05-Jul-2014 07:33 AM
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ज्यूरिख के कुछ बैंकों में आजकल दिन-रात काम चल रहा है। दरअसल भारत सरकार के आग्रह पर उन लोगों की सूची तैयार की जा रही है जिनका काला पैसा ज्यूरिख के बैंकों में जमा है। यह सूची

शीघ्र ही भारत सरकार को मिल जायेगी। इससे पहले भी यूपीए सरकार को कुछ नाम मिले थे जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया। दूसरी सूची पता लगने पर उसका क्या किया जायेगा इस बारे में कोई स्पष्ट घोषणा सरकार की तरफ से नहीं हुई है। नाम पता लगने पर सरकार इतना कह सकती है कि वह भारत में उन लोगों पर दबाव बनाना शुरू करे जिनका पैसा जमा है और उस पैसे का सही स्रोत बताने का कहा जाये। लेकिन उस पैसे को उन बैंकों से निकाल कर भारत लाना इतना आसान नहीं है। बहुत से खाते ऐेसे भी हैं जो गुप्त हैं और कोडेड हैं। क्या इन गुप्त खातों की जानकारी या उनके कोड भारत सरकार को मुहैया कराये जायेंगे। अभी तक स्विट्जरलैंड में 2.3 बिलियन फ्रैंक याने 14 हजार करोड़ रुपये का पता चला है। लेकिन सारा पैसा कितना है कहना मुश्किल है क्योंकि स्विट्जरलैंड के 283 बैंकों में 1.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर पैसा जमा है। जाहिर है ये सारा पैसा भारतीयों का नहीं है। अन्य देशों का भी होगा। अमेरिका ने तो अपना पैसा तकरीबन वापस मंगा लिया है लेकिन कई एशियाई देश हैं जहां का काला पैसा इन बैंकों में जमा है। पहले एक एचएसबीसी लिस्ट सामने आई थी लेकिन इसकी विश्वसनीयता पर संदेह व्यक्त किया गया। अब सरकार ने कुछ गंभीर कोशिशें की हैं। देखना यह कि यह कोशिशें क्या रंग लाती हैं।
सत्ता संभालते ही नरेंद्र मोदी सरकार ने पहला फैसला करते हुए विदेशों में जमा काले धन का पता लगाने के लिए विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित कर दी । सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति एमबी शाह की अध्यक्षता में एसआईटी कार्य करेगी। काले धन की जांच व निगरानी करने वाली इस एसआईटी में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं जबकि अन्य 11 सदस्य विभिन्न महकमों के आला अधिकारी हैं।
काले धन को लेकर पिछले 10 सालों में कांग्रेस सरकार ने कोई ठोस काम नहीं किया। तीन साल तक यूपीए सरकार की बेरूखी और हीला-हवाली के बाद लेकिन अब जाकर एसआईटी का गठन हुआ है । काले धन को लेकर एनडीए सरकार गंभीर है और ये देश के लिए एक सकारात्मक संदेश है।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले 2011 में केंद्र सरकार को काले धन पर एसआईटी बनाने का आदेश दिया था। लेकिन एसआईटी के गठन को लेकर यूपीए सरकार ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पिछली यूपीए सरकार को कई बार कड़ी फटकार भी लगाईं लेकिन फिर भी यूपीए सरकार ने एसआईटी गठित नहीं की और न ही काले धन को देश में वापस लाने के लिए कुछ किया। अगर विदेशों में जमा देश का काला धन वापस आ गया होता तो न सिर्फ प्रतिव्यक्ति आय बढ़ी होती, बल्कि लोगों के सिर से कर का बोझ भी कम हो गया होता।
यह कोई संयोग नहीं है कि काले धन के मसले पर दस वर्षों के अपने शासन में कुछ नहीं करने वाली कांग्रेस ने इस लोकसभा चुनाव में फिर वादा किया था कि अगर वह दोबारा सत्ता में आई तो दुनिया भर में फैले काले धन का पता लगाने के लिए एक विशेष राजदूत
नियुक्त करेगी!
अब यहां सवाल उठता है कि पिछले 10 साल में कांग्रेस ने क्यों कुछ नहीं किया? इसके पीछे सबसे बड़ा कारण था कि कांग्रेस सहित कई पार्टियों के महत्वपूर्ण नेताओं के पैसे विदेशी बैंकों में हैं, इसीलिए सत्ता में रहने पर वे हर कीमत पर मामले को ठंडा करने की ही कोशिश करते ही दिखते हैं। दूसरी सच्चाई यह भी है कि विदेशी बैंकों में नेताओं के साथ ही सरकारी अफसरों का और उनसे कहीं ज्यादा व्यापारियों और उद्योगपतियों का जमा है। काले धन से जुड़ी इस धारणा को भी अब बदला जाना जाना चाहिए कि समूचा काला धन कहीं विदेश में पड़ा हुआ है, जिसे बस वहां से उठाकर लाने का काम बचा है।
ग्लोबल पूंजी बाजार में जब पूरी दुनिया भारत जैसे देशों में पैसा लगाना चाह रही हो, तब भारतीयों का काला धन विदेशी खातों में निर्जीव पूंजी के रूप में जमा पड़ा हो, यह बात गले से नहीं उतरती। सच्चाई यह है कि इस काले धन का बड़ा हिस्सा मारीशस वगैरह के रास्ते बार-बार भारत आता है और हर बार पहले से ज्यादा बड़ा होकर सुरक्षित जगहों पर वापस लौट जाता है।
यही वजह है कि जब भी काले धन के खिलाफ कोई कारगर कदम उठाने की बात शुरू होती है, शेयर बाजार नीचे आता है और अर्थव्यवस्था के बिखर जाने के अंदेशे जताए जाने लगते हैं। असल में काले धन का मसला उतना सरल नहीं है, जितना पहली नजर में मान लिया जाता है।
फिर भी यह चाहे जितना भी जटिल हो, इसका समाधान तभी निकलेगा जब सरकार इस पर काम किया करेगी। इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट की यह पहल अहम है। अगर एसआईटी की निगरानी में गंभीरता से कुछ किया जाता है तो अगले कुछ सालों में इसके क्रांतिकारी नतीजे सामने आएंगे।
काला धन का मुद्दा देश में लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चेतावनी दी है कि भारत के लिए मनी लांडरिंग यानी काले धन को वैध बनाने और चरमपंथियों को आर्थिक सहायता का खतरा सबसे बड़ी चुनौती है ।
विदेशी बैंकों में भारत का कितना काला धन जमा है, इस बात के अभी तक कोई अधिकारिक आंकड़े सरकार के पास मौजूद नहीं हैं लेकिन स्विस बैंक में खाता खोलने के लिए न्यूनतम जमा राशि 50 करोड़ रूपए बताई जाती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जमाधन की राशि कितनी विशाल होगी। स्विस राजदूत ने माना है कि भारत से काफी पैसा स्विस बैंकों में आ रहा है। कुछ महीनों पहले स्विस बैंक एसोसिएशन ने भी यह कहा था कि गोपनीय खातों में भारत के लोगों की 1456 अरब डॉलर की राशि जमा है। वास्तव में सरकार भ्रष्टाचार से निपटने और विदेशों में जमा कालेधन को वापस लाने में जिस प्रकार से निष्क्रियता दिखाती रही है, उससे देश के लोगों को यह महसूस होता है कि काले धन का मुद्दा कभी सुलझ नहीं सकता क्योंकि आधे से ज्यादा पैसा तो भ्रष्ट राजनेताओं का है।
काला धन अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी के अनुसार भारत के लोगों का लगभग 20 लाख 85 हजार करोड़ रूपए विदेशी बैंकों में जमा है। देश में काले धन की समानांतर व्यवस्था चल रही है। चूंकि इस धन पर टैक्स प्राप्त नहीं होता है, इसलिए सरकार अप्रत्यक्ष कर में बढ़ोतरी करती है, जिसके चलते नागरिकों पर महंगाई समेत तमाम तरह के बोझ पड़ते हैं।