05-Jul-2014 08:06 AM
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मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सिद्धीक हसन तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने का फरमान सुनाया है। यहां के 215 मकानों सहित कुछ नर्सिंग होम और बड़ी इमारतों पर

भी बुलडोजर चलवाए जाएंगे। देखा जाए तो पूरा तालाब ही इन इमारतों की चपेट में आकर बर्बाद हो गया है और बचा-खुचा थोड़ा सा हिस्सा कीचड़ के डबरे में तब्दील हो चुका है। हाईकोर्ट ने इस तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने में विशेष रुचि दिखाई क्योंकि इस देश की अदालतें अब पर्यावरण का विनाश करने वालों को बख्शने के मूड में नहीं है। दिल्ली, मुंबई शहरों में कई गगनचुम्बी निर्माणाधीन इमारतों को डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया गया है। भोपाल में भी ऐसी ही कार्यवाही की दरकार है लेकिन भोपाल में जब भी अतिक्रमण विरोधी मुहिम चलाई जाती है तो कई सवाल खड़े हो जाते हैं। अतिक्रमण पर भी राजनीति हावी रहती है। कुछ समय पूर्व नगर निगम ने मेरिज गार्डन पर बुलडोजर चलाया था। लेकिन ये मुहिम भी उन लोगों तक सीमित रही जो खास अधिकारियों को मैनेज नहीं कर पाए। बहुत से मेरिज गार्डन अभी भी अवैध रूप से फल-फूल रहे हैं। इसी प्रकार राजधानी के एक बड़े बिल्डर के सत्ता से समीकरण बिगड़ गए तो उसका मॉल देखते-देखते ध्वस्त कर दिया गया।
सिद्धीक हसन तालाब में भी गड़बड़ी 1990-91 में उस समय सामने आई थी जब तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने भोपाल सहित कई शहरों में बुलडोजर चलवाकर बुलडोजर मंत्री का खिताब हासिल किया था। उस वक्त तालाब के डेम वॉल पर बने तीन अर्धविकसित नर्सिंग होम तोड़े जाने की तैयारी थी लेकिन नर्सिंग होम के रसूखदार मालिकों ने प्रकरण दबवा दिया। उस समय नगर निगम ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में एडव्होकेट उत्तम चन्द्र इसरानी के माध्यम से मुकदमा दायर किया गया था लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। भवन मालिकों का दुस्साहस इतना बढ़ गया कि उन्होंने बिना परमीशन भवन की ऊंचाई भी बढ़ा ली और उन्हीं का अनुसरण करते हुए अवैध कब्जे वालों ने 220 से ज्यादा इमारतें तान दीं जिनमें 20 के लगभग भवन पैथोलॉजी लैब या नर्सिंग होम हैं। नगर निगम के अधिकारियों की मिली भगत इस सीमा तक थी कि जब-जब इस तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराने की बात उठी, अधिकारियों ने पैथोलॉजी और नर्सिंग होम के मालिकों को साफ बचा लिया और रिहायशी इलाके में थोड़ी बहुत कार्यवाही करके खानापूर्ति कर ली। पहली बार हाई कोर्ट के आदेश पर नर्सिंग होम और पैथोलॉजी लैब पर बुलडोजर चलने की सम्भावना दिखाई दे रही है, किन्तु डर इस बात का है कि कहीं ये कार्यवाही भी 2003 के माफिक ठंडे बस्ते में न चली जाए जब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति भवानी सिंह ने इस तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने का निर्णय सुनाते हुए जिला प्रशासन व नगर निगम को निर्देश दिया था लेकिन राजनीतिक दखल के चलते इस पर अमल नहीं हो सका बल्कि 1950 में जहां तालाब की जमीन पर कुल 12 मकान थे वहीं उनकी संख्या बढ़कर 215 हो गई। यह सब नगर निगम के अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ है। जिस तालाब की जमीन का खसरा नंबर 160 नगर निगम के नाम पर दर्ज है उस तालाब पर निर्माण के लिए नजूल ने एनओसी भी जारी कर दी और बिल्डिंग परमीशन भी दे दी गई। सवाल यह है कि इस तरह की गड़बडिय़ां कैसे होने दी जाती हैं। जब नगर निगम अस्तित्व में आया तभी से गड़बडिय़ां प्रारंभ हो गईं कुछ लोगों ने उर्दू में लिखे दस्तावेज भी प्रस्तुत किए हैं जिनकी कोई वैल्यू नहीं है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी इन दस्तावेजों को मानने से साफ इनकार कर चुका है।
नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों ने अतिक्रमण हो जाने दिया वे पैसे खाते रहे और लोग खुलेआम तालाब में डम्परों के जरिये मलवा और मिट्टी भरके बकायदा नगर निगम की परमीशन लेते हुए मकान बनाते रहे नतीजा ये हुआ कि सरकारी दस्तावेजों ने जिस तालाब का कुल रकबा 11.88 डेसीमल दर्ज था वह घटकर 3.99 डेसीमल रह गया। तालाब की दुर्दशा पर चिंतित हाईकोर्ट ने 2005 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए भोपाल नगर निगम को आदेशित किया था कि वह तालाब में बढ़ते अतिक्रमण को रोकने के लिए फैन्सिंग लगाए लेकिन नगर निगम ने इस आदेश का ही पालन नहीं किया। इस क्षेत्र से अतिक्रमण तो हटना चाहिए लेकिन जिन जिम्मेदार लोगों ने पैसे लेकर तालाब को बेच दिया उनके खिलाफ क्या कदम उठाए जाएंगे? क्या उनको सजा नहीं दी जानी चाहिए? एक तरह से देखा जाए तो सरकारी जमीन पर बिल्डिंग परमीशन देकर नगर निगम के उन अधिकारियों ने सैकड़ों लोगों को ठगा है इसलिए उन पर 420 का केस भी दर्ज होना चाहिए। इससे भविष्य में गलत परमीशन देने वालों पर रोक लग सकेगी और शहर की खूबसूरती भी बची रहेगी।
हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब जाकर जल प्रबंधन की इस अनूठी प्रणाली को बचाने का ख्याल नगर निगम को आया है। इस प्रणाली में ताजुल मसाजिद के पीछे मोतिया तालाब, नवाब सिद्दीक हसन तालाब और मुंशी हुसैन खां तालाब शामिल हैं जिनमें किसी समय पूरे वर्ष भर शुद्ध पेय जल भरा रहता था। अब गटर का पानी, अस्पतालों का गंदा कचरा, जलकुंभी और सड़ांध दिखाई देती है। इन तालाबों का नष्ट होना इस बात का भी प्रतीक है कि हम अपने जल संस्कारों के प्रति कितने उदासीन हो गए हैं। तालाबों को धरोहर मानने वाली हमारी संस्कृति कहां चली गई। नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों के साथ-साथ ये जिम्मेदारी इस समाज की नहीं है? नगर निगम के अधिकारी तो पैसा लेकर हर जमीन का सौदा करने को तैयार रहते हैं किन्तु आम जनता का भी यह फर्ज है कि वह सोच समझकर जमीनें खरीदें। जिन जमीनों का मालिकाना हक सरकार के पास है उन पर जाली दस्तावेजों के सहारे कब्जा करने का प्रयास न करे। देखना है कि तालाब का खसरा नंबर 160 अवैध मकानों से मुक्त हो पाता है या नहीं?