रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग केवल कागजों पर
05-Jul-2014 08:12 AM 1234907

वर्ष 2011 में 14 मकान मालिकों द्वारा रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम न लगाए जाने पर जब भोपाल नगर निगम ने उन्हें नोटिस थमाया था तो लगा था कि कहीं न कहीं वर्षा जल संचयन को लेकर सरकार गंभीर हो चुकी है लेकिन उसके बाद से ऐसी कोई भी खबर नहीं आई कि जिससे यह पता चलता कि पानी बचाने की इस अभूतपूर्व प्रणाली को लगाने के लिए सरकार गंभीर है। यहां तक की सरकारी भवनों के रूफ वॉटर प्लांट भी बेकार हो चुके हैं। अकेले भोपाल ही नहीं हर जिले में यही हाल है। मध्यप्रदेश में औसतन 90 दिन बारिश हो ही जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि केवल 10 दिन बरसने वाली बारिश को रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम द्वारा संरक्षित कर लिया जाए तो अरबों रूपये की बचत होगी ही पानी की भी कमी नहीं रहेगी लेकिन इस दिशा में गंभीर प्रयास किए ही नहीं गए। भोपाल ही नहीं सागर, विदिशा, अशोक नगर जैसे जिलों में जहां पानी की किल्लत है, रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य बना दिया गया है लेकिन जनता बिना परमीशन के मकान तो बना लेती है पर रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना किसी भी स्थिति में अनिवार्य नहीं समझती। बिल्डर भी लागत के भय से रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने से बचना चाहते हैं और भ्रष्ट अधिकारी उनकी इस मुराद को पूरा करने का रास्ता निकाल ही लेते हैं। आलम यह है कि रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का 1 प्रतिशत लक्ष्य भी प्राप्त नहीं किया जा सका है।
मप्र भूमि विकास नियम 1984 की धारा 78(4) के अनुसार 140 वर्ग मीटर या इससे अधिक क्षेत्रफल के भूखंड पर भवन निर्माण में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का प्रबंध करना प्रदेश सरकार ने अनिवार्य किया है। शासन के इस आदेश पर नगर निगम प्रशासन ने भी 26 दिसंबर 2009 को आदेश जारी कर रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य कर दिया है। इस दिनांक के बाद से 140 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल वाले भूखण्ड पर भवन निर्माण के लिए नए व पुराने शहर में 3700 अनुज्ञा जारी की गई है। इस श्रेणी में आने मकान मालिकों से नगर निगम ने धरोहर राशि जमा कराई है। 140 से 200 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वालों से 7000 रुपए, 201 से 300 वर्ग मीटर वालों से 10000 रुपए, 301 से 400 वर्ग मीटर वालों से 12000 रुपए और 401 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल वालों से 15000 रुपए धरोहर राशि जमा कराई गई।
रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जाने की अनिवार्यता के एक साल बाद इस श्रेणी में आने वाले भवन मालिकों में से कितनों ने यह सिस्टम लगाया और कितनों ने नहीं, यह जांचने के निर्देश नगर निगम आयुक्त ने भवन अनुज्ञा विभाग को दिए थे। निगम आयुक्त के निर्देश पर भवन अनुज्ञा के अधिकारियों ने घर-घर जाकर सर्वे प्रारंभ किया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थे। कुल 2 प्रतिशत लोगों ने ही ये सिस्टम लगवाये थे।
आंकड़े बताते हैं कि साल में औसतन 677 मिलीमीटर सालाना बारिश होती है, इसमें से 79 फीसदी जुलाई से सितंबर के तीन महीनों में है।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग से इतना पानी आ जाता है कि बारिश के सीजन के अलावा सौ से डेढ़ सौ दिनों तक काम चलाया जा सके,साल के छह से आठ महीने बैक्टीरिया की दृष्टि से सुरक्षित और बिना आर्गेनिक तत्वों के पानी मिल सके। यह पानी अगर धरती में मौके पर ही चला जाए तो धरती में भूमिगत जल में फ्लोराइड व नाइट्रेट की अतिरिक्त मात्रा कम हो सकती है।
टॉयलेट के बाहर, कपड़े धोने, बर्तन साफ करने, कार-स्कूटर धोने से लेकर बगीचे में छिड़कने के लिए ये सबसे उपयुक्त है, इसमें साबुन का उपयोग भी कम करना पड़ता है। कम होती बरसात और पानी की बढ़ती कीमतों के बावजूद प्रदेश में अब तक जनपुनर्भरण कार्य के प्रति लोगों में चेतना जागृत नहीं हुई है। न तो हैंडपंपों पर और न ही मकानों की छतों पर लोगों ने पानी को रिसाइकिल करने के लिए कोई व्यवस्था की है। शासकीय एवं निजी भवनों में चाहे यह कार्य अनिवार्य कर दिया गया हो, परंतु इसके प्रति जनता उदासीन है।  रुफ हार्वेस्टिंग करने के पहले साल 25 प्रतिशत और दूसरे साल 75 प्रतिशत तक लाभ मिलता है परंतु इंतजार करना पड़ता है। रूफ हार्वेस्टिंग में मात्र 2 से 3 हजार रूपए लागत आती है। 15-20 वर्ष पुराने बोरिंग भी इससे लाभान्वित हो सकते हैं। इससे पानी की गुणवत्ता भी सुधर जाती है।

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