कट्टरपंथ की जकड़ में औरत
19-Feb-2013 10:57 AM 1234784

कश्मीर में तीन लड़कियां बेहतरीन संगीत की प्रस्तुति दे दी रही थीं उनका रॉक बैंड प्रदेश ही नहीं देश में भी लोकप्रिय हो चला था। उनकी आवाज की अनुगूंज सरहदों के पार सुनाई देने लगी थी, किंतु यह मधुर ध्वनि गोलियों और चीत्कारों की आवाज सुनने वाले कट्टरपंथियों को बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने मजहबी दलीलों का, कानूनों का हवाला देते हुए प्रगाश बैंड पर प्रतिबंध का फतवा जारी कर दिया। घोषणा की गई कि गाना और संगीत इस्लाम के खिलाफ है। यह घोषणा इसलिए भी पुरजोर तरीके से की गई क्योंकि उस बैंड की संचालिका महिलाएं थीं और कुछ कट्टरपंथी इस्लामी कानूनों का हवाला देते हुए लंबे समय से महिलाओं को परदे के पीछे धकेलने का षड्यंत्र करते रहे हैं। प्रगाश का मतलब है पहली किरण। इसका सही भावार्थ निकाला जाए तो तमसो मा ज्योतिर्गमय-यानी अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का आवाहन है, किंतु लगता है इस देश का कट्टरपंथ अंधेरी, गहरी खाइयों में से बाहर निकलना ही नहीं चाहता और औरतों के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए पुरजोर कोशिश करना चाहता है। दुनिया के बेहतरीन कलाकार मुसलमान ही हैं और उनमें भी महिलाओं की तादाद अच्छी खासी है। इसके बावजूद इन लड़कियों के बढ़ते कदमों को कट्टरपंथियों ने रोक दिया है। आलम यह है कि फेसबुक पर मिली रही धमकियों के मद्देनजर इन तीन स्कूली लड़कियों ने संगीत से ही तौबा कर ली है। लोकतांत्रिक भारत के लिए यह एक शर्मनाक घटनाक्रम है। हालांकि सामाजिक संगठनों से लेकर मुस्लिम इदारे तक इस फतवे का विरोध कर रहे हैं, राज्य सरकार कार्रवाई करने का वादा कर रही है, एफआईआर भी दर्ज की गई है लेकिन डरी सहमी लड़कियों ने बैंड बंद करने का फैसला कर लिया है।
वे खुद सामने आने से कतरा रही हैं और उन्हें ट्रेनिंग देने वाले अदनान मट्टू का कहना है, पहले उन्होंने तय किया था कि वे लाइव कंसर्ट नहीं करेंगी, लेकिन सरकार के नियुक्त उलेमा ने ही जब उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया, तो उन्होंने बैंड को ही खारिज करने का फैसला कर लिया। सुरीले गले के लिए मशहूर राज बेगम, नसीम बेगम और गुलाम नबी आजाद की पत्नी शमीमा आजाद की परंपरा वाले कश्मीर में ये लड़कियां नई किरण फैलाना चाहती थीं। मौलाना के इस फतवे को लेकर धर्म के जानकार भी हैरत में हैं।
करीब सवा करोड़ की आबादी वाला जम्मू कश्मीर की 97 फीसदी जनता मुसलमान है लेकिन आम आबादी खुद को कट्टरपंथ के बंधन में नहीं बांधना चाहता। कश्मीर विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता मुस्लिम जान का कहना है कि उलेमा बशीरुद्दीन अहमद का फतवा सही नहीं है, आप कैसे कह सकते हैं कि अगर ये गा रही हैं तो यह इस्लाम को पसंद नहीं। ये पढ़ी लिखी लड़कियां हैं, इन्हें खुद भी पता है कि क्या जायज है, क्या नाजायज। जब आप इसमें धर्म की बात जोड़ते हैं, तो मुझे लगता है कि आप मजहब को गलत तरीके से रख रहे हैं। भारत के 15 फीसदी से ज्यादा लोग मुसलमान हैं। संख्या के हिसाब से इंडोनेशिया के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम भारत में रहते हैं। लेकिन उनकी छवि आम तौर पर सहिष्णु और उदारवादियों की है, कट्टरपंथ की नहीं।
भारतीय मुसलमानों में शिक्षा की जबरदस्त कमी है और 50 फीसदी से कम मुस्लिम महिलाएं साक्षर हैं। दूसरे समाजों की तरह मुस्लिम समाज भी औरतों को दबाना चाहता है। आम मुसलमान भले ही प्रगाश बैंड के साथ हो लेकिन कम उम्र की लड़कियां फतवे और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर मिल रही धमकियों से डर गई हैं। सरकार ने फेसबुक पर धमकी देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की है लेकिन बैंड की एक सदस्य ने कश्मीर छोड़ कर बैंगलुरु जाने का फैसला किया है। कश्मीर आम तौर पर गायिकी या संगीत की वजह से नहीं, हिंसा की वजह से चर्चा में रहता है। हालांकि बीच बीच में रहमान राही को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने या काजी तौकीर के इंडियन आइडल जीतने पर भी उसका नाम होता है। राही ज्ञानपीठ जीतने वाले पहले कश्मीरी कवि हैं।
प्रगाश बैंड को धमकी जानबूझकर दी गई है। कश्मीरी कट्टरपंथी कश्मीर के लोगों को भारत की मुख्यधारा में न आने देने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यह प्रयास सांस्कृतिक और साहित्यक स्तर पर भी किए जाते रहे हैं। कश्मीर ेअलगाववादियों का कहना है कि भारत से नाता रखने की हर कोशिश को वे कुचल देंगे। इसी कारण इन लड़कियों के बढ़ते कदमों को क्रूरता पूर्वक रोका गया। हालांकि कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इन लड़कियों को हौसला दिया है, लेकिन लड़कियां अच्छी तरह जानती है कि कश्मीर में उमर अब्दुल्ला से ज्यादा अलगाववादियों को सुना जाता है खासकर महिलाओं के प्रति पुरातनपंथी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के प्रयास धर्म के नाम पर किए जाते हैं और इसके लिए कश्मीरियत की दुहाई दी जाती है। बहरहाल अब इस घटना के बाद शायद ही कोई लड़की संगीत या कला की दुनिया से जुडऩा चाहेगी। फिलहाल तो कश्मीर में बंदूकों की आवाज और निर्दोष लोगों की चींखें ही सुनने को मिलती हैं जो आतंकवादियों के शिकार बनतें हैं।
डॉ. माया

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