16-Jul-2014 07:15 AM
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4 जुलाई को जबलपुर स्थित नेता जी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. डी के साकल्ले जब अपने घर के आंगन में 90 प्रतिशत जली हुई अवस्था में मिले तो सारे प्रदेश में सनसनी फैल

गई। एक फॉरेन्सिक डॉ. ने खुद पर कैरोसीन डालकर इतनी दर्दनाक मौत क्यों चुनी जबकि आत्महत्या के कई सरल और कम कष्टदायी विकल्प उनके समक्ष मौजूद थे, इस प्रश्र ने सब को झकझौर दिया है। हादसे के समय डॉ. साकल्ले की पत्नी घर के बाहर टहल रही थीं और आसपास उनके कुछ कर्मचारी भी मौजूद थे लेकिन इतने पास कोई नहीं था कि उन्हें जलते हुए देखता या आत्महत्या की कोशिश पर बचाने का प्रयास करता। साकल्ले ने अचानक उस थोड़े से समय में इतना खतरनाक कदम कैसे उठा लिया यह रहस्य बना हुआ है। हादसा घट गया और किसी को पता भी न चला।
साकल्ले की मृत्यु कई सवाल खड़े करती है। एक ऐसा व्यक्ति जो छात्रों को स्वयं फॉरेन्सिक साइंस पढ़ाता था और शरीर की संरचना से भली-भांति परिचित था। जिसे शरीर पर होने वाले बारीक से बारीक कष्ट का भी व्यापक ज्ञान था उस व्यक्ति ने केरोसीन अपने ऊपर उड़ेलकर आग कैसे लगाई होगी। डीन जैसे सम्मानित पद को सुशोभित करने वाले सम्पन्न साकल्ले ने केरोसीन का जुगाड़ कैसे किया किसके मार्फत मंगाया, कब मंगाया। क्या वे अक्सर केरोसीन खरीदा करते थे। केरोसीन अवश्य ही कुछ दिन या चौबीस घंटे पहले उनके आवास में पहुंचा होगा। उनकी पत्नी ने सवाल नहीं किया कि यह केरोसीन क्यों लाया गया है। आत्महत्या की योजना बनाने वाले व्यक्ति अक्सर आत्महत्या का सबसे आसान तरीका तलाशते हैं। जो लोग दर्दनाक तरीके से मौत को गले लगाते हैं वे सामान्यत: भावावेश में आकर आत्मदाह जैसे कदम उठा सकते हैं। यदि साकल्ले की आत्महत्या अनायास थी तो यह कैसे संभव हुआ? यदि अनायास नहीं थी तो उन्हें किन हालातों ने इस कृत्य के लिए प्रेरित किया? यह सवाल तो सदैव ही पूछे जाएंगे। संभवत: सीबीआई इन सवालों के जवाब तलाश सके क्योंकि मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने साकल्ले प्रकरण सीबीआई को सौंपने की घोषणा की है।
साकल्ले के साथी अध्यापकों और उनसे पढऩे-सीखने वाले जूनियर डॉक्टरों से बातचीत करने पर बहुत कुछ ऐसा पता चलता है जिससे लगता है कि यह आत्महत्या निहायत संदिग्ध और उद्देश्यपूर्ण है। पाक्षिक अक्स के पत्रकार जब अध्यापकों और जूनियर डॉक्टरों से रूबरू होकर पूछा तो उन्होंने बताया कि साकल्ले के ऊपर प्रशासकीय दबाव था। एक कॉलेज के डीन होते हुए भी उनकी हैसियत किसी चपरासी की तरह थी उन्हें जब-तब कमिश्रर द्वारा बुलाई बैठकों में तलब किया जाता था और इन बैठकों में पूछे गए सवालों से उन्हें चिढ़ होती थी। वे कदचित इन बैठकों से बचना चाहते थे। कुछ दिन पहले उनके समक्ष एक फाइल लाई गई थी जिसे फेंकते हुए साकल्ले ने कहा था कि यह फाइल उनके सामने दोबारा न लाई जाए। वह फाइल कौन सी थी। नजदीक के लोग उस फाइल के विषय में कुछ बताने को राजी नहीं थे। यह भी कहा जा रहा है कि उनकी मृत्यु से कुछ दिन पूर्व स्थानीय चैनल पर एक फुटेज दिखाई जा रही थी जिसने उन्हें परेशान कर दिया था। कौन सी फुटेज थी वो? वर्ष 2003 में जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 15 मुन्ना भाई पकड़ाए थे इस मामले में भी कहीं न कहीं साकल्ले परेशान थे क्योंकि आए दिन पेशी पर जाना-आना जो पड़ता था।
इतनी परेशानी के साथ-साथ प्रशासनिक दबाव और रंगदारी ने साकल्ले को भीतर से तोड़ दिया होगा। उस टूटन को उन्होंने उस वक्त कुछ ज्यादा ही महसूस किया था। जूनियर डॉ. यह भी बताते हैं कि इस क्षेत्र के विधायक महोदय भी उन्हें धमका चुके हैं और एकाध बार तो विधायक जी थप्पड़ मारने की कोशिश भी कर चुके हैं। हरदा निवासी उनके पिता 1940 में पहली बार जबलपुर आए उन्होंने कृषि विभाग में नौकरी की थी। वहीं से साकल्ले की शुरुआती दौर चालू हुआ और वहीं वो पढ़-लिखकर मेडिकल कॉलेज के डीन बन गए। उनके करीबी बताते हैं कि धमकियों, दबाव से उन्हें गहराई तक तोड़ दिया और यह टूटन लम्बे समय तक बनी रही। लेकिन क्या ये घटनाएं उनकी आत्महत्या का कारण बन सकती थीं। मध्यप्रदेश मेें जिस तरह व्यापमं घोटाले को उमा भारती ने चारा घोटाले की तरह व्यापक और विस्तृत बताया था उसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि कहीं इस घोटाले में भी ऐसी ही दर्दनाक मौतों का सामना न करना पड़े। चारा घोटाले में भी कई आत्महत्याएं और हत्याएं हुईं व्यापमं में कुछ दिन पूर्व एक छात्रा ने आत्महत्या की थी और व्यापमं की जांच जिस दौर में है उसे देखते हुए इस आत्महत्या पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
विसरा कैसे गायब हुआ
डॉ. डीके साकल्ले की मौत की जांच सीबीआई को सौंपने की घोषणा से पहले विधानसभा में भी जमकर हंगामा हुआ। गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने कहा कि पांच डॉक्टरों की टीम ने पोस्टमार्टम के बाद मामले को प्रथम दृष्टया आत्महत्या का बताया था। इस पर कांग्रेस विधायक तरुण भनोत ने कहा कि मौत के बाद डीन का विसरा कैसे गायब हो गया। डीन ने मौत के कुछ समय पहले इंटरव्यू दिया था, जिसमें दबाव आने का जिक्र किया था। कोई दलाल दुबे उनको धमका रहा था। स्वास्थ्य विभाग में खुलेआम दलाल घूम रहे हैं। कॉलेज में खरीदी की जांच होनी चाहिए। डीन फॉरेंसिक विशेष भी थे। वे डेढ़ लीटर घासलेट में 95 फीसदी कैसे जल गए। वे चाहते तो सुई लगाकर भी जान दे सकते थे।
पुलिस का कहना है कि डॉ. साकल्ले ने सुबह 7 बजे अपने घर पर ही केरोसिन उड़ेल कर खुद को आग लगा ली। उस समय उनकी पत्नी मॉर्निंग वॉक पर गई थीं, जब वे लौटीं तो उन्होंंने डॉ. साकल्ले को बरामदे में जली हुई अवस्था में देखा। दूसरी तरफ डॉ. साकल्ले को से जुड़े लोगों का कहना है कि वे खुदकुशी नहीं कर सकते। यह संभावना ज्यादा है कि उनको किसी ने आग के हवाले कर दिया है। इसके पीछे लोगों का तर्कहै कि वे व्यापमं घोटाले की जांच समिति में भी थे। उनके द्वारा जिस तरह से दोषियों के प्रति कड़ा रूख अपनाया जा रहा था, उससे घोटाले में शामिल लोग नाराज थे। हो सकता है इसी के चलते किसी ने ऐसा किया हो। जब डॉ. साकल्ले का शव लाया गया तो उनकी जीभ बाहर निकली हुई थी और आमतौर पर खुदकुशी करने वाले व्यक्ति की जीभ बाहर निकले, यह संभव नहीं होता है। क्या उनका गला दबाया गया फिर आग लगाई गई। डॉ. साकल्ले ने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है, जिसे उजागर नहीं किया गया है। गढ़ा पुलिस ने अपनी प्रारंभिक जांच में जानकारी दी है कि घटना स्थल पर एक 5 लीटर मिट्टी तेल की कुप्पी मिली है, इसमें से डेढ़ लीटर मिट्टी का तेल डॉ. साकल्ले ने अपने ऊपर उड़ेला और आग सुलगा ली। घटना स्थल पर अधजली माचिस की तीली और माचिस भी मिली है। कुप्पी में कोई अन्य पदार्थ नहीं था। जांच दल का कहना है कि डॉ. साकल्ले पिछले एक साल से स्पाइनल इंज्युरी से ग्रस्त थे। उनके घर से एक्स-रे और दवाइयां भी मिली हैं।
पिछले कुछ समय साकल्ले वे कैजुअल लेबर को लेकर भी तनाव में थे। मेडिकल में 342 लेबर को स्थायी करने के मामले को लेकर भी उन पर दबाव डाला जा रहा था। इस विषय को लेकर लगातार बैठकें हो रही थीं। डॉ. साकल्ले 20 दिनों की छुट्टी पर थे और मृत्यु की पूर्व रात्रि अपने पूर्व सर्वेन्ट गोपाल से भी मिले थे। उनकी सेवानिवृत्ति सितंबर में ही होनी थी।
डेढ़ लीटर घासलेट में कैसे जली देह
साकल्ले के शव को देखने वाले प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उनकी मृत्यु आसान नहीं रही होगी। जिस तरह पूरा शरीर बुरी तरह झुलस गया था और त्वचा ऊपर से नीचे तक लगभग पूरी जल चुकी थी, चर्बी पिघल गई थी उसे देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि मात्र डेढ़ लीटर घासलेट में शरीर का इतना बुरा हाल संभव नहीं है। इसीलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मृत्यु का प्रमुख कारण सदमा बता रही है। क्या घटनास्थल को साफ कर दिया गया था? या वहां पर घासलेट के बाकी अन्य केन हटा दिए गए थे? या वारदात करने वाले सबूत मिटाने की कोशिश कर रहे थे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर शायद न मिल पाए। साकल्ले के पास ऊंची नस्ल का कुत्ता था वह भी अपने मालिक के ऊपर आए संकट को नहीं भांप पाया। क्या उसे घटना स्थल से जानबूझकर दूर ले जाया गया। सीबीआई की जांच में यह सब परिस्थितियां अहम सबूतों का काम करेंगी। साकल्ले के साथ काम करने वाले वरिष्ठ और कनिष्ठ डॉ. भी इस मौत पर आश्चर्यचकित हैं। उनका कहना है कि इतना मजबूत व्यक्ति अचानक क्यों टूट गया। उनके सबसे मधुर संबंध थे और उनके व्यवहार से भी कहीं यह नहीं झलकता था कि वे मौत को गले लगाएंगे। इसीलिए सभी डॉक्टरों ने मिलकर सरकार से सीबीआई जांच की मांग की थी। आखिर यह मांग क्यों की गई। क्या डॉक्टरों को किसी षड्यंत्र का अंदेशा है। यदि यह षड्यंत्र है तो इसे अंजाम देने वाले कौन हंै और क्यों उन्होंने डॉ. साकल्ले को इतनी दर्दनाक मौत दी। पुलिस के फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने भी सबूत एकत्र किए हैं और डॉक्टरों से भी बातचीत की है। उनके ऊपर दबाव था यह बात दबे स्वरों में कही जा रही है, लेकिन किस तरह का दबाव था यह ज्ञात नहीं हो पाया है। डॉक्टर्स ज्यादा कहने से हिचक रहे हैं। कुछ वरिष्ठ डॉक्टरों ने इस घटना के बाद छुट्टी ले ली थी और कुछ ने मीडिया से भी दूरी बना ली। एक रहस्यमय शांति सारे कैम्पस में व्याप्त है। कॉलेज के डॉक्टर्स जांच की प्रक्रिया और गति से संतुष्ट नहीं हैं।