05-Jul-2014 06:34 AM
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वर्ष 2009 में जब छत्तीसगढ़ की विधानसभा में सत्तापक्ष के देवजी पटेल ने आईएफएस की प्रतिनियुक्ति का मामला उठाया तो उन्हें तत्कालीन वन मंत्री विक्रम उसेन्डी ने आश्वस्त किया था कि

आईएफएस की प्रतिनियुक्ति अस्थाई है और आईएएस की कमी पूरी होने पर आईएफएस को उनके मूल विभाग में लौटा दिया जाएगा। किन्तु 5 वर्ष बीत गए। भाजपा तीसरी बार सत्ता में आ गई लेकिन आईएफएस को प्रतिनियुक्ति पर आईएएस की जगह देने का सिलसिला जारी है। ताजा विवाद वन सेवा के अधिकारी संजय शुक्ला को फिर से हाउसिंग बोर्ड में आयुक्त बनाने से उत्पन्न हुआ है।
आईएएस ऐसोसिएशन ने इस पर आपत्ति जताई है और इस आपत्ति के बाद आईएफएस ऐसोसिएशन के अध्यक्ष संजय शुक्ला ने कहा है कि यह सरकार का फैसला है। सरकार इसकी वजह आईएएस अधिकारियों की कमी बता रही है। लेकिन आईएएस ऐसोसिएशन का कहना है कि महत्वपूर्ण पदों पर तो आईएएस को ही बिठाया जाना चाहिए विशेष रूप से हाउसिंग बोर्ड आयुक्त जैसे पदों पर आईएफएस को नियुक्त करने का विरोध किया जा रहा है। यह सच है कि प्रदेश में आईएएस अफसरों की कमी है इस वजह से राज्य सरकार आईएफएस अफसरों को काडर और नान काडर पोस्ट में प्रतिनियुक्ति कर रही है। इसमें कई आईएफएस अफसर प्रमुख सचिव स्तर के पदों पर प्रतिनियुक्ति पर हैं।
यही वजह है कि आईएएस अफसर इसके खिलाफ हैं। 1984 से 1989 के बैच के आईएफएस अफसरों की बड़ी संख्या में हैं। ऐसे अफसर देश भर में प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसमें भारत सरकार में भी कुछ आईएफएस प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे हैं। जब आईएएस अफसर पर्याप्त मात्रा में हो जाएंगे तो आईएफएस अफसरों की जरूरत नहीं होगी। ऐसे में कैडर पद में कैडर पद के अफसर ही नियुक्ति किए जाएंगे। राज्य और केन्द्र सरकार के लिए प्रतिनियुक्ति का कोटा तय है। राज्य में 22 पद प्रतिनियुक्ति के लिए तय है, लेकिन इससे अधिक आईएफएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने कुछ समय पूर्व तीसरी पारी में अब तक की बड़ी प्रशासनिक सर्जरी करते हुए 17 आईएएस, 5 आईएफएस व 4 राप्रसे के अफसरों की नयी नियुक्तियां की थी। इस फेरबदल में आईएफएस अफसरों को आईएएस वाले पदों पर नियुक्ति कर उनका कद बढ़ाया गया था। तो कनिष्ठ आईएएस अफसरों को भी वरिष्ठतम पदों पर बिठाया गया था। इसके पीछे मुख्य कारण कैडर में सचिव स्तर के आईएएस अफसरों की कमी रही है। इसी कमी के चलते गत वर्ष मई में प्रमुख सचिव स्तर के अफसर केडीपी राव को संभागायुक्त बिलासपुर पदस्थ किया गया था। इसका प्रतिकार करते हुए राव ने कैट, हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक संघर्ष किया अंतत: उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले गत मार्च में पदभार लेना पड़ा। हालांकि इस नियुक्ति के पीछे भी कुछ शीर्ष अफसरों की नाराजगी को कारण बताया गया था।
राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में आईएएस अफसरों की कमी का सबसे ज्यादा फायदा आईएफएस अफसरों को मिला। राज्य के कई विभागों और निगम-मंडलों की कमान उनके हाथ में आ गई। तत्कालीन प्रशासनिक परिवेश से तालमेल नहीं बिठा पाने के कारण कई आईएएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर केंद्र शासन की सेवा में चले गए। इससे कमी में और इजाफा हुआ। वन विभाग आईएफएस से खाली होता गया। सबसे पहले मुख्य वन संरक्षक के. सुब्रमणियम ने विभाग छोड़ा। पहली बार बनी भाजपा सरकार ने उन्हें 19 दिसम्बर 2003 को मुख्यमंत्री का सचिव बनाया। इसके बाद शुरू हुआ प्रतिनियुक्ति का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
वन विभाग में प्रतिनियुक्ति के कई पैरोकार भी हैं। उनका कहना है कि अफसरों की कमी के बावजूद कोई डिवीजन व सर्किल खाली नहीं है। सभी में अफसर पदस्थ हैं। वैसे भी मौजूदा कॉडर में से दस-दस फीसदी को केंद्र व राज्य में प्रतिनियुक्ति पर भेजने का प्रावधान है। इसके बाद तीन-चार फीसदी को अध्ययन अवकाश पर भेजा जा सकता है। आईएफएस का कहना है कि राज्य में आईएएस अफसरों की कमी होने के बावजूद सरकार उन्हें प्रतिनियुक्ति पर केंद्र शासन भेज रही है।
वन सेवा के अधिकारियों को नवाजने का सिलसिला प्रारंभ से ही चल रहा है। इसी वर्ष अप्रैल में छत्तीसगढ़ सरकार ने आईएफएस अधिकारी प्रताप सिंह चिकित्सा शिक्षा विभाग का मुखिया बना दिया। इस तरह की नियुक्तियों से आईएएस खफा हैं हाल ही में आईएएस ऐसोसिएशन की एक बैठक हुई थी जिसमें 24 आईएएस अफसर शामिल हुए थे। इस बैठक में मुद्दा यह उठा कि आईएएस कॉडर पोस्ट पर गैर आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति क्यों की जा रही है और केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्छुक अफसरों की मांग भी नहीं मानी जा रही है। दरअसल दो अधिकारियों को राज्य सरकार ने जाने से रोक लिया था जिसका विरोध किया गया। कुछ अधिकारी प्रशिक्षण पर जाने की अनुमति न मिलने से भी खफा थे। पहले जब सरकार ने आईएफएस अफसरों को आईएएस कॉडर वाले पदों पर बिठाया तो इसे चुनाव से जोड़कर देखा गया लेकिन अब नए सिरे से सरकार जिस तरह आईएफएस अधिकारियों का कद बढ़ाने में लगी है उससे तनातनी बढ़ती जा रही है।