31-Jul-2014 10:24 AM
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बॉबी जासूसÓ विद्या बालन के अभिनय से सजी बॉलीवुड की संभवत: पहली ऐसी फिल्म है जो महिला जासूस पर आधारित है। फिल्म में निर्माता निर्देशक ने विद्या पर कुछ ज्यादा ही भरोसा कर पूरी

फिल्म उनके कंधों पर डालकर गलती कर दी। यदि फिल्म में नायक के किरदार को भी मजबूती प्रदान की जाती तो यह और अच्छी बन सकती थी। यह सही है कि विद्या ने इससे पहले द डर्टी पिक्चरÓ और कहानीÓ फिल्म को लगभग अपने दम पर हिट कराया लेकिन उनकी पिछली फिल्में घनचक्करÓ और शादी के साइड इफेक्टसÓ की नाकामयाबी भी सबके सामने है। ऊपर से लगभग ऐसा ही जो काम कुछ समय पहले प्रियंका चोपड़ा ने व्हाट योर राशीÓ में किया और असफलता पाई उसे देखकर भी निर्माता निर्देशक ने सबक नहीं लिया और विद्या के बलबूते ही फिल्म का बेड़ा पार हो जाने का उन्हें भरोसा रहा।
बॉबी (विद्या बालन) 30 साल की हो चुकी है और उसके पिता चाहते हैं कि वह निकाह कर अपना घर बसाए। लेकिन बॉबी चाहती है कि वह जासूस बने। दरअसल टीवी चैनलों पर हमेशा जासूसी धारावाहिक देख देखकर उसका मन हमेशा जासूसी करने में लगा रहता है और वह इसको ही पेशा बनाना चाहती है लेकिन पिता इसके खिलाफ हैं। मां हालांकि उसकी मदद को तैयार है। हैदराबाद में रहने वाले इस परिवार के घर के पास ही रहने वाला तसुव्वर अहमद (अली जफर) एक टीवी चैनल में न्यूज एंकर है। तसुव्वर बॉबी का दोस्त है और उसकी मदद करता रहता है। बॉबी को जब एक बड़ी नामी डिटेक्टिव कंपनी का मालिक जासूस की नौकरी नहीं देता तो बॉबी उसके ऑफिस के सामने ही अपना दफ्तर खोल लेती है। उसे अचानक ही सफलता तब मिलती है जब विदेश से हैदराबाद आया एक शेख (किरण कुमार) एक लड़की की तलाश करने के एवज में मोटी रकम देने का सौदा करता है। पहली डील पूरी होने के बाद शेख अब एक लड़के की तलाश करने की डील करता है। कहानी में नया मोड़ तब आता है जब बॉबी जासूस को पता चलता है कि उसने शेख के लिए जिस लड़की की तलाश की थी उसके परिवार का अब कुछ अता पता नहीं।
जासूस के रोल में विद्या ने काफी मेहनत की। फिल्म में उनके कई गेटअप देखने को मिलेंगे हालांकि वह चंद मिनटों के ही हैं। विद्या ने साबित किया कि वह आज की शानदार अभिनेत्रियों में हैं। लेकिन कमजोर कहानी और लचर निर्देशन के आगे वह भी कुछ ज्यादा नहीं कर पाईं। अली जफर का काम ठीकठाक रहा हालांकि वह कम फुटेज के शिकार रहे। तन्वी आजमी, सुप्रिया पाठक और राजेंद्र गुप्ता का काम दर्शकों को पसंद आएगा। फिल्म का गीत संगीत पक्ष भी निराश करता है। निर्देशक समर शेख दर्शकों को प्रभावित करने में नाकाम रहे।