राखड़ से तबाही
16-Jul-2014 07:20 AM 1234888

संत सिंगाजी ताप परियोजना को लेकर मध्यप्रदेश सरकार ने दावा किया था कि इससे बिजली उत्पादन बढ़ेगा। उत्पादन तो हुआ नहीं लेकिन इस प्लांट की राखड़ ने आसपास जो तबाही मचायी है उससे आम जनता और किसानों का जीवन दूभर हो गया है। कोयले की राखड़ ने मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ ही नहीं सारे देश में 11000 से अधिक लोगों की जिंदगी बरबाद कर दी है। उधर उद्योगों से निकला प्रदूषण मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थलों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। खजुराहो में कुछ समय पहले साइलेंट जोन और प्रदूषण मुक्त जोन बनाने की बात हुई थी लेकिन यह योजना भी कागजों तक ही सिमटी रही जिसके चलते एक तरफ प्रदेश में कई हिस्सों में राखड़ ने लोगों का जीवन दूभर किया तो दूसरी तरफ पर्यटन स्थलों में बढ़ते प्रदूषण ने रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न कर दिया। राखड़ जब उड़ती है तो उसको दबाने के लिए पानी छिड़का जाता है। यह पानी जमीन में बैठता है तो जमीन अनउपजाऊ हो जाती है और यदि राखड़ उड़ती रहे तो खांसी, कफ के बाद सांस की बीमारियों और बाद में टीबी, हृदय रोग का कारण बन सकती है। फसलों और पौधों पर तो इसका दुष्प्रभाव होता ही है जंगल नष्ट हो जाते हैं। औद्योगिकरण के कारण कई इलाकों में ऐसे उद्योग स्थापित हो गए हैं जिनसे फ्लाई ऐश डस्ट, खेतों घरों से लेकर लोगों के शरीर में पहुंच जाती है जिसके चलते जीवन तबाह होने का खतरा पैदा हो जाता है। हाल ही में ग्रीन पीस इंडिया, कंजरवेशन एक्शन ट्रस्ट और एमिशन्स डॉट इन्फो की रिपोर्ट में बताया गया है कि फ्लाई एश के कारण मध्यप्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड जैसे राज्यों में हर साल 11000 लोगों की मौत हो जाती है। अकेले छत्तीसगढ़ में प्रति वर्ष ढाई करोड़ टन राख पैदा होती है जो जल, थल, नभ हर जगह प्रदूषण फैला देती है।
महाकाल पर भी आंच
उज्जैन में महाकाल मंदिर के शिवलिंग का क्षरण हो रहा है। बताया जाता है कि पूजन सामग्री में मिलने वाले तत्व शिवलिंग को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसीलिए अब सूखी पूजा का सुझाव दिया गया है। उधर मंडीदीप के निकट भोजपुर मंदिर में भी प्रदूषण का असर साफ नजर आने लगा है। भोजपुर में मंदिर की दीवारों में लगे पत्थर रंग बदल रहे हैं और उन पर प्रदूषण का असर साफ देखा जा सकता है। जंगल कम होने के कारण कई पर्यटन स्थलों पर दुष्प्रभाव पड़ा है जिससे पर्यटकों की आवाजाही प्रभावित हुई है। यदि यही हाल रहा तो प्रदूषण के चलते मध्यप्रदेश में पर्यटन बुरी तरह प्रभावित होगा।

विश्व धरोहर खतरे में
मध्यप्रदेश में भीम बैठका, सांची के स्तूप और खजुराहो को विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त है। लेकिन ये तीनों स्थान खतरे में हैं। खासकर भीम बैठका और खजुराहो पर खतरा ज्यादा है। भीम बैठका को मण्डीदीप की औद्योगिक इकाईयों ने नुकसान पहुंचाया है तो खजुराहो में प्रस्तावित थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट मंदिरों की कब्रगाह बन सकते हैं।
खजुराहो से थोड़ी दूर पर ही एनटीपीसी का जो सुपर थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट प्रस्तावित है वह स्थापित मानकों पर आधारित नहीं है। उसके लिए पर्यावरण संबंधी जिस तरह का अध्ययन किया जाना चाहिए वह नहीं हुआ है। अगर थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट लगता है तो एक तरफ खजुराहो की विश्व धरोहर के नष्ट होने का जहां खतरा पैदा हो जाएगा वहीं पन्ना के टाइगर संरक्षण वाले वनों पर भी संकट मंडराएगा। यह सूचना भी है कि मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी है, लेकिन यह माना है कि प्रोजेक्ट को लाने से पहले इस तरह के ऐहतियाती उपाय जरूरी हैं जिससे खजुराहो और पन्ना के जंगलों में संरक्षित टाइगर को कोई नुकसान न हो। यह भी अजीब-सी बात है कि जिस पॉवर प्रोजेक्ट को वहां लाने के प्रयास हो रहे हैं उसके लिए कोयला बहुत दूर से लाया जाएगा। यह एक ऐसा तथ्य है जो संदेह पैदा करता है, कि दिखाया जो जा रहा है उससे अधिक बड़ी बात छिपाई जा रही है। विश्व धरोहर खजुराहो के ऐतिहासिक मंदिरों को प्रदूषण से बचाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंदिरों के आसपास जीरो पॉल्यूशन जोन तैयार करेगा। इसके तहत मंदिरों के चारों तरफ एक किमी के दायरे में प्रतिबंध की दीवारÓ खड़ी की जाएगी। चारों तरफ हरियाली की चादर बिछेगी। पर्यटकों के लिए पॉलीथिन सॉक्स अनिवार्य होंगे। साथ ही पेट्रोल के खतरनाक धुएँ से बचाने के लिए मंदिरों तक केवल बैटरीचलित वाहनों को ही जाने की इजाजत होगी। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने खजुराहो के मंदिर परिसर को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए आसपास के क्षेत्र से लगी लगभग 50 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है। क्या थर्मल पावर प्रोजेक्ट के चलते इस योजना से अपेक्षित लाभ मिल सकेगा।

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