फीस वसूली गई 128 की परीक्षा में बैठे 2 छात्र
05-Jul-2014 07:12 AM 1234787

मध्यप्रदेश में बड़े-बड़े कारनामे हो जाते हैं। व्यापमं की सिफारिशें की जाती हैं तो छात्रों की छात्रवृत्तियां संस्थानों के मालिक डकार जाते हैं।
वर्ष 2011 में उजागर छात्रवृत्ति घोटाला मध्यप्रदेश में की जा रही वित्तीय गड़बडिय़ों और भ्रष्टाचार का उत्कृष्ट नमूना है। लोकायुक्त में छात्रवृत्ति घोटाले से संबंधित कई जांचें चल रही हैं और कुछ मामले तो ऐसे हैं जिनसे यह पता चलता है कि भ्रष्टाचारी आटे में नमक बराबर भ्रष्टाचार नहीं कर रहे बल्कि नमक में चुटकी भर आटा डालकर शासन की आंखों में धूल झोंक रहे थे और उनसे मिलीभगत करने वाले अधिकारी पैसे खाकर इन घोटालों को होते हुये देख रहे थे।
इन्हीं में से एक प्रकरण जबलपुर के निजी कॉलेज जबलपुर इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेस का है जो किसी गजानन सोसायटी द्वारा संचालित है और जिसके कर्ताधर्ता वीरेंद्र पांडे हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार की सारी सीमायें पार कर डाली हैं। लोकायुक्त के पास दर्ज शिकायत के आधार पर कायम जांच प्रकरण क्रमांक 515/10 जिला संयोजक, आदिम जाति कल्याण जबलपुर की जांच में जो तथ्य उभरकर सामने आये हैं उनसे पता चलता है कि जबलपुर इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेस द्वारा न केवल फर्जी छात्रों के एडमिशन करके बल्कि उनके नाम पर शासन से छात्रवृत्ति लेते हुये करोड़ों रुपये का घपला किया गया। इस संस्थान के छह पाठ्यक्रमों में वर्ष 2009-2010 के दौरान कुल 225 छात्र-छात्राओं ने कथित तौर पर कागजों पर दाखिला लिया जिसमें 146 नंबर पर कौन सा छात्र पंजीकृत हुआ है उसका नाम तक दर्ज नहीं था। अर्थात इन फर्जी छात्र-छात्राओं में भी 224 नाम ही सही थे बाकी एक नाम शायद फर्जीवाड़ा करने वालों को मिला नहीं होगा।
फर्जीवाड़े का आलम यह था कि जुलाई में सत्र प्रारंभ होना बताया गया लेकिन उपस्थितियां दर्ज की गईं अक्टूबर 2009 से अप्रैल 2010 तक। इसका अर्थ यह हुआ कि जुलाई से अक्टूबर 2010 तक 3 माह से ऊपर समय बीत जाने के बावजूद इस चमत्कारिक कॉलेज में कोई भी बच्चा प्रकट नहीं हुआ और अचानक अक्टूबर माह में भये प्रकट कृपाला की तर्ज पर  सारे के सारे बालक-बालिकायें एक साथ आ गये। इस स्वनाम धन्य कॉलेज का कारनामा केवल यहीं तक सीमित नहीं रहा वर्ष 2009-2010 में आयोजित परीक्षा में किन छात्र-छात्राओं को शामिल किया जाना है इसकी सूची विभाग को उपलब्ध नहीं कराई गई और विभाग के कुंभकर्णी नींद में सोये अधिकारियों का कारनामा देखिये कि उन्होंने इस फर्जी कॉलेज से जानकारी लेना भी उचित नहीं समझा। बहरहाल जब छात्र थे ही नहीं तो सूचियां कहां से उपलब्ध कराई जातीं। इसीलिये चमत्कारिक रूप से वर्ष 2009-2010 में आयोजित परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले छात्र-छात्राओं की सूची विभाग को भेज दी गई। इनकी संख्या ही कुल जमा 92 थी। वर्ष 2009-2010 में आयुर्वेदिक कंपाउंडर हेल्थ इंस्पेक्टर, होम्योपैथिक कंपाउंडर इस प्रकार कुल 128 छात्र इन तीन कोर्स में दर्ज किये गये थे। लेकिन इनमें से परीक्षा में सम्मिलित हुये कुल जमा 2 छात्र। इस प्रकार 126 छात्र-छात्राओं ने परीक्षा नहीं दी। जबकि शासन से इन तीनों कोर्सों के लिये 121 छात्र-छात्राओं हेतु 16 लाख 90 हजार 670 रुपये की राशि प्राप्त कर ली गई।
यह राशि कागजों पर किये गये फर्जी पंजीयन के आधार पर शासन से प्राप्त कर ली गई और इसमें अधिकारियों ने भरपूर सहयोग भी किया। कुल जमा दो छात्र परीक्षा में सम्मिलित हुये बाकी सब परीक्षा में नहीं बैठ पाये। कॉलेज ने इन बच्चों के परीक्षा में शामिल न होने की बड़ी हास्यास्पद कैफियत विभाग में प्र्रस्तुत की है और विभागीय अधिकारी तथा जिम्मेदार लोग बेचारे इतने भोले-भाले हैं कि उन्होंने इस पर विश्वास भी कर लिया। बड़ी बेफिक्री से ये घोटाला किया गया। यह तो मात्र 3 पाठ्यक्रमों का एक साल का घोटाला है। यह कॉलेज वर्ष 2004 से संचालित है। न तो इसका भौतिक सत्यापन किया गया है और न ही यह जानने की कोशिश की गई है कि इतनी बड़ी तादाद में छात्र-छात्राओं को पैरामेडिकल की शिक्षा देने वाले इस कॉलेज के पास क्या अधोसंरचना है। जांच में पता चला है कि वर्ष 2010 में कुल 50 लाख 81 हजार 690 रुपये की राशि उक्त कॉलेज को सीधे चेक द्वारा प्रदान दी गई है जिसमें से अनुसूचित वर्ग में 7 लाख 64 हजार 460 रुपये, अनुसूचित जनजाति वर्ग में 13 लाख 92 हजार 580 रुपये एवं अन्य पिछड़ा वर्ग में 29 लाख 24 हजार 650 रुपये की राशि का भुगतान किया गया। स्वीकृत राशि एवं चेक द्वारा भुगतान की गई राशि में 17 लाख 34 हजार 960 रुपये के पेड वाउचर का समायोजन ही नहीं किया गया। सहायक आयुक्त कार्यालय ने संस्था का निरीक्षण करना भी उचित नहीं समझा। डीएमएलटी कोर्स के लिये 50 सीटें स्वीकृत थीं लेकिन प्रस्ताव भेजा गया 51 छात्रों की छात्रवृत्ति के लिये। जिसमें से 39 छात्रों को छात्रवृत्ति एवं शिक्षण शुल्क स्वीकृत किया गया बाकी 12 को इस लाभ से क्यों वंचित रखा गया इसका कोई कारण विभाग ने नहीं बताया।
इतना ही नहीं आयुर्वेदिक कंपाउंडर कोर्स करने वाले छात्र गजेंद्र कुमार को 4270 रुपये की राशि स्वीकृत की गई है। लेकिन उसके हस्ताक्षर नहीं हैं। एक्स-रे कोर्स करने वाले हेमंत वरकटे को 2000 रुपये की राशि स्वीकृत की गई है उनके भी हस्ताक्षर नहीं हैं। हेल्थ इंस्पेक्टर कोर्स करने वाले गणेश प्रसाद झारिया को 6500 रुपये की राशि स्वीकृत की गई है लेकिन उनके भी दस्तखत नहीं हैं। शायद फर्जी दस्तखत करने वाले नहीं मिले होंगे। संस्था को जो भी पैसा दिया गया वह आंख बंद करके सरकारी खजाने से बिना पर्याप्त परीक्षण के प्रदान कर दिया गया। छात्रों का भौतिक सत्यापन, प्रमाणीकरण आवश्यक नहीं समझा गया।
घपलेबाजी कई और भी रूपों में देखने में आई है। बताया जाता है कि संस्था लगातार 5 वर्षों तक पैरामेडिकल कोर्सेज में फर्जी कागजों के आधार पर फर्जी प्रवेश दिखाकर शासन से करोड़ों रुपये की राशि  प्राप्त करती रही और अधिकारियों ने इस फर्जीवाड़े से मुंह मोड़ लिया। सहायक आयुक्त आदिवासी विकास जबलपुर से जब उक्त संस्था के विषय में 5 वर्षों की जानकारी दिनांक 5 मई 2011 को मांगी गई थी तो सहायक आयुक्त ने जो जानकारी प्रेषित की वह अपूर्ण थी। इस प्रकार मिलीभगत का प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
लेकिन छात्रवृत्ति घोटाला यहीं तक सीमित नहीं है। इसके कई आयाम हैं और यह घोटाला  बहुत व्यापक है।

सिंह की मिलीभगत
जबलपुर इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेस ही नहीं बल्कि और भी बहुत से कॉलेज हैं जिन्हें छात्रवृत्ति में घोटाला करके पैसे कमाने का अवसर दिया गया है। यह अवसर प्रदान किया एस.एस. सिंह तत्कालीन सहायक आयुक्त (छात्रवृत्ति प्रभारी) आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा जिन्होंने पद का दुरूपयोग करते हुये शासन को करोड़ों रुपये की हानि पहुंचाई। सिंह के खिलाफ जांच में कई गड़बडिय़ों का खुलासा हुआ। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल महाविद्यालय जबलपुर, शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय जबलपुर, शासकीय कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय जबलपुर, शासकीय कृषि महाविद्यालय जबलपुर, शासकीय पशु चिकित्सालय विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय जबलपुर सहित तमाम कॉलेजों में सिंह की मिलीभगत से की गई गड़बडिय़ों का खुलासा सामने आया है। बहुत सी जगह ज्यादा राशि के चेक भेजे गये। चेकों की पावतियां नहीं हैं। जिन्हें पात्रता नहीं थी उन्हें भी पैसे जारी किये गये।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल महाविद्यालय में वर्ष 2007 तक सिंह की कृपा से 8 लाख 16 हजार 275 रुपये पात्रता से अधिक छात्रवृत्ति के रूप में प्रदान कर दिये गये। शासकीय कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय में अनुसूचित जाति वर्ग के 9 छात्रों को 2 लाख 31 हजार 150 व इसी वर्ग के 30 अन्य छात्र-छात्राओं को 7 लाख 24 हजार 630 रुपये की राशि पात्रता से अधिक दे दी गई है। यह घोटाले 2004 से लेकर 2010 के बीच किये गये। शासकीय कृषि महाविद्यालय में भी इसी तरह का घोटाला किया गया जब अनुसूचित जाति वर्ग के 85 छात्र-छात्राओं को 13 लाख 46 हजार 15 रुपये का अधिक भुगतान किया गया और उधर अनुसूचित जनजाति वर्ग के 67 छात्र-छात्राओं को 11 लाख 51 हजार 2 रुपये का भुगतान ज्यादा कर दिया गया। यह सब कॉलेज और सिंह की मिलीभगत के चलते ही संभव हो सका। शासकीय पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय में भी अनुसूचित जाति वर्ग के 31 छात्र-छात्राओं को 14 लाख 31 हजार की राशि का भुगतान अधिक किया गया और अनुसूचित जनजाति वर्ग के 49 छात्र-छात्राओं को 24 लाख 47 हजार रुपये की राशि का भुगतान अधिक कर दिया गया। सिंह के खिलाफ लोकायुक्त में प्रकरण क्रमांक 136/11 के परिप्रेक्ष्य में जो जांच की गई है उसमें पाया गया है कि उक्त महाविद्यालयों में 1 करोड़ 53 हजार 842 रुपये की छात्रवृत्ति पात्रता से अधिक स्वीकृत की गई और गंभीर वित्तीय अनियमिततायें इस अधिक की गई छात्रवृत्ति में से 19 लाख 6 हजार 770 रुपये की राशि छात्रों से वसूली जा चुकी है लेकिन 81 लाख 47 हजार 72 रुपये की राशि अभी भी लेना बाकी है। यह राशि किसकी जेब में गई है कहा नहीं जा सकता। लेकिन घोटाला अवश्य हुआ है। पिछड़ा वर्ग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को शासन द्वारा उच्च शिक्षा के लिये छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है, किंतु कॉलेजों में मिलीभगत से फर्जी छात्रों के नाम यह छात्रवृत्ति ले ली जाती है और छात्र तो परीक्षा देने भी नहीं आते। बहुत से छात्रों को अतिरिक्त राशि देकर उनसे नगद पैसा वसूला जाता है। कॉलेज संचालक डरा-धमकाकर छात्रों से गलत दस्तावेजों पर दस्तखत करवा लेते हैं, इसके बाद घोटाले का खेल प्रारंभ हो जाता है। यह फर्जीवाड़ा लंबे समय से चल रहा है।

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^