31-Jul-2014 10:43 AM
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मध्यप्रदेश में प्रॉपर्टी के दामों में आग लगी हुई है। वर्ष दर वर्ष कीमतें आसमान पर जा रही हैं और उधर सरकार भी ऐसे फैसले कर रही है कि दाम आम आदमी की पहुंच से बाहर हो चुके हैं। हाल ही में

जब ज्वाइंट वेंचर की भूमि पर स्टॉम्प शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव सरकार ने दिया तो खलबली मच गई। यदि इस प्रस्ताव को सरकार की मंशा के अनुरूप स्वीकार कर लिया जाता तो मध्यप्रदेश के शहर संभवत: उच्च मध्यम वर्ग के रहने के लायक ही रह जाते। यह समझ से परे है कि जिस सरकार की नीति हर एक के लिए आवास उपलब्ध कराने की है वह सरकार नित नए-नए कर लगाकर जमीनों और मकानों के दाम आसमान पर पहुंचाने में क्यों तुली है। वह तो कॉलोनाइजर के संगठन क्रेडाई ने सरकार को धमकी दे दी अन्यथा शहरों में दाम 30 से 40 प्रतिशत बढ़ सकते थे।
रियल स्टेट मध्यप्रदेश में 50 हजार करोड़ का बड़ा भारी व्यवसाय है ज्यादातर प्रोजेक्ट बड़ी कम्पनियां संयुक्त उपक्रम के तहत ही बनाती हैं। बिल्डर को प्रोजेक्ट तैयार होने से पूर्व ही स्टॉम्प ड्यूटी देने की स्थिति में नया प्रोजेक्ट या बड़ा प्रोजेक्ट बनाना ही संभव नहीं होगा। सरकार जो भी अतिरिक्त शुल्क लगाती है बिल्डर उसका भार सीधे उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं। इस प्रकार पहले से ही तरह-तरह के कर दे रहे उपभोक्ताओं की जेब ही मध्यप्रदेश के इस प्रस्ताव में काटने की तैयारी की जा रही थी। बिल्डरों का कहना है कि सरकार की नीतियां अव्यवहारिक हैं, उधर उपभोक्ताओं के लिए यह खबर निराशाजनक है। केंद्रीय बजट से लेकर राज्य के बजट में कहीं भी ऐसी नीतियां नहीं दिखाई देतीं जिससे यह लगे कि सरकार लोगों की जेब मजबूत करने जा रही है। नए कर अवश्य लगाए गए हैं और उपभोक्ताओं की जेब से पहले की अपेक्षा अधिक पैसे निकल रहे हैं। ऐसे में सरकार को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए मगर इसके विपरीत दाम बढ़ाने की तैयारी का विरोध होना स्वाभाविक है इसलिए स्टॉम्प संशोधन विधेयक का विरोध हुआ। सरकार ने 8 प्रतिशत नहीं बल्कि 5 प्रतिशत वृद्धि करने का फैसला किया लेकिन इस फैसले का भी दूरगामी असर होगा क्योंकि बिल्डर स्वयं भार वहन नहीं करेंंगे।
कुछ माह पहले ही एक रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि भारत में भोपाल एकमात्र ऐसा छोटा शहर है जहां जमीनों के दाम मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बैंग्लोर जैसे शहरों के मुकाबले कई गुना बढ़े हैं। भोपाल में वर्ष 2006 में जिस प्रॉपर्टी के दाम महज 6-7 लाख हुआ करते थे वह प्रॉपर्टी आज महज 8 वर्षों में 40 से 45 लाख की है। इसी प्रकार हाउसिंग बोर्ड ने जिन प्रोजेक्ट को कुछ वर्ष पूर्व 20-25 लाख में प्रारंभ किया था उनके दाम भी कलेक्टर गाइड लाइन का हवाला देकर 30-40 प्रतिशत बढ़ा दिए गए हैं। जमीनों के दाम तो महज 18 माह में दोगुने के करीब पहुंच गए। इतनी तेजी से दाम बढ़ाने की कैफियत यह दी गई कि कलेक्टर गाइड लाइन में दाम बढ़ चुके हैं। जब हाउसिंग बोर्ड, बीडीए जैसी संस्थाएं जिनका उद्देश्य ही हर आय-वर्ग को सस्ते आवास उपलब्ध कराना है, लोगों की जेबों पर डाका डालेंगी तो बिल्डर भला कैसे पीछे रहेंगे। वह तो बाजार में लाभ कमाने के लिए ही आए हैं। यही कारण है कि भोपाल जो जन सुविधाओं और अधोसंरचना की दृष्टि से एक बेहद मामूली शहर है वहां जमीनों के दाम सुनियोजित तरीके से बढ़ाए जा रहे हैं और इसमें बिल्डरों तथा सरकारी संस्थाओं की मिली भगत स्पष्ट दिखाई देती है।
किंतु बढ़े दामों का असर अब स्पष्ट दिख रहा है। बिक्री में कमी आई है। रियल स्टेट का बाजार मंदा है। कई प्रोजेक्ट्स बंद पड़े हुए हैं। हाउसिंग बोर्ड का काम भी बहुत धीमी गति से चल रहा है। लोगों का पैसा फंसा हुआ है। सरकार ने कलेक्टर गाइड लाइन से जमीन के दामों पर प्रीमियम लगाने की घोषणा भी की है। यह सारा भार उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है। 20 करोड़ की जमीन के लिए सरकार को 4-5 करोड़ चुकाने पड़ते हैं, 5 एकड़ जमीन संयुक्त उपक्रम की हो तो 3 लाख 60 हजार रुपए देने ही पड़ते हैं। बाद में हर उपभोक्ता पर रजिस्ट्री सहित तमाम शुल्क लादे जाते हैं जिनका पैसा सरकार के पास जाता है यदि मध्यप्रदेश सरकार का यह प्रस्ताव मान लिया जाता तो 76 गुना ज्यादा ड्यूटी चुकानी पड़ती। हालांकि जो राहत दी गई है उसके बाद भी दाम तो बढ़ेंगे।
कब क्या हुआ
15 जुलाई : कैबिनेट में स्टॉम्प शुल्क संशोधन विधेयक के मसौदे को मंजूरी। इसमें संयुक्त उपक्रम प्रॉपर्टी पर स्टॉम्प शुल्क 1 से बढ़ाकर 5 प्रतिशत करने का प्रस्ताव।
16 जुलाई : मप्र क्रेडाई की इसके विरोध में चेतावनी। प्रस्ताव वापस लो नहीं तो काम बंद कर देंगे। भाजपा के कई विधायक भी आए विरोध में।
17 जुलाई: सरकार की ओर से किसी तरह का संकेत नहीं मिलने पर क्रेडाई ने जन आंदोलन चलाने की चेतावनी दी।
18 जुलाई: कांगे्रस ने भी की आंदोलन में कूदने की घोषणा।
21 जुलाई : सरकार ने दिए प्रस्ताव में नरमी के संकेत।