वार जोन के फ्लाई जोन में मंडराती मौत
31-Jul-2014 10:08 AM 1234784

यूक्रेन के अलगाववादियों ने जिस फ्लाई जोन में मलेशिया के यात्री विमान को बीच हवा में मिसाइल से उड़ाकर 80 बच्चों और महिलाओं सहित 298 जानें ले लीं, उसी फ्लाई जोन से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विमान भी एक-डेढ़ घंटे बाद गुजरने वाला था जिसका मार्ग बाद में बदला गया। इस हादसे के बाद जांच-पड़ताल होगी, एक-दूसरे पर दोष मढ़ा जाएगा, खेद व्यक्त किया जाएगा लेकिन इससे उन लोगों की जान वापस नहीं आएगी जिनका रूस और यूक्रेन के युद्ध से कोई लेना-देना नहीं है। फिलिस्तीन की गाजापट्टी से लेकर यूक्रेन तक और सीरिया से लेकर ईराक तक जो लड़ाईयां चल रही हैं उनमें मरने वाले निर्दाेष ही हैं। उनका कसूर सिर्फ इतना है कि वे उन मिसाइलों, तोप के गोलों, बंदूक की गोलियों और हवाई हमलों के निशाने पर हैं जो एक-दूसरे के ऊपर आतंकियों, विद्रोहियों या विभिन्न देशों की सेनाओं द्वारा दागे जा रहे हैं।
निश्चित रूप से रूस मेें निर्मित लॉन्चर से छोड़ी गई मिसाइल ने उस युद्धभूमि को इन यात्रियों के श्मशान में बदल दिया। इसलिए रूस भले ही दुनिया के सामने सफाई दे लेकिन वह इस हादसे की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। इसीलिए विश्व के सारे नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय पड़ताल की मांग की है। इस घटना के बाद रूस तथा पश्चिम जगत के संबंध शीतयुद्ध की स्थिति में पहुंचने का खतरा उत्पन्न हो गया है। क्योंकि यूके्रन के विद्रोहियों को ९्य३७ क्च्य सरफेस टू एयर मिसाइल प्रणाली रूस की ही देन है जिसने मलेशिया एयललाइन के एमएच-17 विमान को हवा में ही मार गिराया था। यह प्रणाली 72 हजार फीट की ऊंचाई तक विमानों को निशाना बना सकती है। मलेशियाई विमान तो मात्र 33 हजार फिट की ऊंचाई पर उड़ रहा था। ट्विटर पर किसी सैनिक अधिकारी ने ट्वीट भी किया था कि विद्रोहियों ने कुछ समय पहले ही यह मिसाइल हासिल की है जो 70 किलो विस्फोटक ले जाने में सक्षम है। विद्रोही इससे पहले दो युद्धक विमानों को मार चुके थे और तीसरे विमान को भी उन्होंने इसी धोखे में उड़ा दिया लेकिन जब तक उन्हें गलती का पता चलता 298 जानें जा चुकी थीं। इस दुर्घटना के बाद यूके्रन ने एक ऑडियो भी जारी किया जिसमें विद्रोही कथित रूप से इस हमले के बारे में एक-दूसरे से बात कर रहे हैं और कह रहे हैं कि जो विमान उड़ाया गया है वह मिलिट्री का नहीं था बल्कि यात्री विमान था। एक विद्रोही को यह कहते हुए बताया गया है कि वे वार जोन में सिविल विमान क्यों उड़ा रहे थे। इससे साफ है कि यह हमला भले ही अंजाने में हुआ लेकिन हमला करने वाले निश्चित रूप से वे विद्रोही ही हैं जिन्हें रूस का समर्थन प्राप्त है। इस हमले के बाद रूस के कई देशों से रिश्ते बिगड़ सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया ने तो स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि रूस ने हमले पर सही रूख नहीं अपनाया तो वह अलग-थलग पड़ जाएगा। इस हमले के बाद यूक्रेन में रूस के हितों को ठेस पहुंचेगी। संभवत: विद्रोहियों को दिए जा रहे समर्थन से भी रूस पीछे हट सकता है।
ईंधन बचाने के चक्कर में गईं जानें
इस मार्ग पर यात्री विमान न उड़ाने की चेतावनी पहले ही जारी कर दी गई थी लेकिन संभवत: विमान कंपनी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और ईंधन बचाने के फेर में वह रास्ता चुना। आठ जुलाई को स्टेट एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ यूक्रेन ने विद्रोहियों द्वारा मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट को हवा में मार गिराए जाने मामले के बाद हवाई क्षेत्र में नागरिक विमानों की आवाजाही बंद कर दी थी। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अहम सवाल ये है कि क्या मलेशियाई चालक दल को इस बात की जानकारी थी। क्या फ्लाइट सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें इस तरह की किसी चेतावनी से आगाह किया था। दोनेत्स्क के ऊपर से राडार स्क्रीन से ओझल होने से पहले तक जेट 490 नॉट की रफ्तार से 33,000 फीट की उंचाई पर उड़ान भर रहा था। माना जा रहा है कि मलेशियाई एयरलाइंस के पायलटों ने चेतावनी को नजरअंदाज किया था और ईंधन बचाने के लिए यूक्रेन रूट का इस्तेमाल किया था। एविएशन एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हवाई हमले में एमएच 17 के सभी लोगों की मौत गंभीर मसला है। यह हादसा अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और रूस के कूटनीतिक संबंधों में बड़े बदलाव ला सकता है। अगर यह पता चलता है कि मॉस्को से भेजे गए हथियारों से बोइंग 777 को अलगाववादियों ने गिराया तो इसके बाद यूक्रेन संकट को लेकर चल रही बहस की कहानी ही पूरी तरह बदल सकती है। पिछले कुछ दिनों में पश्चिमी सरकारों में इस पर काफी चिंता जताई गई है कि रूस पूर्वी यूके्रन में अलगाववादियों को सैन्य मदद बढ़ा रहा है। भारी सैन्य सामान रूस से सीमा पार कर अलगाववादियों को पहुंचाए जा रहे हैं। जवाब में अमरीका ने मॉस्को पर आर्थिक पाबंदियां कड़ी कर दी हैं- जो काफी कड़ी और ज्यादा मजबूत कार्रवाई है। हालांकि यूरोपीय संघ अभी तक अमरीका के इस कदम का अनुसरण करने में नाकाम रहा है। अगर इस हादसे में रूस का किसी भी रूप में हाथ था तो यूरोपीय संघ पर कड़े प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव और बढ़ेगा इससे इस संकट के कूटनीतिक हल के लिए नए सिरे से तेजी आएगी। रूस साफ तौर पर अलगाववादियों की अनदेखी नहीं कर सकता। मगर साथ ही लगता है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को भी यह स्पष्ट नहीं है कि इस खेल का अंत क्या होगा।  इस हमले के बाद रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से बात की। ओबामा ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वो यूक्रेन की सरकार के संपर्क में रहें। वहीं अमेरिकी सीनेटर का कहना है कि यूक्रेन की सरकार के पास ऐसे हथियार नहीं है।

अलजीरिया का विमान गिरा
अफ्रीका के माली में अलजीरिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त होने से इस पर सवार सभी 116 लोगों की मृत्यु हो गई। विमान हादसे की यह तीसरी बड़ी घटना थी। यह विमान उड़ान भरने के 50 मिनट बाद ही दुर्घटना का शिकार हो गया। 23 जुलाई को भी ताइवान की ट्रांसएशिया एयरवेज का विमान रनवे पर फिसल गया था जिसमें 48 यात्रियों की मौत हो गई थी। वर्ष 2014 में अभी तक 5 बड़े विमान हादसे हो चुके हैं। जिनमें से 2 मलेशियाई विमान के हैं।

पहले ऐसा हो चुका है
4 अक्टूबर 2001- रशियन सिबिर टुपलोव-154 विमान तेल अवीव से नोवोसिबिर्स्क की तरफ जा रहा था। इस विमान में 78 यात्री सवार थे और अधिकांश इजराइल से निवासी थे। यह विमान हादसा क्रीमियन कोस्ट से 300 किलोमीटर से कम दूरी पर हुआ। करीब एक हफ्ते बाद कीव ने स्वीकार किया कि यह हादसा यूक्रेन द्वारा दुर्घटनापूर्वक एक मिसाइल दागने के चलते हुआ था।  
3 जुलाई 1988- ईरान का एअरबस ए-300 ईरान के बंदर अब्बास से दुबई की ओर जा रहा था। यह विमान उड़ान भरने के कुछ ही देर बार मिसाइल के जरिए मार गिराया गया। होमुर्ज जलडमरूमध्य में गश्ती के दौरान यूएस ने इस विमान को दो मिसाइल मारकर गिरा दिया था। यूएस ने इसे लड़ाकू विमान मानकर हमला किया था। इस हमले से विमान में सवार 290 यात्रियों की मौत हो गई। इस गलती के लिए यूनाइटेड स्टेट ने ईरान को 101.8 मिलियन डॉलर (61339.6 लाख रुपए) का हरजाना दिया था।   
1 सितंबर 1983- साउथ कोरिया के बोइंग 747 विमान को साखलिन आइसलैंड के ऊपर सोवियत फाइटर जेट ने खदेड़कर मार गिराया। इस हादसे में सवार सभी 269 यात्री और क्रू मेंबर मारे गए। सोवियत संघ ने हादसे के पांच दिन बाद यह स्वीकार किया था कि उसने साउथ कोरिया के प्लेन को मार गिराया है।   
27 जून 1980- इटली के इटाविया एअरलाइंस का विमान बोलंगा से पेलर्मो की ओर जा रहा था। इसमें 81 यात्री सवार थे। उस्टिका आइसलैंड के पास इसमें आधी रात को धमका हुआ। ऐसा माना गया कि अमेरिकन और फ्रेंच फाइटर ने गलती से मिसाइल दागी थी। वाशिंगटन ने इस बात को पूरी तरह से खारिज कर दिया जबकि फ्रांस के रक्षा मंत्रालय ने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।  
21 फरवरी 1973- लीबियन अरब एअरलाइन बोइंग 727 त्रिपोली से कैरियो की तरफ उड़ान भर रहा था। इसे इजराइली फाइटर जेट द्वारा सिनाई रेगिस्तान में मार गिराया गया। इस हमले में विमान में सवार 112 लोगों में से सिर्फ चार ही जिंदा बच पाए थे।

गजा पट्टी
गजा पट्टी इस्रायल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक 6-10 किमी. चौड़ी और कोई 45 किमी लम्बा क्षेत्र है। इसके तीन ओर इसरायल का नियंत्रण है और दक्षिण में मिस्र है। हालांकि जमीन के सिर्फ दो तरफ इसरायल है पर पश्चिम की दिशा में भूमध्यसागर में इसकी जलीय सीमा इसरायल द्वारा नियंत्रित होती है। गजापट्टी में कोई 15 लाख लोग रहते हैं जिसमें कोई 4 लाख लोग अकेले गजा शहर में रहते हैं। गजापट्टी का इतिहास 1948 में इस्राइल के निर्माण के साथ शुरु होता है पर इस क्षेत्र के सम्पूर्ण इतिहास के लिए इसरायल का इतिहास देखा जा सकता है। 1948 में इसरायल के निर्माण के बाद यहाँ बसे अरबों के लिए अर्मिस्टाइस रेखा बनाई जिसके तहत गजा पट्टी में अरब, जो सुन्नी मुस्लिम हैं, रहेंगे तथा यहूदी इसरायल मे रहेंगे। 1948 से लेकर 1967 तक इसपर मिस्र का अधिकार था पर 1967 के छ:दिनी लड़ाई में, जिसमें इसरायल ने अरब देशों को निर्णायक रूप से हरा दिया, इसरायल ने मिस्र से यह पट्टी भी छीन ली जिसके बाद से इसपर इसरायल का नियंत्रण बना हुआ है। 2005 में इसरायल ने फि़लीस्तीनी स्वतंत्रता संस्था के साथ हुए समझौते के तहत गजा और पश्चिमी तट से बाहर हट जाने का फेसला किया। साथ ही इसरायल ने गजा तथा पश्चिमी तट पर स्थित यहूदी बस्तियों को भी हटाने का काम शुरु किया। 2007 में हुए चुनाव में हमास ने इसकी सत्ता हथिया ली जो इसरायल और संयुक्त राष्ट्र सहित कई देशों के अनुसार एक आतंकवादी संगठन है। हमास और  इसरायल के बीच लगातार लड़ाई चलती रहती है जिससे यह इलाका  दुनिया का सबसे अशांत क्षेत्र है।

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