आय नहीं होगी तो खर्च कहां से निकलेगा?
15-Jul-2014 10:53 AM 1234781

जब आमदनी होती है तो खर्च के लिए रास्ते तलाशे जाते हैं। खर्च होता है तो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष करों का संग्रह होता है और सरकार की जेब भरती है। लेकिन अरुण जेटली ने केंद्र में सत्तासीन एनडीए सरकार का जो बजट प्रस्तुत किया है उसमें यह इन्तजाम ही नहीं है कि लोगों की जेबों में पैसा आए और वे जरूरत का सामान उचित दामों पर खरीद सकें। इसीलिए बजट के बाद यह यक्ष प्रश्र है कि सरकार की आमदनी कैसे बढ़ेगी? दरअसल पिछले एक दशक में या यों कहें कि उदारीकरण के बाद जो बजट आते रहे हैं उनमें से कुछ को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर में लोगों की जेब मजबूत करने की कोशिशें बहुत कम दिखाई दीं। यदि आठ-दस बजट ऐसे आते कि लोग ज्यादा खर्च करने के काबिल बन जाते तो सरकार को विकास योजनाओं को अंजाम देने के लिए इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता।
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस बार केंद्र सरकार अपना बजट फरवरी और मार्च में पेश नहीं कर पाई थी। इसलिए सरकार चुनने के बाद मोदी सरकार ने अपना पहला बजट प्रस्तुत किया। जिसमें विरासत में मिले खजाने को अरुण जेटली रातों-रात तब्दीली नहीं कर सकते थे। लिहाजा उनका बजट भी उसी मजबूरी के इर्द-गिर्द घूम रहा है जो पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की अदूरदर्शी नीतियों के चलते पैदा हो गईं थीं। शायद इसीलिए सोनिया गांधी के मुंह से यह सच बाहर आ गया कि अरुण जेटली का बजट भी यूपीए के बजट की नकल ही है। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यूपीए के मुकाबले एनडीए ने थोड़े कम तनाव में बजट तैयार किया है संभवत: इसीलिए उद्योग जगत को यह उम्मीद है कि इस बजट के बाद बाजार के और अर्थव्यवस्था के हालात सुधरेंगे लेकिन चिंता सिर्फ बाजार और व्यापार की नहीं है चिंता है देश को हर मोर्चे पर आगे बढ़ाने की।
स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वरोजगार, कुपोषण की चुनौतियां भारत के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। जो भी सरकार इन चुनौतियों से निपटने का रास्ता तलाश लेगी वह सरकार ही सफल सरकार कहलाएगी। कालाधन या टैक्स की बचत इतने बढ़े मुद्दे नहीं हैं कि उनकी आड़ में उपरोक्त बिन्दुओं की अवहेलना की जाए। बजट महंगाई घटाने में नाकाम रहा है बल्कि यह तेजी से बढ़ रही है। महंगाई के लिए सरकार ने कोई रोडमैप प्रस्तुत नहीं किया बल्कि डीजल, खाद्य सामग्री आदि के दामों में आग लगाने की पूरी तैयारी कर दी है। पिछले 5 सालों में पैट्रोल-डीजल 80 प्रतिशत तक महंगा हुआ है। इसी कारण थोक महंगाई 11.7 प्रतिशत तक पहुंचने के बाद अब 6.1 प्रतिशत पर थमी हुई है लेकिन विचारणीय तथ्य यह है कि खाद्य महंगाई 8.28 प्रतिशत है। खाद्य महंगाई का सीधा असर देश के उन 60 करोड़ लोगों पर पड़ता है जो अन्र्तराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से गरीब ही कहे जाएंगे। यदि खाद्य महंगाई इतनी ही बनी रही तो व्यवस्था परिवर्तन जनता ने जिस उम्मीद से किया था वह उम्मीद धराशाही हो जाएगी। इसीलिए जब मोदी सरकार ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति के लिए 200 करोड़ रुपए और कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए 500 करोड़ रुपए की घोषणा की तो कोई बड़ी भारी सराहना नहीं मिली। लोगों का कहना था कि स्टैच्यू ऑफ यूनिटी दान से बनाई जानी चाहिए सरकारी खजाने पर बोझ डालने की जरूरत नहीं। इसी तरह कश्मीरी पंडितों को 500 करोड़ का पुनर्वास पैकेज भी तब ही सार्थक होगा जब कश्मीर से धारा 370 हटेगी और कश्मीर के लोग भारत की मुख्य धारा में शामिल हो सकेंगे।
खास क्या है?
मोदी ने रोजगार कार्यालयों को करियर सेंटर में तब्दील करने का वादा किया था। इसे पूरा करते हुए इसके लिए 100 करोड़ रुपए आवंटित कर दिए। इनका काम करने का तरीका भी अलग होगा। ये सेंटर युवाओं को नौकरी की सूचना मुहैया कराने के बजाय परामर्श देंगे, ताकि युवा अपने क्षेत्र और रुचि के मुताबिक रोजगार तलाश सकें।
मोदी सरकार ने अपने घोषणापत्र की महत्वाकांक्षी योजना बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ इस बजट से लॉन्च कर दी। जेटली ने इसके लिए 100 करोड़ रुपए दिए। क्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर बनाने का ऐलान, पैसा निर्भया फंड से ही आएगा। गृह मंत्रालय को बड़े शहरों में महिला सुरक्षा बढ़ाने के लिए 150 करोड़ दिए।
बजट की कई योजनाएं गुजरात में लागू हैं। इनमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन शामिल है। यानी आत्मा गांव की, सुविधाएं शहर की। गुजरात की ज्योति ग्राम योजना को दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के रूप में देशभर में लागू किया जाएगा। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कन्या केळवणी की तर्ज पर है। गुजरात का सोशल हेल्थ कार्ड अब राष्ट्रीय।
जेटली अपने घाोषणपत्र के हर राज्य में एम्स का वादा पूरा करने की दिशा में बढ़े। उन्होंने आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र में विदर्भ और यूपी के पूर्वांचल में एम्स जैसे चार संस्थानों के लिए 500 करोड़ आवंटित किए। 12 मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा भी की। गांवोंं के विकास के लिए ग्रामीण हेल्थ रिसर्च सेंटर खोलने का भी ऐलान किया।
जेटली ने अब तक उपेक्षित रहते आए पूर्वोत्तर को शेष भारत में जोडऩे की ठोस योजना पेश की। ऑर्गेनिक खेती के विकास के लिए 100 करोड़ दिए। रेल संपर्क बढ़ाने के लिए चालू वित्त वर्ष में 1000 करोड़ आवंटित किए।
कर दर घटाने से साबुन, माचिस, गारमेंट, ब्रांडेड पेट्रोल, खेल के दस्ताने, सीआरटी टेलीविजन, 19 इंच से कम वाले एलईडी, एलसीडी टेलीविजन, 500 रुपए से 1,000 तक की कीमत वाले जूते, चप्पल, ई-बुक रीडर्स, डेस्कटॉप, लैपटॉप और टेबलेट्स सस्ते हो जाएंगे।
सरकार ने कर सीमा 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख कर दी है। होम लोन ब्याज पर कर छूट की सीमा भी 1.5 लाख से बढ़ाकर दो लाख कर दी है। 80 सी के तहत भी छूट की सीमा 50 हजार बढ़ा दी है। पीपीएफ की सीमा भी एक लाख से बढ़ाकर 1.5 लाख कर दी गई।
नमामि गंगे परियोजना के लिए 2037 करोड़ इलाहाबाद से हल्दिया तक करीब 1620 किलोमीटर लंबा जलमार्ग। गंगा सफाई के लिए किए जाने वाले अध्ययन पर भी सरकार 100 करोड़ रुपए खर्च करेगी। 
यंग लीडर्स प्रोग्राम के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। राष्ट्रमंडल खेलों की ट्रेनिंग के लिए 100 करोड़ मणिपुर में 100 करोड़ की लागत से खेल विश्वविद्यालय बनाया जाएगा।
रक्षा क्षेत्र में उपकरण निर्माण के लिए निवेश सीमा 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी करने का प्रस्ताव है। बीमा क्षेत्र में भी यह सीमा 49 फीसदी तक करने के संकेत सरकार ने बजट में दिए हैं।
किसानों को कर्ज के लिए 8 लाख करोड़ रुपए का प्रस्ताव रखा गया है। किसानों को 7 फीसदी ब्याज पर कर्ज दिए जाने की बात कही गई है।
ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बिजली उपलब्ध कराने के लिए 500 करोड़ रुपए के निवेश से दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू करने की घोषणा।
ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग खोलने के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए 500 करोड़ रुपए खर्च कर पांच पर्यटक सर्किट बनाने की घोषणा। इसके लिए सारनाथ-गया-वाराणसी बौद्ध गलियारा विकसित किया जाएगा।
राष्ट्रीय धार्मिक जीर्णोद्धार और आध्यात्मिक संवर्धन अभियान (प्रसाद) मिशन शुरू किया जाएगा। इसके लिए इस वित्त वर्ष में 100 करोड़ रूपए का प्रावधान। महंगाई से निपटने के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान।

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