विलय से कसेगी लगाम
18-Jun-2014 02:55 PM 1234798


मध्यप्रदेश में सरकार ने कई महत्वपूर्ण विभागों का संविलियन करते हुए प्रशासनिक काम-काज में तेजी लाने की कोशिश की है। आवास और पर्यावरण विभाग को नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग में मर्ज किया गया है। इसी तरह जैव विविधता विभाग को वन विभाग तथा जैव प्रौद्योगिकी विभाग को उद्यानिकी व खाद्य प्रसंस्करण में विलय कर दिया गया है। विज्ञान एवं टेक्नालॉजी विभाग का सूचना प्रौद्योगिकी विभाग में विलय कर दिया गया है। 1992 में जब संविधान का 74वां संशोधन प्रस्तुत किया गया उस वक्त 12वीं अनुसूची के अनुच्छेद 243 बÓ में स्पष्ट किया गया था कि नगरीय योजना के अंतर्गत भूमि उपयोग का विनिमय और भवनों का निर्माण भी आता है। देखा जाए तो वर्ष 1992 में ही यह गुंजाइश थी कि आवास और पर्यावरण विभाग का नगरीय प्रशासन तथा विकास विभाग में संविलियन कर दिया जाए किंतु तब तक उस पर ध्यान नहीं दिया गया और हाल ही में जब प्रशासन को कसावट के साथ चलाने और बेहतर नतीजे प्राप्त करने की बात उठी तो यह सुझाव दिया गया कि कुछ विभागों का विलय कर दिया जाए।

हालांकि नगरीय विकास एवं पर्यावरण मंत्रालय के अस्तित्व में आने के बाद यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि टॉउन एण्ड कन्ट्री प्लानिंग का क्या होगा? क्या यह विभाग अनाथ हो जाएगा या फि र बिल्डिंग परमीशन जैसे छोटे-मोटे कामों के लिए भी इसी विभाग के चक्कर काटने पड़ेंगे। सरकार के पास 55 हजार गांवों का डाटा है। ऐसी स्थिति में टॉउन एण्ड कन्ट्री प्लानिंग जैसे विभागों के भी नगरीय विकास एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत लाना उचित ही होता। पर सरकार निरूत्तर है। कुछ बता नहीं पा रही है। शायद भविष्य में कोई ऐसा निर्णय लिया जाए।

वैसे देखा जाए तो विभागों केे संविलियन से सरकारी काम-काज में गुणात्मक सुधार हो सकता है। कार्पोरेट जगत में विभिन्न इकाईयों को मिलाकर एक बड़ी इकाई बनाने का तरीका लंबे समय से चल रहा है। इससे खर्चे कम हो जाते हैं, गति बढ़ जाती है। एक तरह से यह री-इंजीनियरिंग (पुन: यांत्रिकी) जनता के लिए लाभदायी ही है। इससे सरकार पर चढ़ी चरबी कम होगी। काम कुशलता से होगा।

अभी तक स्वतंत्रता के 60 वर्षों बाद भी प्रदेश और देश में भारी भरकम विभाग बनाकर रखे गये हैं लेकिन काम धेले का नहीं होता। जड़ता बढ़ती जाती है। सरकारी विभाग अपने-अपने तरीके से विभागीकृत हो गए हैं। उनमें ठहराव आ गया है इसी कारण उनकी संयुक्त ऊर्जा का लाभ शासन और प्रशासन को नहीं मिल पा रहा है। इस सभी को देखते हुए विभागों के विलय का कदम उठाया गया है जो सराहनीय है। पहले भी उर्दू अकादमी को अल्पसंख्यक विभाग से हटाकर संस्कृति विभाग में लाया गया था। कई ऐसे विभाग हैं जो बेमेल हैं। जिनका कोई औचित्य नहीं है। एक छोटा सा काम कराने के लिए कई विभागों में भटकना पड़ता है। अधिकारी, कर्मचारी अडग़े लगाते हैं। रिश्वतखोरी और लालफीताशाही को बढ़ावा मिल रहा है। विभागों को एक-दूसरे में विलीन करके इन बुराइयों से निजात पाई जा सकती है। जैसे आवास और पर्यावरण तथा दोनों नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग देखा जाए तो नगरीय सुविधाओं एवं अधोसंरचना विकास के लिए ही काम कर रहे थे। किंतु पृथक-पृथक विभाग होने के कारण दोनों के फैसलों में समरूपता नहीं बन सकी और जनकल्याण कारी योजनाओं का क्रियान्वयन में देरी हुई। भोपाल का मास्टर प्लान इसका जीता जागता उदाहरण है। अब सरकार ने मध्य प्रदेश शासन के कार्य (आवंटन) नियम (30 नवंबर, 2013 तक यथा संशोधित) की अनुसूची के आयटम क्रमांक 32-आवास और पर्यावरण विभागÓ को विलोपित करते हुए आयटम क्रमांक 18-नगरीय प्रशासन विभागÓ की कार्यसूची में जोड़ दिया गया है। उक्तानुसार आयटम क्रमांक 32-आवास और पर्यावरण विभागÓ के कार्य आवंटन में दर्शित (ई) के सरल क्रमांक-2 मध्यप्रदेश प्रदूषण निवारण मण्डलÓ से संबंधित कार्य, अधिनियम आयटम क्रमांक-11-वाणिज्य उद्योग और रोजगार विभागÓ तथा सरल क्रमांक-8 आपदा प्रबंध संस्थानÓ से संबंधित कार्य, अधिनियम आयटम क्रमांक- 2-गृह विभागÓ की कार्य सूची में यथा स्थान जोड़े जाएंगे। देखा जाए तो उन सारे विभागों को जिनके कार्यो-विषयों में समरूपता हो एक साथ मिला देना उचित रहता है। कुछ समय पहले आस्ट्रेलिया में भी सरकार ने बहुत से विभागों को एक साथ मिला दिया था। इसी प्रकार केन्द्र सरकार भी भारी-भरकम मंत्रालयों को छोड़ते हुए विभिन्न मंत्रालयों को एक करके प्रशासन के काम-काज में तेजी लाने की कोशिश कर रही है।

मध्य प्रदेश सरकार ने जैव विविधता का वन विभाग, जैव प्रौद्योगिकी का उद्यानिकी तथा खाद्य प्रसंस्करण एवं विज्ञान तथा टेक्नालॉजी विभाग का सूचना प्रौद्योगिकी विभाग में भी संविलियन कर दिया है। जैव विविधता (बायो-डायवर्सिटी) तथा जैव प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नालॉजी) विभाग के गठन का उद्देश्य जैव विविधता का संरक्षण उसके घटकों का अविरल उपयोग तथा जैव संसाधनों के उपयोग से उद्भुत होने वाले लाभों का साम्यपूर्ण विभाजन जैविक संसाधनों का सूचीकरण, संबद्ध अनुसंधान इत्यादि है।  जैव प्रौद्योगिकी में समेकित योजनाओं तथा कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, जैव प्रौद्योगिकी से संबद्ध उद्योगों का उन्नयन मानव संसाधन विकास, संबद्ध अनुसंधान इत्यादि है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड एवं मध्यप्रदेश जैव प्रौद्योगिकी परिषद का गठन किया गया।  दोनों की तासीर एक सी है इसलिए दोनों को एक साथ लाना उचित ही है।

इसी प्रकार जैव विविधता (बायो-डायवर्सिटी) तथा जैव प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नालॉजी) जो वर्तमान में स्वतंत्र विभाग है, इसके जैव विविधता (बायो-डायवर्सिटी) विभाग एवं वन विभाग द्वारा समान रूप से जैव विविधता के क्षेत्र का संरक्षण एवं विकास किया जा रहा है। तथा जैव प्रौद्योगिकी प्रभाग का कार्य एवं उद्यानिकी विभाग का कार्य समरूप है, अत: यह समीचीन है कि उक्त प्रभागों को संबंधित विभागों में संविलियन किया जाए।

प्रदेश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उन्नयन तथा विकास के लिए नीति निर्धारण तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास कार्यों के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का गठन किया गया था। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विविधता के कारण वर्तमान में प्रौद्योगिकी का विकास सूचना प्रौद्योगिकी पर केन्द्रित होने के फलस्वरूप विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को गति देने के लिए यह आवश्यक हो गया था कि इस विभाग को सूचना प्रौद्योगिकी विभागÓ में सम्मिलित किया जाए।                        द्य

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