05-Jul-2014 06:47 AM
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एनडीए सरकार के सत्तासीन होते ही कई राज्यपालों के भविष्य पर प्रश्रचिन्ह लग गए हैं। कुछ राज्यपालों ने समय की नजाकत को देखते हुए पद छोड़ भी दिए हैं। भारत की राजनीतिक परम्परा में

राष्ट्रपति, मुख्य न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और प्रदेश के राज्यपालोंं को महामहिम सम्बोधन से सम्बोधित किया जाता है। जहां तक राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश का प्रश्र है इन्हें हटाने के लिए एक जटिल प्रक्रिया है और अभी तक किसी भी सरकार ने इतनी अशिष्टता नहीं दिखाई कि वह किसी राष्ट्रपति अथवा मुख्य न्यायाधीश को उनके पद से पदच्युत करे।
राज्यपालों की महिमा हमेशा दांव पर लगी रहती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 90 के दशक तक राज्यपालों का भविष्य इतना अनिश्चित नहीं हुआ करता था क्योंकि उस वक्त ज्यादातर समय कांग्र्रेस ही सत्तासीन रही किन्तु अब हालात बदल रहे हैं। केन्द्र की सरकार भी 5-10 वर्ष में बदल जाती है और इसी कारण राज्यपालों की भूमिका पहले की अपेक्षा अधिक चुनौतीपूर्ण और महत्वपूर्ण हो चली है। खासकर जिन राज्यों में केन्द्रीय सत्ता में जो दल है उसकी सरकार नहीं है वहां अपने मनपसंद राज्यपाल की नियुक्ति करके केन्द्र की सरकार कुछ हद तक लगाम अपने हाथ में रखने की कोशिश करती है। बहुधा होता यह है कि जिन राज्यपालों का समय कुछ एक माह का बाकी हो उन्हें त्यागपत्र देने का नहीं कहा जाता लेकिन जिन राज्यपालों की नियुक्ति कुछ समय पूर्व ही की गई हो उनका बदलना नए दल के सत्तासीन होने के साथ ही अवश्यसंभावी हो जाता है। इसीलिए राज्यपालों की नियुक्ति कई बार केन्द्र में सत्तासीन दल के अनुरूप ही होती है। केन्द्र में यूपीए शासन के अन्त होने और एनडीए के सत्तासीन होने के साथ ही कुछ राज्यपालों के सर पर तलवार लटकने लगी थी। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएन जोशी और कर्नाटक के राज्यपाल एचआर भारद्वाज, नागालैण्ड के अश्विनी कुमार इस्तीफा दे चुके हैं। केरल की राज्यपाल शीला दीक्षित पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव की छुट्टी होना भी तय है। ये सब यूपीए के कार्यकाल में राजनीतिक आधार पर राज्यपाल पद पर नियुक्ति पाने वालों में राजस्थान मूल के हरियाणा के राज्यपाल जगन्नाथ पहाडिय़ा का नाम भी बदले जाने वाले में शुमार है। इनके अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक और झारखंड के राज्यपालों को भी बदला जा सकता है।
कर्नाटक और गुजरात के राज्यपालों ने कांग्रेस उच्च कमान से कहा कि वे अपने पद छोडऩा चाहते हैं। राज्यपालों को बदले जाने की कवायद के दूसरे चरण में पंजाब के राज्यपाल और पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल के साथ ही उत्तराखंड और तमिलनाडू के राज्यपालों को भी बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। देश में 18 राज्यपाल ऐसे हैं जिन्हें कांग्रेस ने नियुक्त किया था और वे सभी कांग्रेस उच्च कमान के निर्देश का इंतजार कर रहे हैं। ये सभी पार्टी के पुराने पदाधिकारी अथवा केन्द्र सरकार में मंत्री रहे हैं। इनमें से पूर्व कानून मंत्री और फिर कर्नाटक के राज्यपाल बनाए गए हंसराज भारद्वाज और गुजरात की राज्यपाल डॉ. कमला बेनीवाल का कार्यकाल पूरा होने वाला है। इन दोनों की अपने राज्य के मुख्यमंत्रियों से नहीं बनी। हरियाणा के राज्यपाल जगन्नाथ पहाडिय़ा, हिमाचल प्रदेश की उर्मिला सिंह, असम के जानकीवल्लभ पटनायक, महाराष्ट्र के के. शंकरनारायण, उत्तर प्रदेश के बीएल जोशी और पंजाब के शिवराज पाटील ऐसे राज्यपाल हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल के चार साल पूरे कर लिये हैं। तीन राज्यपालों ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष ही पूरा किया है। ये हैं बिहार के राज्यपाल डी वाई पाटिल, नागालैंड के अश्विनी कुमार और उड़ीसा के सी जमीर ने अभी तीन साल ही पूरे किये हैं। शीला दीक्षित ने अभी हाल ही में केरल के राज्यपाल का पद संभाला है और सिक्किम के राज्यपाल एसडी पाटील को साल भी पूरा नहीं हुआ।
सत्ता में बदलाव के साथ ही राज्यपालों का बदला जाना कोई नई वात नहीं है। कांग्रेस के नेतृत्व में सत्ता में आई यूपीए सरकार ने भाजपा से संबंध रखने वाले राज्यपालों को हटा दिया था। तब जिन राज्यपालों ने तुरंत पद छोड़ा था उनमें केदारनाथ साहनी भी थे जो सिक्किम और गोवा के राज्यपाल थे। उनकी तरह ही कैलाशनाथ मिश्र की भी छुट्टी की गई थी। ये दोनों वरिष्ठ भाजपा नेता थे। संघ के प्रचारक रहे विष्णुकांत शास्त्री को भी हटा दिया गया था और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना और रामा जोइस ने बिहार के राज्यपाल पद को खुद ही छोड़ दिया था। भाजपा के नेता बाबू परमानंद को हरियाणा के राज्यपाल के पद से 2004 में हटा दिया गया था।