चुनाव में क्यों नहीं जाना चाहती भाजपा?
31-Jul-2014 09:54 AM 1234758

दिल्ली में जिस तरह सरकार बनाने न बनाने को लेकर भाजपा के भीतर असमंजस बना हुआ है उसने बड़े रोचक हालात पैदा कर दिए हैं। भाजपा दो भागों में बंटी हुई दिखाई दे रही है एक तरफ वे लोग हैं जो चाहते हैं कि पार्टी जोड़तोड़ करके सरकार बनाए और दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि चुनाव में जाना ही ठीक रहेगा।  दरअसल भाजपा दिल्ली में माहौल बना रही है कि चुनाव उसके पक्ष में हो। लेकिन बढ़ी हुई महंगाई और वादा करने के बावजूद भी अच्छे दिन नहीं आ पाना यह ऐसी बाधा है जिससे पार पाना आसान नहीं है। उत्तराखंड चुनाव के नतीजे भी केंद्र के खिलाफ माहौल का संकेत दे रहे हैं। लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था और उनकी जीत का अंतर भी अच्छा-खासा था इस लिहाज से भाजपा विधानसभा चुनाव में निश्चित रूप से जीतती नजर आ रही है लेकिन दिल्ली के उपराज्यपाल ने अभी तक सरकार भंग नहीं की है।
सवाल यह है कि भाजपा का एक धड़ा चुनाव से क्यों घबरा रहा है। क्या नरेन्द्र मोदी का जादू दिल्ली में नहीं चलेगा या फिर मौजूदा विधायकों को अपनी जीत सुनिश्चित नहीं लग रही है। यह सच है कि त्रिकोणीय मुकाबला होने के कारण भाजपा के कुछ विधायक बमुश्किल चुनाव जीत सके थे। 3 विधायक लोकसभा में पहुंच चुके हैं इस प्रकार 67 सीटों में बहुमत के लिए भाजपा को 34 विधायक चाहिए उसके पास कुल संख्या 28 ही है इसका अर्थ यह हुआ कि जोड़-तोड़ करनी ही पड़ेगी। जाहिर है जो भी विधायक आएंगे वे कांग्रेस अथवा आम आदमी पार्टी से ही तोड़े जाएंगे। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इसके खिलाफ है लेकिन कुछ लोग कह रहे हैं कि सरकार बनाने में बुराई नहीं है। आरएसएस भी जोड़तोड़ की राजनीति से परहेज करने की बात कह रही है। दरअसल सरकार बनाने की कोशिश तो अरविन्द केजरीवाल ने भी की थी लेकिन कांग्रेस ने उनकी दाल नहीं गलने दी लिहाजा दिल्ली में चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी ने जोर लगाना शुरू कर दिया है। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि राज्यपाल भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। उधर भाजपा के एक विधायक ने तो यहां तक कह दिया था कि दिल्ली में सरकार बनाना चुटकी का काम है 24 घंटे के अंदर सरकार बन सकती है। बताया जाता है कि बीच में आम आदमी पार्टी के लगभग 7 विधायकों के टूटने की खबर आई थी लेकिन भाजपा की तरफ से कोई ग्रीन सिगनल न मिलने के कारण इन विधायकों ने अपना विचार बदल दिया। इसके बाद लम्बे समय तक यह भी खबर आई कि कांग्रेस के विधायक भाजपा को समर्थन देने के लिए राजी हैं। लेकिन कांग्रेस के टूटने वाले विधायकों की संख्या इतनी पर्याप्त नहीं थी कि भाजपा सरकार बना सकती। आम आदमी पार्टी के विधायक चुनाव में जाने के मूड में नहीं हैं। क्योंकि ज्यादातर विधायकों को हार का खतरा स्पष्ट दिखाई दे रहा है। इसीलिए आम आदमी पार्टी अपने विधायकों को एकजुट रखने की हर संभव कोशिश कर रही है।
उधर भड़काऊ पोस्टर लगाने के आरोप में आम आदमी पार्टी के नेता और पृवक्ता दिलीप पांडे की गिरफ्तारी तथा 14 दिन की न्यायिक हिरासत के कारण सियासत और गरमा गई है। दिल्ली में पोस्टर वार शुरू हो गया है। दिलीप पांडे को आईपीसी की धारा 153-ए, 295-ए के तहत गिरफ्तार किया गया था। ये पोस्टर कांग्रेस के 3 मुस्लिम विधायकों के खिलाफ लगाए गए थे। इन पोस्टरों में लिखा था कि आसिम मोहम्मद, मतीन चौधरी और हसन अहमद ने मुसलमान के कातिलों और कौम के गद्दारों से हाथ मिलाया तथा ये तीनों आरएसएस के साथ सांठ-गांठ करके भाजपा की सरकार बनवा रहे हैं। दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय का कहना है कि आम आदमी पार्टी के नेता माहौल खराब कर रहे हैं इसलिए इस पार्टी की मान्यता रद्द कर देनी चाहिए। उधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरविन्द सिंह लवली आगामी चुनाव में कांग्रेस की स्थिति सुधरने की आशा लगाए बैठे हैं। लवली का कहना है कि आम आदमी पार्टी घटिया राजनीति कर रही है इसलिए  दिल्ली की जनता का विश्वास खो चुकी है। दरअसल दिल्ली में कांंग्रेस गैर भाजपाई और गैर आम आदमी पार्टी दलों को संगठित करने की कोशिश कर रही है। लेकिन समाज वादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस को कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिए हैं। ये दोनों पार्टियां भाजपा से सम्बन्ध बिगाडऩा नहीं चाहतीं क्योंकि दोनों के आला नेताओं के विरूद्ध सीबीआई बहुत से मामलों में जांच कर रही है। इसलिए जो भी समीकरण बनेगा उसमें कांग्रेस को ज्यादा लाभ नहीं होगा। दिल्ली में बिहारियों की संख्या भी पर्याप्त है इसलिए नीतिश कुमार और लालू यादव की तरफ कांगे्रस ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। देखना है चुनाव के समय कांग्रेस मुकाबले में कितना ठहर पाती है। कांगे्रस के कई विधायक पार्टी नेतृत्व से नाखुश हैं और उनके  तेवर भी बगावती हैं इसलिए चुनाव आते-आते पार्टी के भीतर पनपता यह असंतोष भयानक रूप धारण कर सकता है।

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