कांग्रेसी मानसून में इस्तीफों की बाढ़
31-Jul-2014 09:37 AM 1234744

कांग्रेस में 35 इस्तीफों ने सीताराम केसरी के दिनों की याद ताजा कर दी जब पार्टी में भगदड़ मच गई थी और सोनिया गांधी को अंतत: बचाव के लिए आना पड़ा था। इस बार भी कांग्रेस के भीतर असंतोष फूट पड़ा है लेकिन पार्टी को बचाने के लिए अब उस परिवार से किसी के आने की संभावना नहीं है क्योंकि असंतोष उसी परिवार के खिलाफ है। प्रियंका गांधी को लेकर भी कोई खास उम्मीद कांग्रेसियों के मन में नहीं है। कुल मिलाकर कांग्रेस पर पिछले आठ दशक से एकछत्र राज करने वाले नेहरू गांधी वंश के प्रति कांग्रेसियों का मोहभंग हो चुका है। राहुल गांधी की काबीलियत पर तो पहले भी प्रश्र चिन्ह लगा था लेकिन उस वक्त कांग्रेस सत्ता में थी इसलिए असंतोष दबा दिया गया पर अब कांग्रेस सत्ता में नहीं है। आंध्र जैसे बड़े राज्यों से उसका सफाया हो गया है। महाराष्ट्र की सत्ता जाने की कगार पर है। असम में चुनाव जीतना अब संभव नहीं है और उत्तराखण्ड सहित बाकी राज्यों में कांग्रेस का संगठन लगातार बिखर रहा है। यहां तक की केरल में भी विधानसभा अध्यक्ष ने सक्रिय राजनीति में लौटने की मंशा जता दी है।
बिखराव का यह दौर कांग्रेस में लोकतांत्रिक माहौल की शुरूआत करेगा या फिर कांगे्रस समाप्त हो जाएगी? यह एक अहम सवाल है। कांगे्रस से जुडऩे वाले नए नेतृत्व के मन में कांग्रेस के मौजूदा अलोकतांत्रिक ढांचे को लेकर भयानक संशय और असंतोष है। यह लोग जिस खुले माहौल में सांस लेने के आदी हैं वैसा माहौल कांग्रेस के घुटन भरे वातावरण में संभव नहीं है। यही कारण है कि असम, जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में पार्टी के 34 नेता इस्तीफे दे चुके हैं। असम सरकार के मंत्री हेमन्त बिस्वास शर्मा और ऊधमपुर से दो बार सांसद रहे चौथरी लाल सिंह ने तो पार्टी ही छोड़ दी है। उधर महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री नारायण राणे ने प्रदेश में नेतृत्व न बदलने के आला कमान के फैसले से नाराज होकर मंत्री पद ही छोड़ दिया है। राणे का कहना है कि पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था लेकिन वे तो 9 साल से इंतजार कर रहे हैं। असम में हेमन्त बिस्वास के साथ-साथ 32 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है जिससे गोगोई सरकार अल्पमत में आ गई है। हेमन्त बिस्वास  मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और जब कांग्रेस की लोकसभा में करारी पराजय हुई थी उस वक्त उन्हें लगा था कि आला कमान तरूण गोगोई को हटाकर उन्हें मुख्यमंत्री बनाएगा। लेकिन राहुल गांधी गोगोई के समर्थन में खड़े हो गए। इससे कांग्र्रेस के 78 में से 40 विधायकों में असंतोष पैदा हो गया। अब सोनिया गांधी ने पूरे मामले को सुलझाने के लिए सी.पी. जोशी और मल्लिकार्जुन खडग़े की कमेटी बनाई है लेकिन विधानसभा चुनाव के समय पार्टी की एकजुटता का सवाल पैदा हो गया है। पार्टी के सामने यूपीए के कुनबे से दूर हो रहे सहयोगी दलों को साथ रखना भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। कश्मीर के बाद अब महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन खत्म हो सकता है।
लोकसभा चुनावों में मिली ऐतिहासिक हार के कारणों का मंथन कांग्रेस में अभी भी जारी है। कुछ दिन पूर्व उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने महासचिवों के साथ लंबी बैठक की। करीब ढाई घंटे तक आंकड़ों के मंथन के बाद राहुल ने मायावती के परंपरागत दलित वोट बैंक में सेंध लगाने का मंत्र दिया। राहुल ने पार्टी नेताओं से कहा कि अब दलित और अल्पसंख्यक लीडरशिप तैयार करने की जरूरत है। चुनावी नतीजों के विश्लेषण के बाद यह नतीजा निकला कि पार्टी का अभी भी दलित और अन्य गरीब तबकों से कटाव नहीं हुआ है, इसलिए इन्हें जोडऩे की दिशा में ज्यादा काम किया जाए। बैठक में मौजूद नेताओं के मुताबिक, दलित और कमजोर गरीब तबके को साथ लेकर राहुल ने सत्ता में वापसी का फैसला लिया है। वोट शेयर पैटर्न के विश्लेषण के बाद पता चलता है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अभी भी दलित कांग्रेस को वोट देना पसंद कर रहे हैं और यही स्थिति अल्पसंख्यक समाज और गैर-प्रमुख आदिवासी समूहों के साथ भी है, गुजरात के गैर-भील और छत्तीसगढ़ के गैर-गोंड आदिवासियों ने कांग्रेस को वरीयता दी है। उत्तर प्रदेश में दलितों में जूते-चप्पलों का परंपरागत पेशा करने वाले समूहों का प्रभाव थोड़ा ज्यादा है और इस समूह पर मायावती की पकड़ ज्यादा है। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, राहुल और उनकी टीम को विश्वास है कि अगर वहां इसी समूह में से लीडरशिप तैयार की जाए, तो इस वर्ग को कांग्रेस के खेमे में किया जा सकता है। इसी आधार पर निर्णय किया गया है कि जमीन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक टीम को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए, ताकि वह आरक्षित सीटों पर कांग्रेस के लिए काम कर सके। जिला स्तर पर कमेटी बनाने का प्रस्ताव भी है। उधर सदन में कांग्रेस की ताकत लगातार कमजोर हो रही है मल्लिकार्जुन खडग़े उतने दबंग नहीं हैं उससे अच्छा तो कमलनाथ संभाल लेते। एटॉर्नी जनरल ने कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष देने से साफ इनकार कर दिया है। कांग्रेस को अभी भी वरिष्ठ नेता एके एंटनी की उस रिपोर्ट का इंतजार है, जिसमें उन्हें हार के कारण बताने हैं। हालांकि, कई कांग्रेसी नेताओं ने मौखिक और लिखित रूप से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को औपचारिक रूप से अपनी रिपोर्ट दी है, जिसमें बड़े सांगठनिक बदलाव की अनुशंसा की गई है। साथ ही, वे लगातार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मीटिंग की मांग कर रहे थे, ताकि वे उनसे हार के असली कारणों और आगे के रास्तों पर चर्चा कर सकें।

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