31-Jul-2014 09:22 AM
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सेडमैप के स्वयंभू ईडी जीतेन्द्र तिवारी लघु उद्यमियों की संस्था को चूना लगाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते। तिवारी खरीदी, ट्रेनिंग, सर्विस टैक्स, कई घोटालों में लिप्त तिवारी ने पिछले वर्षों

में संस्था के खर्चे पर यात्राएं करके मनमाने बिल पास करवाये हैं और संस्था के ऊपर निर्धारित राशि से कई गुना ज्यादा राशि का भार डाल दिया है। पाक्षिक अक्स के पास उपलब्ध दस्तावेजों की छानबीन से पता चलता है कि ईडी तिवारी को जितनी राशि की पात्रता है उससे कहीं अधिक राशि उन्होंने अपनी यात्राओं पर खर्च की और यात्रा के दौरान कई दूसरी मदों में खर्च किए गए बिल को अन्य मदों में दिखाकर पैसे की वसूली की।
देश की सभी प्रमुख संस्थाओं में चाहे वे पूर्ण शासकीय विभाग हों या संस्था हों सभी जगह उनमें कार्यरत स्टाफ हेतु प्रचलित नियम अनुसार एवं पात्रता अनुसार भत्तों की सुविधा प्रदान की जाती है। इसी प्रकार सेडमैप में लागू सेवा नियमानुसार कार्यरत अधिकारी-कर्मचारी हेतु श्रेणी, एक से पांच बनाई गई हैं और इन्हीं श्रेणियों में उन्हें मुख्यालय से बाहर प्रवास के दौरान मिलने वाली सुविधाओं जैसे होटल में रुकने का भत्ता, दैनिक भत्ता एवं यात्रा भत्ता आदि निश्चित होती हैं। लेकिन लगता है ईडी ने अपने लिए कोई ऊपरी सीमा नहीं तय की है और मनमाने बिल लगाकर संस्था को प्रतिवर्ष लाखों रुपए की हानि पहुंचा रहे हैं। सेडमैप सेवा नियमानुसार कार्यकारी संचालक का पद सर्वोच्च श्रेणी अर्थात् श्रेणी-1 में आता है। संचालक मंडल की स्वीकृति पश्चात् 25 जुलाई 1995 को एक परिपत्र जारी कर सभी श्रेणियों के लिए पात्रता निश्चित की गई थी, जिसके अनुसार कार्यकारी संचालक मेट्रोपॉलिन सिटी में होटल में रुकने हेतु रुपए 600 प्रतिदिन बी केटेगिरी शहरों में 400 रुपए एवं अन्य शहरों में 300 रुपए तय की गई थी। इसी तरह दैनिक भत्ते की पात्रता क्रमश: 100, 90, 80 थी। 1 सितम्बर 1998 को ये दरें पुनरीक्षित की गई जिसके अनुसार कार्यकारी संचालक हेतु होटल में रुकने की पात्रता विभिन्न श्रेणी के शहरों के अनुसार क्रमश: 700, 500, 400 कर दी गई तथा दैनिक भत्ते की पात्रता क्रमश: 110, 100, 90 कर दी गई। यह पात्रता व्यावहारिक थी और इससे संस्था के खजाने पर ज्यादा भार पडऩे की संभावना नहीं थी। उस वक्त उच्चाधिकारियों ने इसका बखूबी ध्यान भी रखा और कोई भी अनियमितता तब सामने नहीं आई।
बाद में जब ईडी बनकर तिवारी इस संस्था में सर्वोच्च पद पर विराज गए तो 1998 के भत्तों में परिवर्तन की जरूरत महसूस की गई। संचालक मंडल के निर्णय अनुसार 30.6.2009 को एक परिपत्र जारी कर श्रेणी-1 को छोड़कर अन्य सभी श्रेणियों के लिए पात्रता की दरें पुनरीक्षित की गई, अर्थात् कार्यकारी संचालक का पद जो कि श्रेणी एक में आता है हेतु दिनांक 1.9.1998 का परिपत्र ही प्रभावशील है। कार्यकारी संचालक के लिए यात्रा भत्ते की दरें क्यों नहीं बदली गईं यह शोध का विषय हो सकता है क्या संचालक यह मान बैठे थे कि वे सारे कानूनों से ऊपर हैं और मनमाने भत्ते स्वीकृत करवाने की हैसियत रखते हैं। संभवत: ऐसा ही है क्योंकि तिवारी द्वारा की गई यात्राओं के भत्ते इत्यादि की जांच पड़ताल करने से साफ जाहिर होता है कि उन्होंने मनमाना खर्च किया और भार संस्था पर डाल दिया। पाक्षिक अक्स के पास प्राप्त एवं उपलब्ध दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि अपनी मनमर्जी के सेडमैप के नौकर जितेंद्र तिवारी जिन्हें शासन के साथ-साथ जांच एजेंसियां भी अंकुश नहीं लगा पा रही। उन्होंने इन नियमों को न मानते हुए अपनी पात्रता की कोई सीमा नहीं रखी है।
वर्ष 2012 में तिवारी द्वारा इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर में जिन होटलों में रात बिताई उनके किराए पात्रता से 10 से 20 गुना ज्यादा हैं जिन सबके प्रमाण पाक्षिक अक्स के पास उन होटलों के बिल नंबर, बिल राशि, उनके भुगतान की दिनांक, चेक नंबर आदि सभी सुरक्षित है। जिनसे स्पष्ट होता है कि मात्र 24 यात्रा में तिवारी ने एक लाख 80 हजार रुपए पात्रता न होते हुए भी खर्च कर दिए। जबकि पात्रता अनुसार 24 यात्राओं के लिए उनके खर्च की अधिकतम सीमा मात्र 19 हजार 200 रुपए होती है। यदि सेडमैप अध्यक्ष चाहे तो निष्पक्ष जांच से सिद्ध हो जाएगा कि उक्त राशि तिवारी से वसूली योग्य है। अब देखना यह है कि अध्यक्ष सेडमैप एवं मध्यप्रदेश शासन के आला अफसरों द्वारा कोई कार्यवाही की जाती है अथवा नहीं। जबकि तिवारी द्वारा 19 हजार 200 रुपए के एवज में 1 लाख 80 हजार 324 रुपए खर्च किए गए हैं। उक्त होटलों में पता करने से बताया गया है कि इन बिलों का समायोजन पीने के ऊपर खाने के साथ किया गया है।
जांच पर आंच नहीं
लोकायुक्त की शिकायत पर जबलपुर में खरीदी मामले की जांच उद्योग विभाग के वित्तीय सलाहकार की टीम ने करके अपनी रिपोर्ट उद्योग आयुक्त को दे दी। इस खरीदी में भंडार क्रय नियमों का उल्लंघन हुआ है। इस बात को लेकर तिवारी से पूछताछ करने पर उन्होंने अपना जवाब यह दिया है कि उक्त संस्था भंडार क्रय नियमों के अधीन नहीं आती है। ऐसा लगता है कि तिवारी की संस्था मध्यप्रदेश के सभी विभागों से ऊपर तिवारी द्वारा आंकी जा रही है। जांच को गलत दिशा में मोडऩा तिवरी के बाएं हाथ का खेल है।