05-Jul-2014 08:10 AM
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मध्यप्रदेश सहित देश के तमाम हिस्सों में मानसून ने करवट ली है। असम में बाढ़ आ रही है और मध्यप्रदेश के कई हिस्से सूख चुके हैं। मौसम विभाग अधिकारियों ने कृषि विभाग की बैठक के दौरान

संभावना व्यक्त की है कि प्रदेश में मानसून 7 जुलाई तक आ सकता है। वहीं कृषि विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा का कहना है कि प्रदेश में अगर मानसून 15 जुलाई तक भी आएगा तो खेती को नुकसान नहीं है। कृषकों को सलाह दी गई है कि जब तक दो से ढाई इंच पानी न गिरे तब तक बुआई न की जाए लेकिन 10 दिन पूर्व महाकौशल संभाग में बारिश होने के कारण वहां के किसानों ने धान की बुआई कर ली, खासकर मण्डला, डिण्डोरी, बालाघाट आदि जिलों में धान की फसल इस समय सूख गई है उसका सीधा सा कारण बारिश का गायब हो जाना है। यहां के किसानों को नुकसान होगा।
भारत में कृषि मानसून का जुआं है यदि मानसून ज्यादा बरसा तो बाढ़ से तबाही कम बरसे तो सूखे से तबाही। किसी भी स्थिति में नुकसान कृषकों को ही उठाना पड़ता है किन्तु राज्य सरकार का कहना है कि मध्यप्रदेश में मानसून में देरी सामान्य बात है। वर्ष 2013 में ही मानसून समय पर 11 जून को आ गया था अन्यथा मानसून देर से ही आता है। 2012 में भी बारिश 4 जुलाई से प्रारंभ हुई थी किन्तु पैदावार पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा। एक बार पर्याप्त बारिश होने के बाद पानी जब खेतों में सही तरीके से बैठ जाता है उसके बाद किसान मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, उड़द जैसी फसलें लेते हैं तो नुकसान की संभावना कम रहती है। धान में अवश्य थोड़ा जोखिम है लेकिन सिंचित जमीन पर धान उगाने वाले किसान इस जोखिम से मुकाबला करने का रास्ता भी निकाल ही लेते हैं।
अलनीनो मध्यप्रदेश की कृषि को शुरू से ही प्रभावित करता रहा है जिसकेे कारण वर्षा के दिनों की संख्या सुनिश्चित नहीं रहती कभी यह ज्यादा हो जाती है तो कभी कम। मौसम विभाग का कहना है कि किसी स्थान पर औसत 70 दिन की वर्षा भी पर्याप्त होती है किन्तु 120 दिन की बारिश अति उत्तम होती है। इस बार मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि बारिश अलग-अलग समय पर होगी और खरीफ की फसलों पर अलनीनो का प्रभाव पड़ सकता है हालांकि राज्य सरकार ने पूरे इंतजाम कर लिए हैं। वैसे भी मध्यप्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहां 20-25 प्रतिशत बारिश कम होती है किन्तु प्रदेश में फिर भी बंपर पैदावार के रिकॉर्ड बनते रहे हैं। मध्यप्रदेश में मानसूनी बारिश मुख्यत: बंगाल और अरब की खाड़ी में बने कम दबाव के क्षेत्र के चलते होती है, इस बार इन दोनों जगह कोई सिस्टम ही नहीं बना है। इसी कारण केन्द्र सरकार भी चिंतित है। केन्द्र ने मध्यप्रदेश को सलाह दी है कि वह रबी और खरीफ के मौसम में फसल बीमा योजना जारी रखे। इस बीच कम बारिश की संभावना ने कृषकों को चिन्ता में डाल दिया है। कुछ माह पूर्व ही किसानों ने ओलावृष्टि जैसी आपदा का सामना किया है और उनके घाव अभी भी हरे हैं। यदि इस बार पानी की सही मात्रा उपलब्ध नहीं हुई तो वे सूखे की मार झेलेंगे। प्रदेश सरकार का कहना है कि कृषकों को परेशानी नहीं उठाने दी जाएगी और कम बारिश से निपटने के लिए सरकार हर संभव प्रयास करेगी। प्रधानमंत्री ने कृषि के क्षेत्र में मृदा परीक्षण सहित तमाम क्रांतिकारी कदम उठाने की बात कही है। यदि ये उपाय कर लिए जाते हैं तो भारत में मानसून की अनिश्चितता से होने वाली परेशानियों से बहुत हद तक निजात मिलेगी।
अलनीनो का प्रभाव
1952 से लेकर अब तक 24 बार अलनीनो का प्रभाव आया है। 1997 में इसका दुष्प्रभाव सर्वाधिक देखने में आया तब देश में सूखे की स्थिति भयावह हो गई थी। इस वर्ष जून से सितम्बर के बीच कुल 896 मिलीमीटर बारिश की संभावना है जिसमें भी अधिकांश बारिश अगस्त के माह में हो सकती है। मानसून की शुरूआत कमजोर हुई है। इसी कारण सूखा पडऩे की संभावना 25 प्रतिशत है। पूर्व व पश्चिम मध्यप्रदेश में मानसून कमजोर रह सकता है।
अलनीनो एक वैश्विक प्रभाव वाली घटना है और इसका प्रभाव क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। स्थानीय तौर पर प्रशांत क्षेत्र में मत्स्य उत्पादन से लेकर दुनिया भर के अधिकांश मध्य अक्षांशीय हिस्सों में बाढ़, सूखा, वनाग्नि, तूफान या वर्षा आदि के रूप में इसका असर सामने आता है। अलनीनो के प्रभाव के रूप में लिखित तौर पर 1525 ईस्वी में उत्तरी पेरू के मरूस्थलीय क्षेत्र में हुई वर्षा का पहली बार उल्लेख मिलता है। उत्तर की ओर बहने वाली ठंडी पेरू जलधारा, पेरू के समुद्र तटीय हिस्सों में कम वर्षा की स्थिति पैदा करती है लेकिन गहन समुद्री जीवन को बढावा देती है। पिछले कुछ सालों में अलनीनो के सक्रिय होने पर उलटी स्थिति दर्ज की गयी है। पेरू जलधारा के दक्षिण की ओर खिसकने से तटीय क्षेत्र में आँधी और बाढ़ के फलस्वरूप मृदाक्षरण की प्रक्रिया में तेजी आती है।
सामान्य अवस्था में दक्षिण अमेरिकी तट की ओर से बहने वाली फास्फेट और नाइट्रेट जैसे पोषक तत्वों से भरपूर पेरू जलधारा दक्षिण की ओर बहनेवाली छिछली गर्म जलधारा से मिलन ेपर समुद्री शैवाल के विकसित होने की अनुकूल स्थिति पैदा करती है जो समुद्री मछलियों का सहज भोजन है। अलनीनो के आने पर, पूर्वी प्रशांत समुद्र में गर्म जल की मोटी परत एक दीवार की तरह काम करती है और प्लांकटन या शैवाल की सही मात्रा विकसित नहीं हो पाती। परिणामस्वरूप मछलियाँ भोजन की खोज में अन्यत्र चली जाती है और मछलियों के उत्पादन पर असर पड़ता है।