04-Feb-2013 11:26 AM
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भारतवर्ष में महिलाओं के बीच सुरक्षित प्रसव आज भी एक चुनौती है और प्रसव के दौरान प्रसूता की मौत का आंकड़ा लगातार भयानक बना हुआ है. हालाँकि सरकारें मातृत्व मृत्यु दर को कम करने का प्रयास कर रहीं हैं किन्तु यह हमेशा की तरह ऊंची बनी हुयी है इसका कारण यह है कि ज्यादातर प्रसव आज भी सुशिक्षित डाक्टरों के हाथों नहीं बल्कि स्थानीय नर्सों, दाईओं के हाथों सम्पन्न होते हैं।

भारत में अन्य देशों की अपेक्षा महिलाओं और बच्चों की मृत्युदर काफी अधिक है जिससे यह पता चलता है कि यहां स्वास्थ्य की देखभाल की स्थिति अच्छी नही है। भारत में प्रसव के दौरान मातृ-मृत्यु पर (एमएमआर) 550-570 है। इसका मतलब है 37 में से एक महिला अपने जीवन के इस खतरे को झेलती है। चीन और श्रीलंका से यह एमएमआर 4 से 5 गुणा अधिक है। भारत में एक तिहाई से भी कम महिलाओं को प्रसव पूर्व पूरी देखभाल प्राप्त होती है। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र में केवल एक तिहाई महिलाओं का ही सुरक्षित प्रसव होता है। दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में निजी अस्पताल फल-फूल रहे हैं जो अनावश्यक तौर सिजेरियन ऑपरेशन करते हैं। बच्चे को जन्म देते समय अधिकांश महिलाएं केवल इसलिए काल कवलित हो जाती हैं क्योंकि उन्हें समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता। सरकार यूं तो संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए जननी सुरक्षा योजना अंतर्गत आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करती है लेकिन प्रसव के लिए संस्थाओं तक सुरक्षित परिवहन की सुविधाओं के अभाव में सुरक्षित प्रसव आज भी चुनौती ही बने हुए हैं। हालात यह है कि दूरदराज के गांवों में आज भी स्थितियां विषम होने पर लोग ट्रैक्टर अथवा सार्वजनिक परिवहन की बसों में सफर तय करते हैं इससे प्रसूता को बेहद विषम स्थिति का सामना करना पड़ता है। इससे बचने के लिए प्रसव परिवहन योजना लागू की गई है लेकिन बेहतर संचालन के अभाव में यह भी सभी की पहुंच में नहीं है। तमाम बाधाओं को पार करते हुए यदि अस्पताल पहुंच भी जाएं तो उचित इलाज मिलने में तमाम मुश्किलें सामने आती हैं। सरकार जनस्वास्थ्य पर कुल मिलाकर 150 रूपए प्रति व्यक्ति ही खर्च कर रही है। इस स्थिति में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाना बेमानी ही लगता है। मप्र का ही उदाहरण लें तो यहां सड़कें अपनी व्यवस्था को लेकर बदहाल हैं। हाईवे और नेशनल हाईवे की हालत इतनी ज्यादा खराब है कि बीस किमी के सफर को भी घंटों में तय करना पड़ता है। इसी से दूरदराज की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसका असर सबसे ज्यादा आपातकाल में करना पड़ता है। अमूमन संकट की स्थिति में दूरदराज के गांवों से संकट के समय किसी प्रसूता महिला को निकटस्थ स्वास्थ्य केन्द्र तक लाने में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसमें कई बार महिला को रास्ते में बेहद असुरक्षित परिस्थितियों में प्रसव पीड़ा झेलनी पड़ती है। महकमे में प्रसव परिवहन योजना चलाई है। इसके लिए प्रसव परिवहन के लिए संबंधित व्यक्ति को सहायता मुहैया कराई है। लेकिन प्रसव से जुड़ी तमाम योजनाओं में से लगभग छह सौ रूपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं। संस्थागत प्रसव के लिए दी जाने वाली 14 सौ रूपए की राशि में से भी दौ सौ रूपए चेक के नाम से वसूल कर लिए जाते हैं। होना यह चाहिए कि सभी अस्पतालों के पास प्रसूताओं के लिए दी जाने वाली राशि एडवांस होनी चाहिए, जिससे उन्हें तुरंत सहायता दी जा सके और उसका उपयोग वह तब कर सकें जबकि उन्हें उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। दो-चार महीने बाद यह रकम मिलने के बाद इसका उपयोग अन्यत्र होने की संभावना ज्यादा रहती है।
प्रसूताओं को अस्पताल तक लाने के लिए जननी एक्सप्रेस तैनात की गई हैं। लेकिन इनका फायदा भी नहीं मिल पा रहा है। हालांकि गुना जिले में इसके लिए अच्छा प्रयोग किया गया है और वहां जननी एक्सप्रेस के हर ड्राइवर को मोबाइल फोन दिए गए हैं, इससे वह हर समय संपर्क में रहते हैं और किसी भी अप्रिय स्थिति में तुरंत पहुंच सकते हैं। जच्चा बच्चा मृत्यु दर की अधिकता का कारण महिलाओं में रक्त की कमी है। देश की महिलाएं खासकर ग्रामीण महिलाओं, के स्वास्थ्य की उचित देखभाल नही हो पाती और उन्हें पौष्टिक भोजन भी नही मिल पाता। काफी महिलाएं रक्ताल्पता से ग्रसित है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 15-49 वर्ष के आयु वर्ग में 52 प्रतिशत विवाहित महिलाएं रक्ताल्पता से पीडि़त हैं। शहरी क्षेत्रों में यह 46 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 54 प्रतिशत है। यह अनुपात केरल में 23 प्रतिशत और अरूणाचल प्रदेश में 86 प्रतिशत है। तीन वर्ष से कम आयु के बच्चों में रक्ताल्पता इससे भी अधिक है। तीन वर्ष से कम आयु 73 प्रतिशत बच्चे रक्ताल्पता के शिकार हैं। शहरी क्षेत्रों में 71 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत। बचपन में कुपोषण तथा माताओं के रक्ताल्पता से पीडि़त होने के कारण बच्चों के तंत्रिका तंत्र पर असर पड़ता है। जो कि उनकी मानसिक क्षमता को प्रभावित करता है। माताओं की मृत्यु दर अधिक होने के कई कारण हैं-जैसे असुरक्षित प्रजनन, स्वास्थ्य देखभाल में कमी, आपातिक प्रसूति सेवा में कमी, गर्भावस्था के दौरान महिला के स्वास्थ्य तथा पोषण पर उचित उचित ध्यान न देना तथा निर्णय लेने और अपनी पसंद के कुछ करने के लिए महिलाओं में स्वतंत्रता की कमी। हाल ही में किये गये एनएफएचएस आंकड़ों (आईआईपीएस 2002) के अनुसार 1 से 5 वर्ष की आयु में बाल मृत्यु दर निम्न जीवन स्तर के बच्चों में उच्च जीवन स्तर वाले बच्चों से 3.9 गुणा अधिक है। भारत में प्रतिवर्ष एक से 5 वर्ष की आयु के बीस लाख बच्चे, खासकर गरीब तबके के ऐसी बीमारियों के कारण मरते हैं। जिनकी रोकथाम की जा सकती है।
-बिंदु माथुर