19-Jun-2014 02:53 PM
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हिमाचल प्रदेश में ब्यास नदी के किनारे तस्वीर खींच रहे उन 25 विद्यार्थियों को क्या पता था कि यह उनके जीवन का अंतिम तस्वीर साबित हो जायेगी। अचानक बढ़े जल स्तर के कारण 25 छात्र पलक झपकते ही ब्यास नदी में बह गये और उनकी लाशों का भी पता नहीं चला। घटना के 4 दिन बाद कुल 8 शव ही बरामद हुये थे।
यह घटना उस वक्त घटी जब मनाली-कीरतपुर राजमार्ग पर स्थित थलोट नामक स्थान पर छात्रों का यह दल तस्वीर लेने के लिये पास बह रही ब्यास नदी के किनारे पहुंचा। बच्चे तस्वीर ले रहे थे तभी 126 मेगावाट की लारजी परियोजना से अचानक पानी छोड़ दिया गया। कुछ उसी अंदाज में जिस तरह धाराजी में पानी छोड़ा गया था। पलक झपकते ही 25 छात्र पानी में बह गये। कुछ भाग्यशाली थे जो बचने में कामयाब रहे। 2-3 मिनट के भीतर ही सब कुछ घट गया। पानी की कोई चेतावनी नहीं दी गई। जिस जगह फोटोग्राफी की जा रही थी वहां कोई बोर्ड भी नहीं लगा था। स्थानीय लोगों ने सीटियां बजाई, हल्ला मचाया पर छात्र समझे कि वे उन्हें विश कर रहे हैं उन्होंने भी हाथ हिलाकर जवाब दिया और चेतावनी नहीं समझ सके । नदी के बीच एक बड़ा सा पत्थर था। सभी उसी पर पहुंचना चाह रहे थे। जब पहुंचे तो दस मिनट बाद पानी का स्तर बढऩे लगा। लेकिन उनके पास बचने का कोई रास्ता नहीं था। स्थानीय लोगों ने मदद की पर देर हो चुकी थी। 25 छात्र बह गये थे। बहकर मीलों दूर पहुंच गये। निचले इलाकों से 8 शव बरामद हुये। बाकी की तलाश की जा रही है। उनके समूह में 48 छात्र और 3 शिक्षक थे। मौत उन्हें ब्यास नदी के किनारे खींच लाई। सहायता भी समय पर नहीं मिली। जब तक सहायता पहुंचती कई जानें जा चुकी थीं।
सारे देश में इस तरह के हादसे होते रहते हैं। मध्यप्रदेश में भी धाराजी में हुये हादसे में 70 लोगों की जान चली गई थी। बांधों से पानी छोड़ा जाना आसान है लेकिन पानी क्या नुकसान पहुंचायेगा इसका आंकलन करना संभव नहीं है। एक दिन में करोड़ों का राजस्व देने वाली प्रदेश बिजली बोर्ड की 126 मेगावाट की लारजी पनविद्युत परियोजना के प्रबंधकों ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया कि बांध स्थल से लेकर पावर हाउस तक लगभग पांच किलोमीटर के ब्यास नदी क्षेत्र, जहां पर समानांतर रूप से परियोजना की सुरंग पहाड़ के नीचे से जाती हैं, वहां जगह-जगह चेतावनी बोर्ड लगा दें ताकि पर्यटक सावधान हो जाएं।
इस क्षेत्र में एक भी चेतावनी बोर्ड नहीं है। इस पांच किलोमीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ ब्यास नदी बहती है जो परियोजना के कारण लगभग सूख जाती है क्योंकि पानी को लारजी बांध में रोक कर पावर हाउस तक ले जाया जाता है। हैरानी यह है कि इस पांच किलोमीटर लंबे मार्ग पर खनन माफिया ने नदी तक जाने के लिए कई जगह सड़कें बना रखी हैं। इन्हीं सड़कों से आवाजाही आसान मान कर पर्यटक नदी किनारे जाने के लालच में उतर जाते हैं और हादसों का शिकार होते हैं।
ब्यास नदी में इस तरह से एक साथ 25 लोगों के बह जाने का यह प्रदेश का पहला मामला है जिसमें न तो बाढ़ कारण रहा और न वाहन दुर्घटना हुई। कारण बना तो वह मानवीय लापरवाही थी। हैदराबाद से विद्यार्थियों के साथ आए व सुरक्षित बच गए छात्रों ने कहा कि यदि कोई चेतावनी बोर्ड होता तो वे जरूर सतर्क रहते व इसका ध्यान रखते मगर ऐसा कहीं भी कुछ नहीं था। लारजी बांध किनारे लगा बोर्ड पढऩा आसान नहीं है। बांध स्थल के पास बोर्ड ने एक निर्देश बोर्ड लगा रखा है मगर वह पूरी तरह से मिट चुका है। हालत यह है कि 500 मीटर दूर हूटर सुनाई नहीं देता है। हादसा स्थल के निकट गांव में हुक्मा राम के घर पर शादी हो रही थी। वहां से नदी साफ नजर आती है। लोगों ने पानी देखकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया मगर विद्यार्थियों को कुछ समझ नहीं आया और वे हाथ हिला-हिलाकर बॉय-बॉय जैसे इशारे करने लगे और कुछ ही पल में सब बह गए।
हादसा स्थल पर बह जाने वाले छात्र-छात्राओं के जूते, सैंडल, दुपट्टे आदि बिखरे हुए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि खतरे वाला हूटर लारजी डैम के साथ थलौट, शालानाल व दवाड़ा पावर हाउस के पास लगाया गया होता तो एक साथ सबको चेतावनी मिल जाती। बोर्ड इस तरह पानी छोडऩे से पहले पाच किलोमीटर सड़क पर गाड़ी से चेतावनी वाली मुनादी भी करवा सकता है मगर कभी किसी ने ऐसा करने की जहमत नहीं उठाई। कुछ समय पहले दो बच्चे भी नदी में बह गए थे मगर उसके बाद भी प्रशासन नहीं चेता। थलौट में प्राथमिक व वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल भी है और विद्यार्थी नदी में चले जाते हैं मगर कोई सुरक्षा दीवार नहीं है। शायद बोर्ड व प्रशासन इसके लिए इसी तरह के हादसे का इंतजार कर रहा था। मुख्यमंत्री के समक्ष भी लोगों ने यह मुद्दा उठाया व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के ध्यान में भी लोगों ने यह बात लाई। अब मुख्यमंत्री ने ब्यास नदी के किनारे बाढ़ लगाने और सुरक्षा इंतजाम करने की बात कही है।