तुगलकी आदेश से छात्रायें परेशान
05-Jul-2014 08:23 AM 1234809

मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग ने यूजीसी की मार्गदर्शी अनुशंसाओं को ध्यान में रखते हुये महाविद्यालयों के विषयों के युक्तियुक्तकरण के नाम पर राजधानी भोपाल की छात्राओं को भटकने के लिये विवश कर दिया है। छात्राओं के लिये सुविधाजनक कॉलेजों से कुछ विषय हटाकर दूसरे कॉलेजों में शिफ्ट कर दिये गये हैं। जिससे छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
यूजीसी के नियमों का हवाला देते हुये शहर के तीन स्वशासी महाविद्यालयों में युक्तियुक्तकरण किया गया है, जबकि यूजीसी की स्वायत्त कालेजों हेतु दिशा निर्देश, जोकि यूजीसी के वेबसाइट  पर उपलब्ध है, में स्पष्ट निर्देश है कि पाठ्यक्रमों में कोई भी परिवर्तन संबंधित महाविद्यालयों की अकादमिक परिषद लेगी।
स्वशासी महाविद्यालयों को चूंकि पीजी स्तर पर अनुदान राशि, जो कि उनके विकास के लिए होती है, यूजीसी से प्राप्त होती है। इसीलिए राज्य सरकार ज्यादा से ज्यादा महाविद्यालयों को स्वशासी दर्जा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करता है, और अनुदान प्रदान करता है। इससे राज्य शासन पर वित्तीय भार कम होता है। हाल ही में सरकार ने 17 और महाविद्यालयों को स्वशासी निकाय का दर्जा प्राप्त करने हेतु निर्देश दिये हैं। स्वशासी कॉलेजों में परीक्षायें समय पर होती हैं, परिणाम समय पर आते हैं, छात्रों का समय खराब नहीं होता। इन महाविद्यालयों का स्तर अन्य सामान्य महाविद्यालयों से अधिक होता है।
सरकार के हस्तक्षेप के संबंध में यूजीसी गाइड लाइन में स्पष्ट लिखा है कि आवश्यकता आधारित स्थानान्तरणों को छोड़कर जहां तक सम्भव हो शिक्षकों के स्थानान्तरण से बचना। शासन के युक्तियुक्तकरण ने यूजीसी की मूल भावना ही समाप्त कर दी है। अब स्वशासी महाविद्यालय और सामान्य महाविद्यालयों में अंतर ही क्या बचेगा?
युक्तियुक्तकरण के पक्ष में छात्र संख्या को आधार बनाया गया है, जबकि इसमें भी कई विसंगतियां हैं, जैसे मालवा के राजनीति शास्त्र विभाग में मात्र 4 छात्रायें, मनोविज्ञान में 3 छात्रायें, भूगोल में 3 छात्रायें पीजी कर रही हैं, जबकि जिन विषयों के पीजी हटाया गया है, वहां अर्थशास्त्र में 16, समाजशास्त्र में 44, वनस्पतिशास्त्र में 26, हिन्दी में 22 छात्रायें पीजी कर रही हैं। भेल कॉलेज में राजनीति शास्त्र में मात्र 2 छात्र पीजी कर रहे हैं। शा. गीतांजली में एमए हिन्दी में था ही नहीं, फिर किस छात्र संख्या को आधार मानकर एमए हिन्दी शुरू किया जा रहा है? भेल कॉलेज के पास तो स्वयं का भवन भी नहीं है, वहां तो शिक्षकों व छात्रों को बैठने की व्यवस्था ही नहीं है, फिर वहां वनस्पतिशास्त्र की लैब जोकि एमएलबी में अच्छे से स्थापित है, काम करेगी।
इसी शासन में एमएलबी बार कन्या महा. में राष्ट्रीय उत्कृष्टता संस्थान स्थापित करने हेतु 5 करोड़ राशि स्वीकृत की थी, अब जब भवन व उपकरण तैयार हैं तो छात्राओं को भेल भेजा जा रहा है। छात्राओं ने इसका विरोध किया है।
कहा जा रहा है कि जो छात्र इस वर्ष पीजी अग्रिम वर्ष में होंगे, उन्हें कोई अन्य महाविद्यालय जाना होगा। ऐसी स्थिति में तकनीकि प्रश्र आयेगा कि एमएलबी की छात्रा जो नूतन कॉलेज में एक वर्ष पढ़ेगी उसे डिग्री कौन देगा? फिर जो छात्राएं पहले से ही उस कॉलेज में पढ़ रही हैं स्वाभिक रूप से ही शिक्षकों का ध्यान आकर्षित करेंगी। ऐसी स्थिति में एमएलबी मेरिट होल्डर छात्रा को दूसरे या तीसरे स्तर पर रहकर होगा।
मध्यप्रदेश शासन के 4 जून 2014 को जारी एक आदेश क्रमांक 608/846/2012/38-2 में स्पष्ट कहा गया है कि भोपाल के विभिन्न महाविद्यालयों में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों एवं उन महाविद्यालयों में पदस्थ प्राध्यापकों, सहायक प्राध्यापकों की संख्या को देखते हुये यह विचाराधीन रहा है कि विद्यार्थियों की संख्या के अनुसार शिक्षक उपलब्ध हों तथा विद्यार्थी स्नातक से लगाकर शोध कार्यों तक सारी सुविधायें प्राप्त कर सकें। इसलिये संचालित पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत् विद्यार्थियों की संख्या के आधार पर कतिपय महाविद्यालयों में विषयों का युक्तियुक्तकरण आवश्यक है। जिससे संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके। इस आदेश में कहा गया है कि युक्तियुक्तकरण के लिये भोपाल के शासकीय महाविद्यालयों के प्राचार्यों से विस्तृत चर्चा की गई है। जिसमें उन्होंने अपने यहां उपलब्ध संसाधनों के विषय में बताया था साथ ही यूजीसी की अनुशंसाओं को भी ध्यान में रखा गया है। प्रश्न यह है कि जब चर्चा ही करनी थी  तो छात्रों से भी कर ली जाती। इसमें क्या बुराई थी? कम से कम छात्राओं से तो उनकी सुविधा के विषय में पूछा जा सकता था। युक्तियुक्तकरण के नाम पर शहर के बीचोंबीच स्थित एमएलबी की छात्राओं को भेल कॉलेज भेजने का क्या औचित्य है? यदि ऐसा करना आवश्यक था तो फिर एमवीएम कॉलेज में कुछ विषय शिफ्ट किये जा सकते थे जो कि नजदीक ही है। अब एमएलबी कॉलेज में स्नातक एवं स्नातकोत्तर चित्रकला उपलब्ध है। लेकिन यदि किसी लड़की को उर्दू, संस्कृत से स्नातकोत्तर करना है तो उसे हमीदिया जाना होगा और संगीत में रूचि है तो दस किलोमीटर दूर सरोजिनी नायडू कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय की दूरी तय करनी होगी। अकेले उर्दू सीखना है तो गीतांजली तक जाना होगा या फिर हिंदी, अंग्रेजी, मनोविज्ञान, भूगोल, समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, वाणिज्य जैसे महत्वपूर्ण विषयों के लिये सुप्रसिद्धÓ हमीदिया कॉलेज की शरण लेनी होगी। हमीदिया कॉलेज का वातावरण कैसा है यह सभी जानते हैं। छात्राओं को वहां बहुत कठिनाई होगी। यही हाल बाकी कॉलेजों का भी है। यदि कोई छात्रा अरबी में स्नातक करना चाहे तो यह पाठ्यक्रम अब हमीदिया में ही उपलब्ध रहेगा। दर्शन शास्त्र के लिये सरोजिनी नायडू कॉलेज में जाना होगा और संस्कृत के लिये शासकीय संस्कृत महाविद्यालय में ही जाना होगा। पहले एक ही कॉलेज में अनेक विषय उपलब्ध होने की वजह से छात्राओं को सुरक्षित वातावरण भी मिल जाता था और उनके दूर आने-जाने में खर्च, ऊर्जा, धन तथा समय की बचत होती थी। यदि कॉलेज विशेष में कोई विषय देना था तो फिर उसके लिये छात्राओं की सुविधा का भी ध्यान रखा जाना चाहिये था। शहर में जिस तरह का वातावरण है और छेड़छाड़ से लेकर चेन खींचने तथा दुष्कृत्य की घटनायें बढ़ रही हैं उन्हें देखते हुये यह फैसला उचित नहीं कहा जा सकता।
स्थानीय परिवहन भी उतना सुरक्षित और द्रुतगामी नहीं है। शासकीय कॉलेजों में अधिकांश निर्धन तबके की छात्रायें पढ़ती हैं जो दूर आने-जाने का खर्च नहीं उठा सकतीं। महिलाओं के लिये उच्च शिक्षा वैसे भी एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है। कुछ समय पहले एक रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट सबसे ज्यादा है। लेकिन शहरों में यह कम था। किंतु अब भोपाल में आशंका है कि बहुत सी लड़कियां इस तुगलकी फरमान के बाद पढऩा-लिखना ही छोड़ दें। एक तरफ तो मुख्यमंत्री ने एमएलबी जैसे कॉलेजों में स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स की सुविधा दी है। दूसरी तरफ लड़कियों को दूर भटकने के लिये विवश किया जा रहा है। कई कॉलेजों में 40-40 वर्षों से विभिन्न विषयों के विभाग स्थापित हैं। वे सुचारू रूप से चल रहे हैं। यदि सरकार इतनी ही गंभीर है तो उसे शिक्षकों के खाली पदों पर नियुक्ति करनी चाहिये। बहुत से कॉलेजों में विभिन्न विषयों के शिक्षक नहीं हैं। ऐसी स्थिति में विषय शिफ्ट करना समझदारी भरा फैसला नहीं कहा जा सकता। इससे छात्राओं का भविष्य चौपट हो रहा है।

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^