सामंजस्य बनाना जरूरी है
05-Jul-2014 07:17 AM 1234808

दिल्ली में सुमित्रा महाजन जो कि मध्यप्रदेश की अहिल्या नगरी इंदौर की रहने वाली हैं। उनसे लोकसभा स्पीकर बनने के बाद की विशेष बातचीत-
लोकसभा में आप दूसरी महिला स्पीकर हैं, राजनीति की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
प्रेरणा अगर कहें तो कह सकते हैं कि अन्याय के विरुद्ध लडऩे की प्रेरणा इंदिराजी के कारण मिली। इसीलिये एक तरह से उन्होंने ही मुझे राजनीति में बुलाया।
क्या इंदिराजी ने आपसे राजनीति में आने का कहा था?
नहीं!! वो इस तरह बुलाया कि जब 1975 में आपातकाल लगाया गया उस समय विवाह के पश्चात मैं इंदौर में ही थी। हालांकि मैं कोई राजनीतिक कार्य नहीं करती थी। किंतु उस समय मैंने जब आपातकाल का वातावरण देखा स्वयंंसेवकों को जेल में डाला गया था। यह देखकर मुझे गुस्सा तो आता ही था कि यह गलत काम हो रहा है। यह नहीं होना चाहिये। किंतु फिर भी मैं केवल जो जेल में लोग थे उनकी मदद के लिये बाहर निकली थी कि उनके परिवार को मदद करना है, उन्हें क्या आवश्यकता है। किसी को पैरोल चाहिये है, कलेक्टर को बोलना है ऐसा करके मैंने शुरुआत की।
बचपन में कभी विचार नहीं आया?
मैं बचपन से राष्ट्र सेविका समिति की सेविका रही हूं। मेरे घर में पूरा संघ का वातावरण था। मेरे पिता संघ से जुड़े हुये थे। देश के प्रति कुछ कर दिखाने की भावना बचपन से ही थी। उसके बाद सामाजिक काम की रूचि सतत रही है। मैं पहले समाज सेविका थी। साहित्य इत्यादि में भी रूचि थी।
राजनीति आपने कितने वर्ष पहले प्रारंभ की थी?
मैं पहले समाज सेविका थी। साहित्य इत्यादि में भी रूचि थी। राजनीति 70 के दशक के अंत में प्रारंभ की।
चुनाव में कब पदार्पण हुआ?
साइकल पर घूमती थी। इंदौर में साइकलों का बहुत चलन था। तभी चुनाव की घोषणा हो गई। उस समय बहुत से लोग जेल से भी चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन तब भी आपातकाल का डर लोगों के जेहन से निकला नहीं था। सभायें कौन लेगा, रैलियां कौन करेगा मैं उस समय प्रवचन भी देती थी रामायण, महाभारत पर। उस समय के जनसंघ के नेताओं को भी पता था इस विषय में। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान आपने काम किया है और वक्ताओं की आवश्यकता है तो उस समय न चाहते हुये भी मुझे राजनीति पर बोलना पड़ा। उस समय शुरुआत हुई। सभायें लेने जाती थी। फिर मध्यप्रदेश में भी हमारी सरकार बनी। मुझे सामाजिक कार्य दिया गया। बाल सुधार गृह, नारी निकेतन की सलाहकार समिति आदि के सदस्य के रूप में मैंने काम जारी रखा। फिर कॉर्पोरेशन के चुनाव आये। जिनमें मैंने भाग लिया और ऐसा करते-करते डिप्टी मेयर के पद तक पहुुंची।
संसद में लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने पर सभी दलों ने आपके प्रति उद्गार व्यक्त किये। सभी दलों को आपसे अपेक्षायें हैं।
सामंजस्य बिठाकर काम करना पड़ेगा। लोकतंत्र में जिस तरह सत्ता पक्ष के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी होती है उसी प्रकार विपक्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किंतु वह भूमिका रचनात्मक विपक्ष की होनी चाहिये। रचनात्मक विपक्ष रहेगा तो सत्ता दल और प्रतिपक्ष का सामंजस्य बना रहेगा। यही कोशिश मेरी भी रहेगी। किंतु अभी विशेषता यह है कि विपक्ष में कोई एक दल नहीं है। विपक्ष बिखरा हुआ है छोटे-छोटे दल में। इसलिये मैंने सदन में बोला कि जिन-जिन लोगों ने उनको चुनाव जिताकर भेजा है उनके प्रति उनकी जवाबदेही है ही लेकिन वो चुनाव लड़े हैं इसका अर्थ है कि वे कहीं न कहीं देश की सेवा करना चाहते हैं।
एक सांसद से क्या अपेक्षायें हो सकती हैं?
जब आप संसद में आते हो तो अपने लोकसभा क्षेत्र के साथ-साथ राष्ट्र आपके लिये प्रमुख होना चाहिये। क्योंकि यह जो सभा है वह राष्ट्रीय स्तर पर कानून और विधान बनाने वाली सभा है। इसीलिये सामंजस्य के साथ-साथ बहस की गुणवत्ता भी जरूरी है। बहुत से नये सांसद चुनकर आये हैं। इसलिये कोशिश रहेगी कि संसद की तरफ से हम उनको ज्यादा से ज्यादा सुविधायें दे सकें और बेहतर वातावरण दे सकें।
क्या आपको लगता है कि अध्यादेश लाकर बहुत सी चीजों को बदलने की आवश्यकता पड़ती है।
अब यह तो सरकार पर निर्भर करता है क्योंकि हर एक की अलग कार्यशैली होती है। इसलिये मैं अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगी। इतना अवश्य होना चाहिये कि संसद में उचित बहस के बाद ही कोई विधेयक पारित हो।
आप अहिल्या की नगरी इंदौर से सांसद हैं। तो इंदौर के लिये भी कोई विशेष योजना है?
इंदौर का अभी बहुत विकास होना है। विकास कभी पूरा होता ही नहीं है क्योंकि शहर बढ़ता जाता है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत इंदौर के 90 प्रतिशत गांवों की सड़कें बन गई हैं। शहर में भी नगर निगम के अंतर्गत काम हो रहे हैं फिर भी बढ़ती आवश्यकताओं के अनुसार रेलवे, स्टेशनों, बस इत्यादि की जरूरत है। तेज परिवहन होना चाहिये। ये कई सारे काम अभी बाकी हैं जो अभी करना होगा। फ्लाई ओवर और पुलों की आवश्यकता है।
स्पीकर को कई चुनौतियों के बीच काम करना होता है। धैर्य की परीक्षा होती है। गुस्से पर नियंत्रण करना पड़ता है। 543 सांसदों को संभालना उस संसद में जिसमें विधेयक फाड़े जा चुके हैं, झूमा-झटकी हुई है, मिर्च पाउडर फेंका गया- कैसे संभव है?
कोशिश मेरी रहेगी की बिना गुस्सा किये प्रेम से जितना हो सकता है वह किया जाये किंतु उसमें मीडिया की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। मीडिया को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिये। पहले यह होता था कि अच्छी बातों को मीडिया में ज्यादा स्थान मिलता था। अखबारों में एक पन्ना रहता था जिस पर वे बातें आती थीं। लेकिन धीरे-धीरे यह समाप्त हो गया। अब कोई हल्ला करे तो लीड स्टोरी बनती है। तो मीडिया को वी पॉजेटिव होना पड़ेगा। जिस तरह अच्छे व्यक्तियों को समाज में पहचान मिलना जरूरी है उसी तरह अच्छे काम को भी समाज में पहचान मिलनी चाहिये। जैसे इंदौर में सब कहते हैं कि अगला सांसद कोई बनना चाहे तो उसे ताई जैसा काम करना होगा। मैं अपनी प्रशंसा नहीं कर रही हूं। ऐसा वास्तव में है। तो मैं चाहूंगी कि मीडिया से भी मुझे मदद मिले।
आपके सांसद रहते हुये लोकसभा पर हमला हो चुका है। क्या आप इस पक्ष में हैं कि सभी पत्रकारों और सांसदों की तलाशी होनी चाहिये?
मैं इस विषय में अभी कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती, किंतु सभी को अपनी अंतरआत्मा और चरित्र साफ रखना चाहिये। संसद को बचाना और सुरक्षित रखना सभी की जिम्मेदारी है।

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