05-Jul-2014 08:49 AM
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ईराक में आईएसआईएस का कहर जारी है। देश शिया-सुन्नी विवाद में उलझ गया है। अमेरिका ने सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा देकर जो गलती की थी उसका खामियाजा आज सारी दुनिया भुगत

रही है। झूठे आरोप लगाकर और रासायनिक हथियारों का बहाना बनाते हुए बुश ने सद्दाम हुसैन जैसे लोकप्रिय शासक को अपदस्थ करते हुए ईराक को तबाह कर दिया। वह तबाही आज भी इस देश के लोगों के लिए कयामत का सबब बन चुकी है। ईराक जल रहा है। सद्दाम हुसैन ने सुन्नी होते हुए इस शिया बहुल देश पर कुशलता से अपना शासन चलाया और धार्मिक उन्माद में देश को नहीं बिखरने दिया था। यह बात अवश्य है कि उन्होंने कुवैत पर आक्रमण जैसी नादानी की किन्तु उस नादानी का खामियाजा जो ईराक को भुगतना पड़ा वह सारी दुनिया के सभ्य समाज की एक बर्बर कार्यवाही ही कही जाएगी। सद्दाम हुसैन के बारे में गलतफहमियां फैलाई गईं। उन्हें एक मगरूर शासक की तरह प्रचारित किया गया। सद्दाम बच्चों की हत्या करवाता है, विरोधियों को मार डालता है, वह नरभक्षी है आदि आदि कई कहानियां सद्दाम के खिलाफ अमेरिका परस्त मीडिया ने दुनिया के सामने परोसी थीं और अमेरिका के पिछलग्गू देशों ने इन कहानियों का अनुमोदन किया था। आज सद्दाम की मौत के आठ वर्ष बाद जो सच्चाई सामने आई है उससे पता चलता है कि सद्दाम हुसैन भले ही सैनिक तानाशाह था किन्तु उसने विविध समुदायों को लडऩे नहीं दिया उसके रहते कुर्द अपनी सीमाओं में कैद होकर रह गए और शिया-सुन्नी को धार्मिक उन्माद से अलग प्रोग्रेसिव विचारों की तरफ सद्दाम ने उन्मुख करने की कोशिश की। सद्दाम की तानाशाही जनता को पसन्द थी यदि जनता उसे नापसन्द करती तो कबका उखाड़ फैंकती।
यह कहना सरासर गलत है कि सद्दाम मिलिट्री के बल पर राज कर रहा था। सच तो यह है कि ईरान के साथ चले लम्बे युद्ध में ईराक भीतर से खोखला हो गया था। इसी बौखलाहट में कुवैत पर हमला हुआ लेकिन रासायनिक हथियार विकसित करने की ताकत और संसाधन ईराक के पास नहीं थे। अमेरिका ने सारी दुनिया को गुमराह किया और मित्र देशों की फोजों ने ईराक को रौंद डाला। वह ईराक जिसकी मरजीना की कहानियां सारे संसार में बच्चों द्वारा सुनी जाती थीं। अलीबाबा चालीस चोर की कहानियां दादी-नानी सुनाती थीं। जिन्होंने कभी ईराक नहीं देखा वे भी खुलजा-जा-सिम-सिम से परिचित थे। ऐसी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत और बेशुमार कहानियों, कथाओं से भरा कल्पना का वह संसार आज झुलस रहा है। दुनिया के पास कराहते, घायल ईराक का कोई इलाज नहीं है। ईराक को तबाह करने वाला अमेरिका भी सुन्नी मुसलमानों के उन उन्मादी जेहादियों को सबक सिखाने से परहेज कर रहा है जिन्होंने मौत का तान्डव मचाया है और दुनियाभर के इस्लामी मुल्कों से मिली बेशुमार दौलत से खरीदे गए हथियारों के बल पर वे मासूम लोगों को निषाना बना रहे हैं। मुसलमान-मुसलमान के खून का प्यासा है। ईराक की नदियों में लाल रक्त बह रहा है। कोई भी सुरक्षित नहीं है। ईराक के मौजूदा प्रधानमंत्री में इतनी काबिलियत नहीं है कि वे विभिन्न समुदायों के बीच आपसी वैमनस्य को कम कर सकें। सद्दाम ने तो सुन्नी होते हुए देश में शिया कानून लागू किया और सभी लोगों को कानून का सम्मान करने के लिए बाध्य कर दिया था। लेकिन ईराक की मौजूदा सरकार पर शिया-परस्ती के आरोप लगते रहे हैं जिसके कारण ईराक सुलग रहा है। ईराक से उठता यह धुंआ तो छ: माह पहले ही दिखाई देने लगा था लेकिन तब न तो अमेरिका ने रुचि दिखाई और न ही ईराक के शासकों ने इस चिन्गारी को शोले के रूप में भड़कने से रोका। हजारों हजार गुमराह नौजवानों ने आतंकी संगठन आईएसआईएस की शरण ले ली और ईराक की सेना, खूफिया विभाग हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे। स्थिति अब नियंत्रण से बाहर है। अमेरिका ने कहा है कि वह 300 रक्षा सलाहकारों की नियुक्ति ईराक संकट के लिए कर रहा है लेकिन इससे समस्या नहीं सुलझेगी। ईराक में मची मारकाट रोकने के लिए विश्व समुदाय को मिलजुल कर प्रयास करने चाहिए। एक समृद्ध ऐतिहासिक विरासत वाला देश तीन टुकड़ों में बंट गया तो यह विश्व बिरादरी के लिए बड़ी त्रासद स्थिति होगी।