दोनों गठबंधनों में असंतोष
16-Jul-2014 06:15 AM 1234769

महाराष्ट्र में सत्तासीन और सत्ता के सपने देखने वाले दोनों गठबंधनों में असंतोष उभर आया है। सत्तासीन कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में सीटों के तालमेल पर तलवारें खिंची हैं तो भाजपा-शिवसेना में मुख्यमंत्री पद को लेकर तनातनी है। हालांकि मतभेदों के बावजूद बीजेपी-शिवसेना साथ चल रही है, लेकिन दोनों पार्टियों के अंदर गठबंधन खत्म करने की मांग उठती रहती है।
कांग्रेस की एक दशक से सहयोगी रही एनसीपी ने कांग्रेस से 144 सीटों की मांग की है। इसके पीछे एनसीपी ने तर्क दिया है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की अपेक्षा ज्यादा सीटें आई हैं इसलिए वह विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें मांग रही है। महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं। एनसीपी प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे ने 144 सीटों की मांग को जायज ठहराते हुए कहा है  कि सन 2004 के विधानसभा में कांग्रेस ने एनसीपी को 124 सीटें दी थी जबकि 2009 में 114 सीटें। उस वक्त सीटें कम देने के बाबत कांग्रेस ने तर्क दिया था कि लोकसभा में उन्होंने ज्यादा सीटें जीती है इसलिए विधानसभा चुनाव में वे ज्यादा सीटों पर लड़ेंगे। वही फार्मूला कांग्रेस को अब भारी पडऩे लगा है। तटकरे का कहना है कि हम कांग्रेस के ही बनाए फार्मूले को अमल में लाने की मांग कर रहे हैं। तटकरे से पहले एनीसीपी के दबंग नेता व उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने  एक पार्टी बैठक में 144 सीटों पर चुनाव लडऩे की बात कहीं थी। यदि ऐसा हुआ तो चौथी बार भी राज्य में कांग्रेस-एनसीपी की ही सरकार आएगी। पवार का यह बयान इस बात का संकेत है कि सत्ता में आने पर एनसीपी मुख्यमंत्री पद की मांग करेगी।
उधर भाजपा शिवसेना गठबंधन भी इसी कश्मकश का शिकार है। पार्टी के पुराने नेता मधु चव्हाण शिवसेना  से गठबंधन तोडऩे की धमकी दे डाली है। इससे पता चल रहा है कि निचले स्तर पर गठबंधन को लेकर घुटन बनी हुयी है किन्तु  महाराष्ट्र में सत्ता के सपने देख रही बीजेपी विवादों से दूर रहना चाहती है। मराठा आरक्षण, शिवसेना से स्पर्धा और एमएनएस जैसे नए दलों को गठबंधन में जोडऩे जैसे विवादित विषयों को राज्य कार्यकारिणी की बैठक में इस बार तवज्जो नहीं दी गई थी। इस बार चव्हाण ने अपने जोशीले भाषण में शिवसेना के साथ युति पर प्रश्नचिह्न लगाया। उन्होंने कहा, हर बार हम ही क्यों समझौता कर लेते हैं? 1995 के चुनाव में सत्ता लाने के लिए गठबंधन, काल की आवश्यकता थी। तीन पायों की रेस से अब तंग आ चुके हैं। उन्होंने कहा, बीजेपी इस बार अपने बूते पर 145 सीटें जितवाकर लाए। चव्हाण ने मंच पर उपस्थित अपनी पार्टी के नेताओं से पूछा कि क्या पार्टी को बोनसाई बनाना है? बीजेपी के स्थानीय नेताओं ने आरोप लगाया है कि शिवसेना राज्य में बड़े भाई के भूमिका में हमेशा रहती है। बीजेपी को नियंत्रित करने की कोशिश करती है। नेताओं ने मांग की है कि शिवसेना की इन हरकतों को अब बर्दाश्त करने की जरूरत नहीं है। गौरतलब है कि शिवसेना ने लोक सभा चुनाव में मिली जबरदस्त सफलता का श्रेय मोदी को नहीं दिया था। इससे बीजेपी नेता नाराज भी हुए थे। उसके बाद से ही शिवसेना के साथ गंठबंधन तोडऩे की आवाज पार्टी में उठने लगी थी।
महाराष्ट्र बीजेपी प्रमुख देवेन्द्र फडनवीस कहते हैं शिवसेना हमारा अच्छे समय के साथ ही मुश्किल दौर का भी साथी रहा है। केवल इसलिए कि हमारी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है, गठबंधन तोडऩे का आह्वान करना ठीक नहीं होगा।Ó हालांकि बाद में फडनवीस ने कार्यकर्ताओं की भावनाओं से आलाकमान को अवगत कराने का आश्वासन दिया। साथ ही उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 25 सालों से गठबंधन विचारों के आधार पर चल रहा है। शिवसेना ऐसा मित्र दल है, जिसने अच्छे-बुरे दिनों में साथ दिया है। इस तरह एक दिन में युति नहीं तोड़ी जा सकती। उधर शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने भी भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक के दौरान अकेले दम पर पार्टी के विधानसभा चुनाव लडऩे की मांग उठने को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि शीर्ष नेताओं द्वारा शुरू किया गया भगवा गठबंधन मजबूत है और इसमें किसी तरह की टूट नहीं पड़ी है। उद्धव ने भाजपा की बैठक में उठी मांग की तरफ परोक्ष रूप से इशारा करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद लोगों के अच्छे दिन भले ही आ गए हों, पर उनके लिए तनाव बढ़ गया है।
ज्ञात रहे कि इस मार्च माह में भाजपा शिवसेना गठबंधन उस वक्त खतरे में आ गया था जब भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने मनसे प्रमुख राज ठाकरे को खुला आमंत्रण देने और उनसे भाजपा और मोदी का समर्थन करने की मांग की थी। तब शिवसेना ने भाजपा की तरफ अपना रुख सख्त कर लिया था। बाद में राजीव प्रताप रूडी ने मामला संभाला था।
इस बीच महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर निर्वाचन आयोग ने कवायद शुरू कर दी है। आयोग ने महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव 13 से 18 अक्तूबर के बीच कराए जाने के संकेत दिए हैं। महाराष्ट्र के अलावा हरियाणा, झारखंड, जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव होंगे। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 7 दिसंबर को खत्म हो रहा है। लोकसभा चुनावों के बाद से ही चुनाव आयोग महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनावों की तैयारी में लगा हुआ है। आयोग 27 अक्तूबर तक उन सभी विधानसभाओं के चुनाव कराना चाहता है, जहां जनवरी 2015 से पूर्व चुनाव होने हैं। महाराष्ट्र में दो से तीन चरणों में होने वाले मतदान के लिए अक्तूबर में पडऩे वाले त्यौहारों के कारण आयोग पसोपेश में है। सितंबर महीने में महाराष्ट्र में गणेशोत्सव का त्योहार होगा दीवाली 23 अक्टूबर को है। महाराष्ट्र में गणेशोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र की पॉलिटिकल पार्टियां गणेशोत्सव के दौरान चुनाव कराना नहीं चाहती। प्रमुख पार्टियां इस बारे में चुनाव आयोग को पहले ही अपनी राय दे चुकी हैं। इसलिए गणेशोत्सव के बाद और दीवाली से पहले चुनाव कराए जाने की प्रबल संभावना है।

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