05-Jul-2014 08:14 AM
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उद्यानिकी और खाद्य संस्करण की प्रमुख सचिव कंचन जैन ने अपने विभाग की 90 फाइलें पिछले छ: माह से दबाकर रखी हुई थीं यह सारी फाइलें अनुदान से जुड़ी हुई थीं। इन फाइलों को रोकने के

पीछे सूत्र बताते हैं कि कमीशन बाजी का चक्कर था। कई दमदार लोगों ने कोशिश कर ली परंतु प्रमुख सचिव महोदया टस से मस नहीं हुईं। उक्त मामले की शिकायत जब प्रदेश के मुख्य सचिव एंटोनी डिसूजा से की तो उन्होंने अपने अपर मुख्य सचिव मदन मोहन उपाध्याय को तलब किया फिर क्या था। उपाध्याय ने उनके कमरे से 90 फाइलें जब्त कर उनका निराकरण किया गया। इस शिकायत के चलते मैडम को विभाग से दो घण्टे के अन्दर ही चलता कर दिया और राजेश राजौरा को अतिरिक्त प्रभार दे दिया।
दिल्ली से लौैटे अफसर
(1994)श्रीमती पल्लवी जैन वापिस अपने प्रदेश लौट आईं, क्योंकि केन्द्र में समीकरण बदल गए हैं चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के कारण देश के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन की जगह नरेन्द्र मोदी हो गए। मध्यप्रदेश केडर के (1979 )के आर रामानुजम को पीएमओ में इसलिए रखा है कि वह जुलाई में सेवानिवृत्त होने वाले हैं वहीं दिल्ली से (1980) बेच की सुश्री स्वर्णमाला रावला, आईसीपी केसरी (1988) जल्दी ही मध्यप्रदेश लौटेंगे।
ट्रांसफर लिस्ट रुकी
मुख्यमंत्री और उनकी केबिनेट ने 15 जून से 30 जून के बीच स्थानांनतरण करने का निर्णय लिया था। परन्तु कैबिनेट ने इन तबादलों को लेकर हरी झंडी नहीं दी। मुख्यमंत्री के विदेश यात्रा से आने के बाद राजनीतिक माहौल व्यापमं घोटाले के बाद गर्माया हुआ है ऐसे में तबादला उद्योग में अगर कोई मंत्री घोटाला कर बैठे तो उसका जवाब कौन देगा। बहरहाल सुनने में यह आया है कि मुख्यमंत्री के चहेते कई कलेक्टरों को अच्छे जिलों की कमान मिल सकती थी। पर अब तो आईएएस और आईपीएस अफसरों के तबादलों पर ही ग्रहण लग गया क्योंकि हंगामेदार विधानसभा बजट सत्र पूरे एक माह चलेगा।
कृषि विभाग के संचालक को आरोप पत्र
तेज तर्राट संचालक डीएन शर्मा को तीन मामलों में आरोप पत्र पकड़ा दिया। सूत्रों से पता चला है कि शर्मा अपने अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव के सारे क्रियाकलापों पर नजरें गड़ाकर ध्यान रखते हैं इसीलिए आज तक उनके खिलाफ विभाग का आला अफसर टिक नहीं पाए। शर्मा ने यह जानने का प्रयास किया की आखिर काड़ी किसने की। पता चला कि विभाग के दोनों आला अफसर इन आरोप पत्रों से हाथ झाड़ रहे हैं।
ईमानदारी का फोबिया
म.प्र. के कुछ प्रमोटी आईएएस अफसरों को ईमानदारी का फोबिया हो चुका है। तीन बार स्थानांतरित हुए 1999 बेच के संतोष कुमार मिश्रा की पहले कलेक्टरी छीनी बाद में घोटाले के स्वास्थ्य विभाग का संचालक बनाया फिर वहां से हटाकर विपणन संघ में बतौर प्रबंध संचालक बनते ही उन्होंने पुरानी, नकली खाद और कीटनाशक दवाइयों की फाइलों को देखना चालू ही किया था कि सप्लायरों की लॉबी और अफसरों उन्हेंं वहां से चलता कर दिया। इसी तरह 2000 बैच की एक महिला अधिकारी को भी सरकार फुटबाल बनाती रही है इनको ईमानदारी का फोबिया है।
तहसीलदारों से डिप्टी कलेक्टर नहीं बन पा रहे
तत्कालीन प्रमुख सचिव प्रभांशु कमल की गलती के कारण आज तक तहसीलदारों के प्रमोशन नहीं हो पाए। प्रभांशु द्वारा जो डीपीसी की गई थी उनमें कुछ अधिकारी ऐसे थे जिनकी डीई चल रही थी, जूनियर थे फिर भी वो डिप्टी कलेक्टर बन गए। इन अधिकारियों की डीपीसी की सूची गलत बनने का खामियाजा तहसीलदार भुगत रहे हैं। वहीं डिप्टी कलेक्टर सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव अश्विनी राय से परेशान हैं। राय की इतनी शिकायतें हो चुकी हैं कि इस कुण्ठा के चलते वह डिप्टी कलेक्टरों की डीपीसी ही नहीं कर रहे जबकि मुख्यमंत्री द्वारा विभाग के रिव्यू में उन्होंने कहा था कि हम पुरानी डीपीसी अभी कर देंगे। नियमों के मुताबिक हर छ: माह में डीपीसी होनी चाहिए परन्तु 90-91 बेच के कुछ डिप्टी कलेक्टर अभी इंतजार ही कर रहे हैं देखना यह है कि इनकी पदोन्नती होती है या नहीं क्योंकि अश्विनी राय वाणिज्यिक कर विभाग पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं सामान्य प्रशासनिक विभाग में उनकी रूची अब दिखती। अब डिप्टी कलेक्टर लामबन्द होकर प्रमोशन्स को लेकर मुख्य सचिव को ज्ञापन दे चुके हैं।
सेडमैप के कार्यकारी संचालक की छुट्टी तय
हाल ही में लोकायुक्त की शिकायत पर प्रमुख सचिव उद्योग ने अपने विभाग के वित्तीय सलाहकार ओ.पी. गुप्ता से जांच करवाई। उक्त शिकायत जबलपुर की एक फर्म से खरीदी के मामले में 2 साल से लंबित पड़ी हुई थी। रिपोर्ट 25 जून को उद्योग आयुक्त के पास वित्तीय सलाहकार ओ.पी. गुप्ता ने दे दी है। सूत्र बताते हैं शिकायत सही पायी गई है। खरीदी में भारी अनियमितता हुई है। अनियमितता के दोषी जीतेन्द्र तिवारी अब दिन भर मंत्रालय के चक्कर लगा रहे हैं और उनके शुभचिंतक व्यापमं घौटाले से विचलित होकर उनकी कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं। तिवारी की जांच का पिटारा पाक्षिक पत्रिका अक्स के माध्यम से सामने आया है।
पीडब्ल्यूडी के दो फाड़
माल की लड़ाई के चलते पीडब्ल्यूडी को तोड़कर पीआईयू नाम का विभाग बना डाला। इसका प्रमुख पीडब्ल्यूडी के तत्कालीन सचिव विजय सिंह वर्मा को बना दिया तो मूल विभाग के ईएनसी अखिलेश अग्रवाल की नजरें टेढ़ी हो गईं। नए विभाग के पास बिल्डिंग बनाने का काम है वहीं मूल विभाग के पास सिर्फ रखरखाव का कार्य रह गया है। प्रदेश में 5000 करोड़ की बिल्डिंगें बनाने का काम विभाग बहुत धीमी गति से कर रहा था इसी कारण से विभागों के दो फाड़ हो गए अब पीआईयू 5000 करोड़ के काम करेगा वहीं पीडब्ल्यूडी सिर्फ 1100 करोड़ के काम कर पाएगा।