16-Jul-2014 06:50 AM
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केंद्र सरकार ने महिलाओं के प्रति हिंसा और बलात्कार की घटनाओं के बाद 1000 करोड़ रुपए का निर्भया फंड बनाया था लेकिन इस फंड ने न तो दिल्ली और न ही देश में महिलाओं को निर्भय किया

बल्कि इस फंड के बाद से महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार की घटनाएं 125 गुना बढ़ गईं हैं। ऐसे में इस फंड की उपयोगिता पर भी सवाल पैदा होने लगे हैं। कांग्रेस ने चुनाव के दौरान इस फंड को भुनाने की भरसक कोशिश की थी लेकिन उसे कोई लाभ नहीं मिला। इससे पता चलता है कि 1000 करोड़ रुपए का यह भारी-भरकम फंड महिलाओं में विश्वास और आत्मविश्वास पैदा करने में असफल रहा है। अब देखना यह है कि इस फंड को लेकर नयी सरकार की क्या योजना है। महिलाओं के लिए हेल्पलाईन से लेकर तमाम तरह के उपाय किये गए हैं। यूपीए सरकार ने केन्द्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में 13 सदस्यीय विशेष टॉस्क फोर्स का गठन किया था जो हर 15 दिन में महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े मसले पर समीक्षा कर रहा था। उन समीक्षाओं का क्या नतीजा निकला यह पता नहीं।
निर्भया रेप केस के बाद सरकार पर चौतरफा दबाव बना था। जिसके बाद सरकार पर सख्त कदम उठाने और कड़े नियम बनाने का दबाव बना। इसके बाद सरकार ने महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के नियमों को कड़ा किया। रेप केस के सभी आरोपियों को फांसी भी दी गई। लेकिन ये फांसी रेप के लिए नहीं बल्कि निर्भया के साथ की गई बर्बरता के लिए दी गई।
16 दिसंबर 2012 से 16 दिसंबर 2013 तक एक-दो चीजों के अलावा अगर बदले हैं तो अपराध के आंकड़े। पिछले साल की तुलना में बलात्कार के मामले 125 प्रतिशत बढ़ गए हैं। महिलाओं की सुरक्षा के उद्देश्य से निर्भया फंड और अलग से बैंक बनाने जैसे कदम लगातार सोशल मीडिया पर गर्मागर्म चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। कई लोग इसके औचित्य पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। एक हजार करोड़ रुपए के इस कोष का मकसद महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार और गैर सरकारी संगठनों की ओर से की जा रही पहलों को मजबूत करना है। हम बलात्कार और महिलाओं पर होने वाले अपराध तो रोक नहीं सकते। लेकिन उनके लिए बैंक खोल रहे हैं। बजट में महिलाओं के लिए अलग से बैंक बनाने की भी बात कही गई थी। महिलाओं की सुरक्षा के लिए अलग से फंड की जरूरत क्या है जिसके लिए हम पहले ही टैक्स दे चुके हैं।
निर्भय नहीं हुई महिलाएं
एसोचैम के सर्वे के मुताबिक रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं में बलात्कार का डर कहीं ज़्यादा है और इस डर के चलते वे अपनी नौकरियां तक छोड़ रही हैं। सर्वे के मुताबिक दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंदर बीपीओ, आईटी, सिविल एविएशन, नर्सिंग और हॉस्पीटलिटी के क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं में 92 फीसदी महिलाएं नाइट शिफ्ट में काम नहीं करना चाहतीं। नर्सिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें महिलाओं को दिन-रात की परवाह किए बिना काम करना होता है। लेकिन दिल्ली और राजधानी क्षेत्र की करीब 83 फीसदी नर्सें रात की पाली में खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं। इन महिलाओं में 62 फीसदी महिलाओं ने ये माना है कि बेहतर पैकेज की चाहत में वे रात की पालियों में काम कर रही हैं लेकिन उन्हें अपने साथ छेड़छाड़ या फिर यौन उत्पीडऩ होने का डर सताता रहता है। एसोचैम के सर्वे में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की करीब 2500 महिलाओं की राय शामिल की गई है। इनमें आईटी और बीपीओ कंपनियों में काम करने वाली लड़कियां शामिल हैं। सर्वे के मुताबिक कामकाजी महिलाएं अब अपनी दफ्तरों में काम खत्म होने के बाद थोड़े समय में भी रुकना नहीं चाहती हैं। शिफ्ट पूरा होने के बाद वे जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहती हैं।
89 फीसदी महिलाओं के मुताबिक वे शाम में शिफ्ट पूरा होने से पहले घरों के लिए निकलना चाहती हैं। इतना ही नहीं असुरक्षा की भावना के चलते महिलां की उत्पादकता पर भी असर पड़ा है। सर्वे के मुताबिक कामकाजी महिलाओं की उत्पादकता में 40 फीसदी तक की कमी हुई है। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में करीब 2500 आईटी और बीपीओ कंपनियां काम कर रही हैं जिसमें लाखों महिलाएं काम करती हैं। पूरे इलाके में महिलाओं के प्रति यौन उत्पीडऩ के मामले भी लगातार बढ़े हैं। बीते दो साल के दौरान हर तीन में से दो महिलाओं को यौन उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा है।