05-Jul-2014 06:59 AM
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दिल्ली में बिजली के दामों में 50 प्रतिशत कटौती, हर परिवार को 700 लीटर मुफ्त पानी, झुग्गियों को सुविधाएं और पट्टे, सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधा तथा सरकारी स्कूलों में बेहतर शिक्षा

जैसे 5 वादे करके केजरीवाल बीच में ही खिसक लिए। एकाध वादा ही पूरा कर पाए और अब केजरीवाल दिल्ली की जनता से 5 वर्ष मांग रहे हैं लेकिन सवाल वही है कि क्या दिल्ली की जनता केजरीवाल को फिर से चुनने के लिए तैयार है। यह सच है कि पराजय से निराश कांग्रेस केजरीवाल से परदे के पीछे समझौता करना चाहती है लेकिन भाजपा का बढ़ता प्रभाव केजरीवाल और कांग्रेस दोनों के लिए घाटे का सौदा हो सकता है।
उधर मायावती अब दिल्ली में बहुजन समाज पार्टी को तीसरे स्थान पर लाने के सपने देख रही हैं। यह कपोल कल्पना नहीं है बल्कि हकीकत है। 15 वर्षों से सत्ता सुख भोग रहे दिल्ली के कई आला कांग्रेसी नेता अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर है और कांग्रेस तीसरे नंबर पर। भाजपा निर्विवाद रूप से दिल्ली में मजबूत पकड़ बना चुकी है। यही कारण है कि दिल्ली की कांग्रेस का दर्द उभरकर सामने आ रहा है। कई बड़े नेता अपनी वर्षों पुरानी वफादारी को बेवफाई में बदलने के ख्वाहिशमंद हैं। प्रदेश नेतृत्व पर आलाकमान की पकड़ भी कमजोर पडऩे लगी है। आलम यह है कि लगभग 6 विधायक पार्टी का साथ छोडऩे को तैयार हैं। ये अलग गुट बनाकर भाजपा से जुडऩा चाह रहे हैं। जो बड़े नेता विधायक नहीं हैं वे भी इतने मायूस हैं कि नया ठिकाना तलाशने लगे हैं।
आम आदमी पार्टी उनकी डेस्टिनेशन नहीं है। क्योंकि वे जानते हैं कि आम आदमी पार्टी का भविष्य खतरे में है। यह पार्टी कभी भी नष्ट हो सकती है। जहां तक भाजपा का प्रश्न है उससे जुडऩे में भी कोई भलाई नहीं है क्योंकि भाजपा का काडर दिल्ली में नीचे से ऊपर तक काफी मजबूत है। इसी कारण बहुत से नेता बहुजन समाज पार्टी से जुडऩे का मन बना रहे हैं। बसपा को दिल्ली में अच्छे खासे वोट मिलते हैं और यदि कुछ बड़े कांग्रेसी नेता बसपा से जुड़ते हैं तो जातिगत समीकरण के चलते बसपा दूसरे नंबर की पार्टी बन सकती है। दलित आंदोलन से अभी भी लोगों की सहानुभूति है। हालांकि उत्तरप्रदेश में बसपा की दुर्गति ने कुछ नेताओं को मायूस किया है लेकिन दिल्ली के कांग्रेसी मानते हैं कि बसपा में वापसी की संभावना है। एक नेता का कहना है कि यूपी में बसपा का वोट प्रतिशत बढ़ा तो दिल्ली में भी बढ़ा। सीटें नहीं मिलीं यह अलग विषय है लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता। विधानसभा में हालात बदलेंगे।
वहीं भाजपा से जुडऩे के इच्छुक नेताओं की भी लंबी कतार है। पर दिल्ली भाजपा का नेतृत्व जिन लोगों के हाथों में है उन्हें लेकर बहुत उत्साह नहीं है। खासकर गोयल जैसे नेता कांग्रेसियों को भाजपा से जुडऩे में हतोत्साहित कर रहे हैं। इस बात की संभावना कम ही है कि भाजपा दिल्ली में जोड़तोड़ करके सरकार बनायेगी। भाजपा के नेतृत्व का मानना है कि भाजपा को चुनाव में जाना चाहिये। विजय अवश्य मिलेगी, क्योंकि दिल्ली की जनता आम आदमी पार्टी के छलावे से बोर हो चुकी है। कांग्रेस में उसे संभावना नहीं दिख रही है। किसी अन्य दल का विकल्प के रूप में अस्तित्व न के बराबर है। दिल्ली यह चाहती है कि एक मजबूत सरकार सत्तासीन होनी चाहिये। यदि अभी जोड़तोड़ करके सरकार बना ली गई तो भी आगामी समय में विधानसभा चुनाव के वक्त यही जोड़तोड़ भारी पड़ेगी। दिल्ली के कुछ नेता प्रयासरत हैं कि शीघ्र ही चुनाव हों और दिल्ली की स्थिति स्पष्ट हो जाये। राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी नीत राजग बहुमत में नहीं है। इसीलिये आवश्यक है कि भाजपा कुछ राज्यों में बड़े अंतर से जीते। यदि दिल्ली में भाजपा बड़े अंतर से जीतती है तो राज्यसभा के सदस्य भी बढ़ेंगे। खुलकर काम करने का मौका भी रहेगा। जोड़तोड़ से सरकार बनाने पर भाजपा की इमेज भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की तरह खत्म हो जायेगी। हालांकि जो 6 विधायक कांग्रेस को छोडऩे की योजना बना रहे हैं उनमें से 3 मुस्लिम हैं। मुस्लिम विधायकों के भाजपा से जुडऩे की संभावना कम ही है। जानकारों का यह भी मानना है कि कांग्रेस में इस कथित विभाजन की रणनीति संभवत: उन लोगों ने रची है जो नहीं चाहते कि भाजपा चुनाव जीतकर दो गुनी ताकत के साथ दिल्ली में आये। इन लोगों का मानना है कि भाजपा को कमजोर करने के लिये यह जरूरी है कि उसे समर्थन देकर सरकार बना दी जाये और उस सरकार को इतना ब्लैकमेल किया जाये कि उसकी छवि जनता के बीच आम आदमी पार्टी की तरह नष्ट हो जाये। ऐसे हालात में कांग्रेस के परंपरागत वोट वापस आ सकते हैं।
कांग्रेस के टूटे हुये विधायक आम आदमी पार्टी की तरफ भी जा सकते हैं। जो हर हाल में सरकार बनाने के लिये लालायित है। बहुत कुछ दिल्ली के राज्यपाल के ऊपर भी निर्भर करेगा। लेकिन यह तो तय है कि आज के हालात में दिल्ली में जो भी गठबंधन या दल जोड़तोड़ करके सरकार बनायेगा वह अंतत: घाटा ही उठायेगा। जरूरत इस बात की है कि दिल्ली में चुनाव पुन: करवाये जायें ताकि जनता का स्पष्ट मत सामने आ सके। एक संभावना यह भी है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ें, यदि ऐसा हुआ तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही दिल्ली में खत्म हो सकती हैं। इसीलिये कांग्रेस के बड़े नेता बहुजन समाज पार्टी से हाथ मिलाने के लिये तैयार हैं। पर बहनजी को डर है कि यदि उन्होंने कांग्रेस से निकटता बढ़ाई तो भाजपा उनके खिलाफ सीबीआई को हथियार बना सकती है।