05-Jul-2014 07:53 AM
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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जब केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं फिल्म अभिनेता आमिर खान की उपस्थिति में जब गौरवी केन्द्र या वन

स्टॉप क्राइसिस सेन्टर की नींव रखी गई तो लगा कि कहीं न कहीं सरकार महिलाओं के हितों को लेकर गंभीरता से कार्य कर रही है। वन स्टॉप क्राइसिस सेन्टर का विचार भारत में भले ही नया हो लेकिन दु्रनिया के तमाम देशों में इस तरह के केन्द्र चल रहे हैं। मलेशिया में तो वन स्टॉप क्राइसिस सेन्टर को काफी सफलता भी मिली है। वन स्टॉप क्राइसिस सेन्टर एक ऐसा स्थान है जहां पर एक ही छत के नीचे पीडि़ता को कानूनी सहायता, चिकित्सकीय सहायता, पुलिस सहायता और काउंसलिंग की सुविधा मिल जाती है। भोपाल में जय प्रकाश अस्पताल में प्रदेश का पहला वन स्टॉप क्राइसिस सेन्टर स्थापित किया गया है। सरकार का कहना है कि प्रदेश के सभी जिलों में इसी तर्ज पर वन स्टॉप क्राइसिस सेन्टर स्थापित किए जाएंगे।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शुरू हुए गौरवीÓ केन्द्र को पूरे देश में वन स्टॉप क्राइसिस रेसेल्युशन सेंटर के रूप में पहचान मिलेगी। यह केंद्र महिलाओं के सम्मान और उनके अधिकारों की हिफाजत की दिशा में कार्य करेगा। इस केंद्र में हिंसा और बलात्कार की शिकार महिलाओं की मदद दी जाएगी। इनमें आपदा हस्तक्षेप सेवाएं, पीडि़त महिलाओं को एफआईआर दर्ज करवाने में सहयोग, त्वरित संबल देते हुए परामर्श, आवश्यक सुरक्षा, शासकीय योजनाओं का लाभ दिलवाना, अधिवक्ता से सलाह, जीवन यापन के लिए सहायता और अन्य आवश्यक पुनर्वास शामिल हैं। फरवरी 2013 में द हिन्दू अख़बार में छपी एक खबर के अनुसार महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ऐसे 100 सेंटर खोलने की घोषणा कर चुका था। लेकिन चुनावी माहौल के चलते यह योजना ठण्डे बस्ते में चली गई। बाद में नई सरकार के सत्तासीन होते ही इस दिशा में तेजी से काम हुआ। अब सारे देश में हर जिले में वन स्टॉप क्राइसिस सेन्टर खोलने की बात केन्द्र सरकार द्वारा की जा रही है। इसका सकारात्मक असर दिखने लगा है भोपाल में वन स्टॉप क्राइसिस सेन्टर खुलने के तीन दिन के भीतर ही 250 कॉल आ चुके थे और 10 मामले दर्ज भी हो गए। महिला आंदोलनों के शुरूआती दौर में यह महसूस किया गया कि खुले मंच में पुरुषों के साथ बैठने से महिलाओं को अपने लिए एक अलग जगह चाहिए जहाँ वे अपनी बातें रख सकें। पर धीरे धीरे महिलाएं उस मुकाम तक पहुँच चुकी हैं जहाँ वे महिला हिंसा और लिंग आधारित हिंसा पर जनता के सामने पुरुषों से बात कर सकती हैं। दोषियों को सजा दिलवाकर ही हम इस तरह के मामलों में कमी ला सकते हैं। इसलिए भारतीय न्याय प्रणाली में विश्वास के लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
अधिकारियों की उदासीनता और लाल फीताशाही के चलते बहुत से अच्छे संवैधानिक प्रावधान और कानून जैसे सूचना अधिकार कानून, घरेलू हिंसा कानून, पीएनडीटी एक्ट, बाल विवाह कानून और विशाखा निर्देश अपना उद्देश्य प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, वहीं वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर को लेकर भी यही संदेह है कि इसका भी यही हश्र न हो। असली चुनौती इन क्राइसिस सेन्टरों की कार्यप्रणाली, इसमें काम करने वाले लोगों और उनके प्रशिक्षण को लेकर है। इसलिए जरुरी है कि इसके लिए विस्तृत मार्गनिर्देशिका बनाई जाये, स्टाफ की भरती और प्रशिक्षण सही से हो, साथ ही स्टाफ महिला मुद्दों के प्रति संवेदनशील हो। इन सेन्टरों को जिला मुख्यालयों के बजाय पंचायत स्तर तक ले जाया जाये। जवाबदेही के साथ साथ, कमी होने पर सजा के प्रावधान भी बनाये जाएँ साथ ही इन सेन्टरों में पीडि़ता के लिए सुरक्षित आश्रय की भी व्यवस्था हो। यह एक तरीका है पुलिस को और जवावदेह बनाने का, न्यायपालिका को और संवेदनशील बनाने का और डाक्टरों को और उत्तरदायी बनाने का।
भारत सरकार, महिलाओं की रक्षा करने और विशेष रूप से उनके प्रति अपराध की घटनाओं को रोकने के लिए और अधिक उपाय किए जाने के लिए जरुरी कदमों के संबंध में समय-समय पर राज्य सरकारों को सलाह जारी करती रही है। इन सलाहों में अन्य बातों के साथ-साथ पुलिस कार्मियों को महिलाओं के प्रति सुग्राही बनाना, महिलाओं के प्रति हिरासती हिंसा में दोषी पाए गए सरकारी कर्मचारी को तत्काल और सेल्यूटरी दंड देने के लिए उचित उपाय अपनाना, महिलाओं की हत्या, बलात्कार और उत्पी डऩ की जांच-पड़ताल में कम से कम समय लगाना और इसकी गुणवत्ता में सुधार करना, जिन जिलों में महिलाओं के प्रति अपराध प्रकोष्ठÓ नहीं हैं वहां इनकी स्थापना करना, पीडि़त महिलाओं को पर्याप्त संख्या में परामर्श केन्द्र और आश्रय गृह प्रदान करना, विशेष महिला अदालतें स्थापित करना और पीडि़त महिलाओं के कल्याण और पुनर्वास के लिए विकसित योजनाओं की प्रभावकारिता में सुधार करना जैसी बातें शामिल हैं। वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर भी इसी सलाह का हिस्सा है। देशभर के 100 शहर ऐसे हैं जहां महिलाओं के खिलाफ सबसे अधिक अपराध होता है। इन शहरों में सत्यमेव जयते में सुझाए गए वन स्टॉप प्रोटेक्शन सेंटर बनाए जाने की मांग की गई। इस शहरों में दिल्ली नंबर एक पर है, जबकि गुडग़ांव दूसरे नंबर पर, हैदराबाद तीसरे, बंगलूरू चौथे और कोलकाता पांचवें नंबर पर है।
नेशनल मिशन फॉर एंपावरमेंट ऑफ वुमेन के आधार पर अब ऐसे केन्द्र की जरूरत महसूस की जा ही है जहां उत्पीडऩ की शिकार महिलाओं को एक ही जगह सारी तरह की मदद मिल जाएं। वर्ष 2011 से 2013 के आंकड़ों में देश भर में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है। नये कानून के बाद भी बलात्कार की घटनाएं बढ़ी हैं। निश्चित रूप से आरोपियों को कानून का डर नहीं, इसलिए अब ऐसी पीडि़त महिलाओं की मदद से एक जगह ही व्यवस्था की जाएं। जहां उत्पीडऩ की शिकार महिला की मेडिकल जांच, कानूनी सलाह व अन्य पुलिस कार्रवाई आदि एक साथ हो जाएं। अकेले दिल्ली में महिलाओं पर होने वाले कुल अपराध में 19.3 प्रतिशत केस बलात्कार के हैं, जबकि गुडग़ांव में यह आंकड़ा 11 प्रतिशत है। दिल्ली में अकेले एक साल में महिला उत्पीडऩ के 1,870 ऐसे मामले दर्ज किए हैं, जिनमें पति और सगे संबंधियों ने महिला पर अत्याचार किया। अन्य शहरों में गुवाहटी, विजयवाड़ा, अहमदाबाद, मेरठ, पटना, चेन्नई, बंगलूरू, गाजियाबाद, जयपुर आदि शामिल हैं।