31-Jul-2014 10:53 AM
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उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक जहर अब उन क्षेत्रों में भी फैलने लगा है जो अपेक्षाकृत शांत माने जाते थे। मुजफ्फर नगर दंगों के बाद कांठ में एक मंदिर के लाउड स्पीकर को लेकर दो समुदायों के बीच

तनातनी देखी गई और अब साहरनपुर में पूजा स्थल के निर्माण को लेकर दो समुदायों के बीच गोलीबारी और आगजनी की घटनाएं हुईं जिसमें 5 लोग मारे गए और सैंकड़ों घायल हो गए। बाद में पुलिस ने रबर की गोलियां दागीं और कफ्र्यू लगा दिया। उधर शिया समुदाय ने ईराक में हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन किया तो पुलिस की फायरिंग में एक प्रदर्शनकारी की मृत्यु हो गई।
सहारनपुर में ताजा हिंसा सिखों और मुस्लिमों के बीच हुई है। सिख किसी गुरुद्वारे का विस्तार करना चाह रहे थे किंतु मुस्लिम इसके खिलाफ थे। मुस्लिमों की आपत्ति को दरकिनार करते हुए सिखों ने गुरुद्वारे के पास निर्माण शुरू कर दिया। इसके बाद माहौल भड़क गया। पहले पत्थरबाजी हुई और बाद में गोलियां चलीं। 5 लोगों की मौत हो गई, कई घायल हो गए, एक पुलिस वाले को बुरी तरह मारा गया जिसे बड़े अस्पताल रेफर करना पड़ा। बीजेपी के सांसद राघव लखनपाल ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस नेता इमरान मसूद और समाजवादी पार्टी नेता पप्पू अकरम इन दंगों के सूत्रधार हैं। हालांकि इन दोनों ने सहारनपुर में अपनी भूमिका से इनकार किया है और कहा है कि अमन कायम कराना उनकी पहली प्राथमिकता है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह यूपी से हैं इसलिए उन्हें भी प्रदेश की कानून और व्यवस्था की खासी चिंता है। राजनाथ सिंह ने अखिलेश यादव से बातचीत करके अतिरिक्त अर्धसैनिक बल भेजे जाने की बात कही थी, लेकिन अखिलेश यादव ने यह सुझाव ठुकरा दिया और कहा कि राज्य में पर्याप्त सुरक्षाबल है। सरकार दावा कर रही है कि हालात सामान्य हैं, लेकिन भीतर ही भीतर जहर फैल रहा है। लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं और कोई भी जातीय नेता या धर्मगुरु अमन और शांति की अपील करने के लिए आगे नहीं आया है। बल्कि धर्म के ठेकेदार अपने समुदाय के लोगों को भड़काने में लगे हुए हैं।
खास बात यह है कि उत्तरप्रदेश में दंगों के समय आम जनता के पास इतना असलहा कहां से निकल आता है? गोलियां चलती हैं, हथगोले फेंके जाते हैं। तलवारें लहराई जाती हैं और पेट्रोल बम इस तरह तैयार किए जाते हैं मानों लड़ाई दो सेनाओं के बीच हो रही हो। इसे देखकर तो लगता है कि उत्तरप्रदेश में दंगों की तैयारी हमेशा चलती रहती है। इन दंगों में भी 7 लोग लापता हो गए हैं। गुरुद्वारा कब्रिस्तान की जमीन से लगा हुआ है और मुस्लिम समुदाय का आरोप है कि गुरुद्वारे की आड़ में कब्रिस्तान की जमीन दबाई जा रही है। जबकि सिख समुदाय का कहना है कि यह जमीन उन्हीं की है। प्रशासन जमीनों का विवाद सलझाने में कोई रुचि नहीं दिखाता और छोटी सी चिंगारी भी आग में बदल जाती है। उधर प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव को इससे कोई सरोकार नहीं है। उन्हें तो लगता है कि विधानसभा और लोकसभा दोनों जगह उनके परिवार के लोग बैठ जाए ताकि राजनीतिक भविष्य सुरक्षित रहे। इसीलिए जिस समय सहारनपुर, मैनपुरी और आसपास दंगे भड़क रहे थे, मुलायम सिंह अपने भतीजे रणवीर सिंह यादव के बेटे तेजप्रताप सिंह यादव को मैनपुरी से प्रत्याशी बनाने की जुगाड़ में लगे हुए थे। यादव अपने पोते को मैनपुरी से लड़वाना चाहते हैं, क्योंकि वे मैनपुरी सीट छोडऩे का मन बना चुके हैं। प्रदेश में यादवी कुनबा पूरी तरह असफल रहा है। दंगे आए दिन भड़कते हैं और विपक्ष तथा सत्तापक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। सहारनपुर की घटना के लिए भी भाजपा के कुछ नेताओं ने समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री आजम खान पर निशाना साधा है।
जिस तरह से सांप्रदायिक उन्माद ने पूरे प्रदेश को अपनी चपेट में लिया है उसे देखते हुए आशंका है कि कहीं सारे यूपी में धारा 144 न लगाना पड़े। हरिद्वार से जल लेकर कांठ के मंदिर में जलाभिषेक करने जा रही साध्वी प्राची आर्या और उनके तीन समर्थकों को बिजनौर के भागूवाला में रोककर वापस लौटाने से भी माहौल गर्मा गया है। इस सांप्रदायिक उन्माद में राजनीतिक दल अपनी-अपनी रोटियां सेक रहे हैं और मूल मुद्दों से ध्यान बट चुका है। कभी कब्रिस्तान की दीवार को लेकर बवाल मचता है तो कभी घरों की दीवारें लोगों के बीच पथराव का कारण बन जाती हैं। कुछ लोगों का मानना है कि राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव तक माहौल को ऐसे ही बिगाड़े रखेंगे क्योंकि सभी को चुनाव में अपना उल्लू सीधा करना है। देखा जाए तो यह अनुमान गलत नहीं है क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए न तो सरकार कोशिश कर रही है और न ही कांग्रेस भाजपा जैसे बड़े राजनीतिक दल। बल्कि भाजपा के तो कुछ नेता कांठ जैसे छोटे-मोटे मामलों को सारे प्रदेश में फैलाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। सरकार ने धमकी दी है कि वह कांठ हिंसा में शामिल भाजपाईयों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करेगी। लेकिन सरकार को यह भी डर है कि कहीं ध्रुवीकरण ज्यादा हो गया तो प्रदेश में चुनाव के समय विपरीत असर पड़ सकता है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ऊपर से भले ही हिंदूवादी नेताओं के खिलाफ सख्त रूख अपनाएं लेकिन सच तो यह है कि फिलहाल इस तरह की कार्रवाई से वे बच रहे हैं। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि हाल के दिनों में पैदा हुए धार्मिक विवादों की जड़ में कहीं न कहीं राजनीति है। जिस तरह उत्तरप्रदेश भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने मुरादाबाद एसएसपी धर्मवीर को खुली चेतावनी देते हुए नागिन की तरह आंख में उतार लेने की बात कही थी उससे साफ हो गया है कि अगला चुनाव इन्हीं मुद्दों के आसपास लड़ा जाएगा। भले ही हाईकोर्ट गन्ना किसानों का बकाया चुकाने में सुस्ती के लिए सरकार को फटकार लगाए लेकिन यूपी में जातिवाद, सांप्रदायवाद और क्षेत्रवाद से मुक्ति मिलना फिलहाल संभव नहीं दिखाई देता।
क्या है विवाद
सहारनपुर के कुतुबशेर इलाके में अंबाला रोड पर गुरुद्वारा और कब्रिस्तान आमने-सामने हैं। गुरुद्वारे और कब्रिस्तान में जमीन को लेकर पुराना विवाद चल रहा है। इस विवादित जमीन पर हाल ही में हाईकोर्ट का फैसला भी आया है। इसके बाद दूसरे पक्ष ने गुरुद्वारे में निर्माण कार्य शुरू करा दिया। गुरुद्वारे में लिंटर डाले जाने का संप्रदाय विशेष के कुछ लोगों ने विरोध किया और थाने के सामने सड़क जाम कर धरना देने लगे। छिटपुट कहासुनी और धरना एकाएक पथराव और आगजनी में बदल गया और देखते-ही-देखते अंबाला रोड की सैकड़ों दुकानें लूट के बाद आग के हवाले कर दी गईं। दोनों पक्षों की तरफ से फायरिंग शुरू हो गई। पुलिस पर छतों से फायरिंग की गई, जिसमें एक सिपाही की मौत की खबर है। हिंसा की खबर आग की तरह फैली और शहर के दूसरे इलाकों में भी पथराव, फायरिंग और आगजनी शुरू हो गई। आनन-फानन में स्कूल और बाजार बंद होने लगे। दंगाइयों ने सहारनपुर फायर स्टेशन को आग के हवाले कर दिया, कुतुबशेर थाने और धोबीघाट पुलिस चौकी में जमकर तोडफ़ोड़ हुई। अंबाला रोड, गुरुद्वारा रोड, रायवाला, नेहरू रोड, कोर्ट रोड, नुमायश कैंप, मिशन कंपाउंड आदि स्थानों पर दुकानों में आग लगा दी गई। पुलिस-प्रशासन ने पहले कुतुबशेर, मंडी और नगर कोतवाली थानों में कफ्र्यू घोषित कर हालात काबू में करने के प्रयास किए, लेकिन पूरे शहर में आगजनी और पथराव के सिलसिले के चलते दस मिनट के भीतर शहर के सभी छह थाना क्षेत्रों में कफ्र्यू घोषित कर दिया गया। शहर का सबसे पॉश बाजार कोर्ट रोड भी हिंसा की चपेट में आ गया और पाश्र्वनाथ प्लाजा में दो दुकानों को फूंक दिया गया। हिंसा में पांच लोगों की जान गई है। हालांकि प्रशासन हरीश कोछड़, आरिफ और एक अज्ञात की मौत की ही पुष्टि कर रहा है। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार एक व्यक्ति जैन नगर में मरा है। चिलकाना रोड पर एक किशोर की भी पहचान नहीं हो सकी है।