है कि कांग्रेस फिलहाल सरकार पर नरमी दिखाने के मूड में नहीं है।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद न मिलने से भी कांग्रेस खफा है इसलिए सरकार को कई अहम विधेयकों में या तो संयुक्त सत्र बुलाना होगा या फिर विपक्ष को मनाना होगा। मौजूदा परिस्थिति में आगामी ढाई साल सरकार राज्यसभा में अल्पमत में ही रहेगी बहुमत तभी मिल सकेगा जब बिहार, उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भाजपा को विधानसभा की अधिक से अधिक सीटें मिलें और उसके सहयोगी दल भी अच्छा प्रदर्शन करें। इसीलिए बीमा विधेयक पर सरकार के समक्ष धर्म संकट उत्पन्न हो गया है। कांग्रेस का कहना है कि अगर किसी विधेयक को दोनों सदनों में से किसी ने पारित नहीं किया है तो संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर बिल पारित करवाने का कोई प्रावधान नहीं है। सरकार की दुविधा यह है कि उसने राज्यसभा में पहले ही बिल प्रस्तुत कर दिया है जहां वह अल्पमत में है। सरकार का कहना है कि इससे पहले सत्तासीन यूपीए इस विधेयक को पारित कराना चाहता था। हालांकि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे गलत बताया है। कांग्रेस का कहना है कि इस विधेयक को राज्यसभा में पहले ही प्रस्तुत कर दिया गया है इसलिए सरकार विधेयक पर कोई ऑर्डिनेंस जारी नहीं कर सकती है। कांग्रेस की मांग है कि विधेयक को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए उधर सरकार बीजेपी का मानना है कि इससे बेवजह देर होगी। 243 सदस्यों वाली राज्यसभा में एनडीए के पास 56 सांसद हैं। इस तरह उच्च सदन में इस विधेयक को पास कराने के लिए एनडीए को दूसरे दलों का समर्थन लेना होगा। सरकार बीमा सेक्टर में विदेशी निवेश की सीमा 26त्न से बढ़ाकर 49त्न करना चाहती है। सत्ता पक्ष आश्वस्त दिख रहा था कि राज्यसभा में छोटे दलों के समर्थन से वह बिल को पास करा लेगा। इसके लिए सरकार को एआईएडीएमके, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी का साथ चाहिए। सरकार ने एनसीपी और बीजेडी को यह मांग छोडऩे के लिए राजी कर लिया कि इंश्योरेंस लॉज (अमेंडमेंट) बिल को राज्यसभा की सिलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाए। वाम दल, टीएमसी, बीएसपी और कांग्रेस के साथ कुछ अन्य दल अपने रुख पर अड़े रहे। राज्यसभा में कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा ने इस बैठक में कहा कि बिल में एफडीआई के कंपोजिट नेचर को लेकर कांग्रेस चिंतित है। सरकार ने कहा कि अगर बहुमत की राय होगी तो इस पॉइंट को हटा दिया जाएगा।
कांग्रेस ने 49त्न एफडीआई की शर्त पर यह कहते हुए ऐतराज जताया कि इससे फॉरेन शेयरहोल्डर को एक तरह से कंट्रोलिंग स्टेक मिल जाएगा। विदेशी बीमा कंपनियों की ओर से क्लेम्स के पेमेंट में देरी पर भी सवाल उठा। बिल की शब्दावली पर कांग्रेस ने आपत्ति की तो सत्ता पक्ष ने कहा कि यह वही बिल है, जिसे पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने राज्यसभा में पेश किया था। इस पर शर्मा ने कहा कि तब वित्तीय मामलों की स्थायी समिति के तत्कालीन चेयरमैन बीजेपी के यशवंत सिन्हा ने बिल के कई प्रावधानों पर सवाल उठाए थे, लिहाजा अब इसे सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए। इस बिल पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा ऐतराज एफडीआई और एफआईआई रूट को लेकर है। यूपीए सरकार ने जब इस बिल का मसौदा तैयार किया था, तो तब उसने कहा था कि इंश्योरेंस सेक्टर में 49 पर्सेंट की एफडीआई एक शर्त के साथ की जाएगी। इसमें 23 पर्सेंट एफडीआई के रूट से निवेश होगा, जबकि 26 फीसदी एफआईआई के रूट से होगा।  एनडीए ने इस शर्त को हटा दिया है। कांग्रेस का कहना है कि यह इंश्योरेंस सेक्टर के लिए अच्छा नहीं है। इसके अलावा वोटिंग राइट पर भी पंगा है। कांग्रेस चाहती है कि विदेशी कंपनियों की वोटिंग राइट को पहले शून्य कर दिया जाए। बाद में निवेश और इंश्योरेंस सेक्टर के प्रदर्शन के आधार पर विदेशी कंपनियों का वोटिंग राइट तय किया जाए। एनडीए ने वोटिंग राइट को 26 पर्सेंट पर स्थिर रखने का फैसला किया है। वोटिंग राइट का मतलब होता कि निवेश के बाद कंपनियों द्वारा नीतिगत फैसलों में वोटिंग करने का अधिकार। मोदी सरकार किसी भी हालत में इस बिल को इसी सत्र में पारित करना चाहती है। सरकार को इस बात की आशंका है कि यदि यह बिल पारित नहीं हुआ, तो इसका असर विदेशी निवेशकों और विदेशी निवेश पर निगेटिव पड़ेगा। भारत द्वारा डब्ल्यूटीओ में टीएफए करार का विरोध करने पर विदेशी कंपनियां काफी नाराज है। यदि इंश्योरेंस बिल पारित नहीं हुआ तो इंटरनैशनल मार्केट में यह संदेश जाएगा कि मोदी सरकार का भी इकनॉमी रिफॉर्म को लेकर काम करने की रफ्तार कम है। यह भी यूपीए सरकार की स्टाइल में ही काम करती है।
वित्त मामलों के सचिव अरविंद मायाराम का कहना है कि इकनॉमी के मोर्चे पर सरकार ने लक्ष्य तय किए हैं, उनको पाने के लिए एक तो खर्च करना पड़ेगा, दूसरे आमदनी बढ़ाना होगी, तीसरे विदेशी निवेश बढ़ाना होगा। तीनों में से कोई भी पक्ष हमारा कमजोर हुआ, तो आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति काफी मुश्किल होगी। कांग्रेस के विरोध की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि यदि इस बिल को लेकर कांग्रेस थोड़ा बहुत विरोधी सुर नहीं अपनाती तो विपक्ष में मौजूद तमाम दल उससे दूरी बना सकते हैं। ऐसे में पहले से ही संख्याबल से जूझ रही कांग्रेस विपक्ष में एकदम अलग-थलग पड़ सकती है। वहीं, अब यह बात और है कि विपक्षी दलों में भी बिल के विरोध को लेकर एकता नहीं है। कुछ दल बिल के समर्थन में हैं। एनसीपी और बीजेडी ने बिल का सपोर्ट करने का फैसला किया है।  दरअसल भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के समय भाजपा ने तत्कालीन सरकार का पुरजोर विरोध किया था। हालांकि यह भी सत्य है कि इस विधेयक का मसौदा एनडीए सरकार के कार्यकाल में ही तैयार किया गया था। अब कांग्रेस भी उसी तर्ज पर एक ऐसे विधेयक के विरोध में खड़ी हो गई है जिसका मसौदा कांग्रेस के कार्यकाल में ही तैयार किया गया था।

 

Renu Agal

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