05-Jul-2014 08:58 AM
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मध्यप्रदेश में पीएमटी सहित कई परीक्षाओं में गड़बड़ी के बाद उजागर हुये व्यापमं घोटाले की चपेट में अब बड़ी मछलियां भी आने लगी हैं। लेकिन इसके साथ ही झूठे आरोप-प्रत्यारोपों का दौर भी

प्रारंभ हो गया है। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सहित तमाम बड़े नेताओं पर सीधा निशाना साधा है किंतु कांग्रेस केवल संभावनाओं के आधार पर खेल खेल रही है। उसके पास कोई ठोस सबूत नहीं है। जो भी सबूत कांग्रेस ने प्रस्तुत किये हैं उनका कोई आधार नहीं है। मुख्यमंत्री निवास से टेलीफोन की बात भी झूठी साबित हुई है। गोंदिया से कुछ लोगों की भर्ती का आरोप भी बेबुनियाद साबित हुआ। क्योंकि परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा है कि कांग्रेस के प्रवक्ता ने मीडिया को धोखे में गलत जानकारी प्रस्तुत की है। मैं इस पूरे घोटाले के मामले में तथ्य आपके समक्ष रख रहा हूं। उन्होंने बताया कि परिवहन निरीक्षकों की जो भर्ती हुई है इस संंंबंध में मेरा कहना है कि मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद एक भी भर्ती परिवहन निरीक्षकों की नहीं हुई है। फिर उन्होंने कांग्रेस आरक्षकों की बात कही है। उन्होंने मीडिया को कोई सूची उपलब्ध नहीं कराई। मैं आपको सूची उपलब्ध करा रहा हूं। उस सूची में मध्यप्रदेश के बाहर का एक भी आरक्षक नहीं है। जबकि सूची में जो नाम दिये गये हैं उनके आगे पता अधूरा है। सूची में मध्यप्रदेश के बाहर झांसी के भी आरक्षक शामिल हैं। बाद में मंत्री ने बात को संभालते हुए कहा कि यह विज्ञापन पूरे भारत वर्ष के लिए था न कि मध्यप्रदेश के लिये। आधी-अधूरी जानकारी लेकर मंत्रीजी मीडिया से मुखातिब हुये वह मीडिया के एक भी प्रश्न का जवाब ठीक से नहीं दे पाये। वह अपने अधिकारियों के बलबूते पर प्रेस कॉफ्रेंस कर रहे थे। हालांकि यह सच है कि 316 आरक्षकों की भर्ती की जो सूची दे दी है उस सूची में गोंदिया के पते पर एक भी नाम अंकित नहीं है। सरकार की सफाई के बाद अब कांग्रेस चुप है। कांग्रेस के प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने प्रेस कॉफ्रेंस कर मुख्यमंत्री के खिलाफ झूठी, अपमानजनक और मानहानिकारक बातें कही थीं। उस मामले में सरकार ने पलटवार करते हुये मुख्यमंत्री की छवि धूमिल करने के प्रयास आदि के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया है।
कांग्रेस की समस्या यह है कि वह हार की हताशा से अभी उबर नहीं पाई है। उसके गिने-चुने विधायक भी संगठित नहीं हैं। उनमें आपसी तालमेल का अभाव है। सभी विधायक अपनी ढपली-अपना राग अलाप रहे हैं। देखा जाये तो व्यापमं घोटाला बड़ा है और इस पर प्रदेश में एक सफल राजनीतिक आंदोलन खड़ा किया जा सकता है जिससे कांग्रेस को पुनर्जीवित होने का अवसर भी मिलेगा। किंतु यह तभी संभव होगा जब कोई ठोस बात कांग्रेस द्वारा की जायेगी। अभी तक तो जो भी आरोप कांग्रेस ने लगाये हैं उनमें से अधिकांश राजनीति से प्रेरित प्रतीत होते हैंं। मुख्यमंत्री के दामन को दागदार बनाने की कांग्रेस की कोशिश फिलहाल कामयाब नहीं हो सकी।
किंतु आश्चर्य की बात तो यह है कि सरकार भी कांग्रेस के साथ जबरन मुंह फंसा रही है। कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ मान हानि का मुकदमा कर वह सारे दस्तावेज कोर्ट के माध्यम से उन्हें उपलब्ध करा देगी जो गोपनीय थे। सरकार को सलाह देने वाले सलाहकारों ने सरकार की गर्दन तो नहीं फंसा दी है? वहीं प्रभात झा, नरोत्तम मिश्रा और भूपेंद्र सिंह सरकार की तरफ से सफाई दे चुके हैं पर उनकी सफाई में कहीं न कहीं इस बात की बू आ रही है कि उन्हें इस पूरे मामले के बारे में पता ही नहीं है। सवाल यह है कि सरकार के नाक के नीचे पकोड़े तले जा रहे थे और सरकार पूछ रही है आखिर ये पकोड़े कहां पर तले जा रहे हैं?
संघ ने दी सफाई
एसटीएफ की पूछताछ में पंकज त्रिवेदी ने संघ के पूर्व प्रमुख स्व. के. सुदर्शन और सुरेश सोनी का नाम लिया है। उन्होंने कहा है कि उनके सेवादार मिहिर कुमार झा को फूड इंस्पेक्टर बनाने के लिये पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने व्यापमं से शिफारिश की थी। मिहिर ने पहले ही एसटीएफ को अपने बयान में कहा है कि उसने अपने रोल नंबर की प्रति स्व. सुदर्शन को दी थी उसके बाद लक्ष्मीकांत शर्मा ने फोन किया था। संघ के नेता सुरेश सोनी के सहायक के तौर पर मिहिर काम कर चुका है। वहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरोपों को पूरी तरह से निराधार बताया है और उन्होंने कहा है कि संघ को इससे कोई लेना-देना नहीं है। हमें इन आरोपों की चिंता नहीं है कानून अपना काम करेगा। वहीं राजनाथ सिंह ने अपने एक बयान में साफ तौर से कहा है कि मध्यप्रदेश सरकार भी मामले की जांच करा रही है।
सीबीआई जांच के लिये राष्ट्रपति से मिले
राष्ट्रपति के भोपाल दौरे के दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष अरुण यादव अपने कुछ नेताओं के साथ प्रणब मुखर्जी से मिले उन्होंने व्यापमं और पीएससी घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। उन्होंने मुख्यमंत्री और उनके परिवारजनों पर व्यापमं और पीएससी घोटाले में शामिल होने के आरोप लगाये हैं। पर इससे कोई नतीजा नहीं निकलने वाला। यदि आरोप बेबुनियाद हैं तो उन्हें वैसे भी कोई गंभीरता से नहीं लेगा। शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस प्रवक्ता के.के. मिश्रा के खिलाफ मान हानि का मामला दर्ज कराया है। परिवाद पत्र में उन्होंने मिश्रा के आरोपों को गलत बताया है।
परिवहन विभाग में निरीक्षक पद पर नियुक्ति सीधे नहीं की जाती है बल्कि व्यापमं के माध्यम से नियुक्ति के लिये परीक्षा आयोजित करवाई जाती है इसलिये जो भी धांधली हुई वह निश्चित रूप से व्यापमं के अधिकारियों के मिलीभगत से ही हुई। मिश्रा के इस आरोप में भी कोई दम नहीं है कि इस मामले में शिवराज सिंह चौहान के मामा रणधीर सिंह भी शामिल हैं। सच तो यह है कि रणधीर सिंह का वर्षों पहले निधन हो चुका है। के.के. मिश्रा को ज्यादा होमवर्क करते हुये सही आरोपियों का पर्दाफाश करना था ताकि कोई ठोस बात सामने आ पाती। इस तरह के राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों से व्यापमं जैसे गंभीर प्रकरणों की धार कम होती है। हालांकि मिश्रा अभी भी अपनी बात पर कायम हैं। पर सवाल यह है कि गोंदिया से जिन नियुक्तियों की बात उन्होंने कही थी वह तो सरासर गलत निकली। मुख्यमंत्री के निवास से परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी और सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा को किये गये 139 कॉल्स की डिटेल भी कांग्रेस प्रस्तुत नहीं कर पाई। के.के. मिश्रा के आरोपों में भोलेनाथ कॉलोनी टीला जमालपुरा भोपाल में रहने वाले जिन फूलसिंह चौहान का जिक्र है उनका मुख्यमंत्री से कोई सीधा ताल्लुक नहीं है। फूलसिंह की कॉल डिटेल्स भी सबूत के तौर पर प्रस्तुत नहीं की गई।
उमा भारती, आरएसएस के नेता सुरेश सोनी सहित तमाम बड़े अधिकारियों पर जो आरोप कांग्रेस ने लगाये हैं उनके एवज में कोई सबूत कांग्रेस के पास नहीं हैं। मिश्रा का कहना है कि एसटीएफ ने धारा 420 और 409 के तहत मामले दर्ज किये हैं जबकि ये मामले प्रवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 के सेक्शन 13 (आई)(डी) के तहत दर्ज कराये जाने थे। ऐसे में यह मामला विशेष अदालत में चलता और जमानत भी नहीं मिलती। यह सच है कि व्यापमं जैसे घोटाले में जांच पूरी गंभीरता के साथ होनी चाहिये अन्यथा निष्कर्ष सामने आ नहीं पायेगा। इस बीच बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं की गिरफ्तारी से एसटीएफ की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठे हैं। एसटीएफ ने कई छात्र-छात्राओं को रातों-रात उठा लिया था। जिन्हें बाद में जमानत मिल गई लेकिन सवाल वही है कि रातों-रात छात्र-छात्राओं को उठाने की जरूरत क्या आन पड़ी थी? यदि यह जरूरी था कि इन्हें गिरफ्तार किया जाये तो फिर उनसे पूछताछ करके जानकारी ली जा सकती थी। कोर्ट ने भी इन्हें जमानत देने में देरी नहीं की। इससे स्पष्ट है कि उनका अपराध इतना गंभीर नहीं था।
भांजी की नियुक्ति पर आरोप
मध्यप्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन व्यापमं जैसा ही हेराफेरी घोटाला सामने आया है। नियम विरुद्ध कार्य करने की शैली मुख्यमंत्री के निर्देशन और नियंत्रण में हो रही है। पब्लिक सर्विस कमीशन का पैरेंट विभाग जेडी होता है जिसके मुखिया मुख्यमंत्री होते हैं। उन्होंने अपनी भांजी ऋतु चौहान को फायदा पहुंचाने के लिये इस विभाग की बागडोर अपने पास रखी। कांग्रेस किसी व्यक्ति से वास्ता नहीं रखती है। कांग्रेस धोखा देने वालों के खिलाफ चलती है। उनका आरोप है कि पीएससी की परीक्षा एक-दो रायटर की किताब पर ही प्रश्न बनते हैं और उसी किताबों के प्रश्नों के उत्तर को सही माना जाता है। भले ही वह उत्तर गलत क्यों न हो उन्होंने यह भी कहा कि पहले पीएससी का रिकॉर्ड नष्ट करने की अवधि दो वर्ष थी परंतु मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहले इसको नष्ट करने की अवधि एक वर्ष की और बाद में तीन माह में ध्वस्त करने का आदेश दे डाला। उक्त जानकारी उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी वह भी आज तक नहीं दी है। इस मामले में उन्होंने प्रमुख सचिव के. सुरेश से बात की पर उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया। के.के. मिश्रा ने कहा अब मुख्यमंत्री के.के. मिश्रा के विरुद्ध मानहानि का दावा लगायेंगे वहीं नरेंद्र सिंह तोमर ने भी कहा कि पार्टी ने मुख्यमंत्री को आदेश दिया है कि उनके खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले के.के. मिश्रा के ऊपर मानहानि का दावा लगायें परन्तु शिवराज ने नहीं बल्कि मुख्यमंत्री ने 199 (2-सी) के अंतर्गत सरकार से मानहानि लगवाई। मिश्रा ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री जी मेरे ऊपर दावा लगाते तो मैं कुछ ही दस्तावेज लेकर जाता पर अब सरकार ने मेरे ऊपर मानहानि लगाई है तो अभी तक के घोटालों के दस्तावेज मैं ठेलागाड़ी में लेकर कोर्ट में जाऊंगा। मिश्रा ने यह भी कहा कि लक्ष्मीकांत शर्मा का नार्को टेस्ट करा लिया जाये तो वह सारी चीजें उगल देंगे।