02-Mar-2013 09:26 AM
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हाल ही में विदेशों में गोद लेने के नाम पर जब बच्चों खासकर लड़कियों की तस्करी की बात सामने आयी तो एक बार फिर वे भयानक आकड़े जेहन में आ गए जिनके चलते महिलाएं हर वर्ष लाखों की तादात में तस्करी द्वारा ले जाई जातीं हैं। मानव तस्करी भारत में 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर का एक अवैध व्यापार है। हर साल लगभग 10,000 नेपाली महिलाएं वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए भारत लायी जाती हैं। हर साल 20,000-25,000 महिलाओं और बच्चों की बांग्लादेश से अवैध तस्करी हो रही है। बीते दिनों अमेरिका ने छह साल बाद मानव तस्करी वाले देशों की निगरानी सूची में भारत का स्थान टियर 2 में कर दिया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपनी सालाना रिपोर्ट ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स में ट्रैफिकिंग विक्टिम्स प्रोटेक्शन एक्ट (टीवीपीए) के तहत दुनिया के 184 देशों को उनकी बेहतरी के आधार पर कई पायदानों पर रखा है। हाल में देश की एक नामचीन पत्रिका ने राजस्थान से रिपोर्ट छापी कि शेखावाटी से हर महीने करीब 5,000 से 6,000 मजदूर सब्ज बाग दिखा कर खाड़ी देशों में भेजे जा रहे हैं। अकेले झंझुनू जिले के 18 थानों में औसतन दर्ज 500 मुकदमे धोखे से मानव तस्करी की के ही होते हैं। दुबई, ओमान, खाड़ी देशों की बड़ी कंपनियां 500 से 600 रियाल में वीजा जारी करतीं हैं। लेकिन तस्करी के जरिये यहां पहुंचते ही उसकी कीमत 2,000 रियाल तक पहुंच जाती है। इसके अलावा दलालों को 40 से 50,000 रुपये अलग से देने होते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक आज भी इन देशों में अकेले शेखावाटी के अघोषित बंधक बनाये गये करीब 9 लाख लोग हैं। उत्तर प्रदेश में एक अनुमान के मुताबिक कम से कम 500 अश्लील डांस पेश करने वाले कथित ऑर्केस्टा चल रहे हैं। इनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश से तस्करी के ही जरिये लायी गयीं 10 से 30 साल तक की 5,000 से ज्यादा लड़कियां गंवई इलाकों, छोटे शहरों के निजी समारोहों में सरे राह ट्रालियों पर नाचने का काम करती हैं। हालांकि इस पर अंकुश लगाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय का कॉप्रिहेंसिव स्कीम फॉर स्ट्रैंथिनंग लॉ एनफोर्समेंट रेस्पांस इन इंडिया कार्यक्रम चल रहा है फिर भी नेपाल से लगी उत्तर प्रदेश और बिहार की सैकड़ों किलोमीटर लंबी सीमाओं के अलावा पश्चिम बंगाल की सीमा से बांग्लादेश की लड़कियां देश में लायी जातीं हैं। क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2010 में लड़कियों के गायब होने के सबसे ज्यादा 46 फीसदी मामले पश्चिम बंगाल में रहे।
कोलकाता हाईकोर्ट की ओर से पुलिस से महिलाओं में भी, खास कर लडि़कयों की तस्करी के बावत तैयार एक रिपोर्ट में 2009 में 2,500 लड़कियों के लापता होने की पुष्टि हुई। गुमनाम गरीबों की बेहिसाब गुमशुदगी का असल हिसाब किसी के पास नहीं और यह सिलसिला जारी है। बांग्लादेशी लड़कियों की सी आपबीती नेपाली लड़कियों की भी है। पिछले तीन साल में देश भर से करीब 55 हजार बच्चे गायब हैं। इसके अलावा, सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर जो वर्तमान सर्वेक्षण या अध्ययन हुए हैं, उनसे यह सच्चाई सामने आई है कि देश में लापता बच्चों की तादाद दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइस की रिपोर्ट में बच्चों की गुमशुदगी के मामले में दिल्ली पहले स्थान पर है। राजधानी दिल्ली में ही हर दिन 17 बच्चे गायब होते हैं, जिनमें से लगभग 50 फीसदी बच्चे कभी अपने घर वापस नहीं पहुंच पाते। एनसीआरबी और बच्चों की गुमशुदगी की ये रिपोर्ट कहीं न कहीं आपस में एक-दूसरे से तालमेल रखती हैं। अध्ययन बताते हैं कि जिस अनुपात में बच्चे गुमशुदा होंगे, उसी अनुपात में बाल अपराधों में भी बढ़ोतरी होगी। देखने में यह आ रहा है कि आज शातिर अपराधी ऐसे बच्चों को अपनी शरण में लेकर पहले उन्हें नशेड़ी बनाते हैं, फिर उनसे नशीले पदार्थो की तस्करी अथवा बंधुआ बनाकर उनसे बड़े अपराध कराए जाते हैं।
महिलाओं और बच्चों की तस्करी मानव अधिकारों के उल्लंघन के जघन्यतम रूपों में से एक है।यह गुलामी का आधुनिक रूप है, जहाँ पीडि़त को किसी सहायता की उम्मीद के बिना हिंसा, व्यक्तिगत सम्मान के उल्लंघन तथा बेहद अपमान का शिकार होना पड़ता है। भारत बच्चों और युवतियों के अवैध व्यापार का अड्डा बनता जा रहा है। यहां कई कानून होने के बावजूद ह्यूमन ट्रेफिकिंग कम होता नहीं दिख रहा। इम्मोरल ट्रैफिकिंग प्रिवेंशन एक्ट (आइटीपीए) के तहत गुनहगार को सात साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान हैं। बच्चों से मजदूरी कराने के जुर्म में बांडेड लेबर एबोफिशन ऐक्ट, द चाइल्ड लेबर ऐक्ट, और द जूबेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत तीन साल की सजा हैं। अपहरण और वेश्वावृति जैसे अपराध को रोकने के लिए इंडियन पीनल कोड की धारा 366 (ए) और 372 के तहत दस साल और जुर्माना भी हैं। इन सब नियमों और कानूनों के होने के बावजूद भी मानव तस्करी बढ़ रही हैं। पुलिस भी इस जुर्म को रोकने में असहाय हैं। मानव तस्करी बेहद शातिर तरीके से की जाती हैं। इसके साथ कई लोग काम करते हैं। इनका पूरा एक नेटवर्क होता हैं, जो बेहद ही सतर्क होकर काम करता हैं। कई बच्चों का अपहरण उन्हें दूसरे देश में बेचा जा सकें। वहां उन्हें गलत कामों में लगा दिया जाता हैं। आठ साल से कम उम्र के बच्चों को भीख मांगने और उनसे बड़े बच्चों को कठिन कामों में लगा दिया जाता हैं।
डॉ. माया