भिलाई हादसा जिम्मेदार कौन?
19-Jun-2014 02:53 PM 1234949

भिलाई स्टील कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस ने दो डीजीएम सहित छह लोगों की जान ले ली।  इस घटना के बाद भगदड़ भी मची और एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई 34 घायल हो गये 12 घायलों की हालत गंभीर है। यह दुर्घटना बड़ी भी हो सकती थी लेकिन गनीमत रही कि इसका दायरा सीमित रहा।
हर दुर्घटना लापरवाही के चलते ही होती है। भिलाई स्टील प्लांट में बहुत सी जगहें ऐसी हैं जहां बिना मास्क के और पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम के जाना नहीं चाहिये लेकिन लगता है नियमों की अनदेखी की जाती है।  कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस के शिकार बने वाटर मैनेजमेंट विभाग के डीजीएम इंचार्ज बी.ए. सिंह, एन.सी. कटारिया, चार्जमैन ए. सैमुअल, सीनियर ऑपरेटर वाय.एस. साहू, फायरमैन रमेश कुमार शर्मा और ठेका श्रमिक विकास वर्मा।  यह हादसा किसी ब्लास्ट के वजह से नहीं गैस रिसाव की वजह से हुआ। भिलाई स्टील प्लांट में कार्बन मोनो ऑक्साइड भारी मात्रा में बनती है क्योंकि भट्टियों में कोयला जलता है। इस गैस को सुरक्षित तरीके से गैस सिलिंग प्लांट जीसीपी में डालना होता है यह प्रक्रिया अत्यंत सावधानीपूर्वक संपन्न की जाती है। नियमत: जीपीसी के आसपास जहां गैस तेजी से रिस सकती है और जहां ऑक्सीजन कम रहती है वहां मास्क पहनकर ही जाना चाहिये। यूरोपीय देशों में जो सुरक्षा मानक हैं उनमें स्टील प्लांट और कोयला प्लांट में मास्क तथा हेलमेट हर कर्मचारी के लिये अनिवार्य हैं। लेकिन भिलाई में उन लोगों को बचने का मौका ही नहीं मिला।
रिसाव होते ही कार्बन मोनो ऑक्साइड उनके फेफड़े में समा गई और चंद सेकेंड में ही उन लोगों की धड़कनें रुक गईं। कार्बन मोनो ऑक्साइड से पहले दम घुटता है तो लगता है कि गर्मी ज्यादा हो गई है। इसीलिये इसकी चपेट में आने वाला व्यक्ति पानी पीकर संयत होने की कोशिश करता है लेकिन इतनी देर में यह गैस फेफड़े में पहुंचकर नुकसान करना शुरू कर देती है और बेहोशी के चंद मिनटों में ही मौत आ जाती है। इसका 100 मिलीग्राम डोज मनुष्यों के लिये जानलेवा है। लेकिन भिलाई में तो लगता है इतना प्रतिष्ठित स्टील प्लांट किसी बेल्डिंग शॉप की तरह चलाया जा रहा है। जब गैस रिस गई उसके बाद भी बचाव करने वालों के पास मास्क नहीं थे। उन्होंने रुमाल को गीला करके नाक और मुंह से बांधा और रेसक्यु ऑपरेशन शुरू किया। जवानों का दम घुट रहा था इसलिये बारी-बारी से वे पंप हाउस में जा रहे थे। यदि मास्क होते तो कोई भी जान नहीं जाती। ब्लॉस्ट फर्नेंस में जब गैस रिसती है तो ऊपरी की तरफ उठती है। भिलाई में भी ऐसा ही हुआ। ऊपर जिन कबूतरों ने डेरा डाला था वे मर-मर कर गिरने लगे। बाद में लोगों की मौत हो गई। जो बचाने पहुंचे उनमें से भी बहुत से बेहोश हो गये। सीआईएसएफ के जवान नहीं होते तो हादसा और भी बड़ा हो जाता। इतने बड़े प्लांट में जहां एक समय में 27 हजार कर्मचारी भीतर काम करते हैं और ठेका श्रमिकों तथा अन्यों को मिला दिया जाये तो संख्या 80 हजार के पार हो जाती है

ऐसे हुआ हादसा

बीएसपी में गैस सिलिंग प्लांट (जीसीपी)है, जहां पंप हाऊस नंबर-2 से पानी भेजा जाता है। पंप हाऊस ग्राउंड लेवल से 35 फीट नीचे है। सप्लाई के समय फोर्स के साथ पानी जीसीपी में जाता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि किसी कारण से पानी का फ्लो रुक गया और जीसीपी की गैस रिवर्स आई। पानी और गैस एक साथ आने से पाइप का हिट बढ़ गया और इसमें ब्लास्ट हो गया। इसके बाद खतरनाक कार्बन मोना ऑक्साइड गैस का रिसाव होने लगा।

बीएसपी में हो चुके हैं कई हादसे

  • 9 जनवरी 1986 को कोक ओवन में गैस रिसाव हुआ था। इसमें 15 कर्मचारियों की मौत हो गई थी। सैकड़ों घायल हुए थे।
  • 29 मई 1993 को संयंत्र के भीतर दीवार गिरने से छह महिला मजदूर की मौत हो गई थी। सभी तेज हवा से बचने के लिए दीवार के किनारे खड़ी थीं।
  • 2008 में एमएसडीएस-1 में एक कर्मचारी की मौत हुई थी और कुछ लोग घायल हो गए थे। इसके बाद एक-दो कर्मियों की मौत की कई घटनाएं हो चुकी हैं। > संयंत्र में हर साल       फैडल

    एक्सीडेंट में औसतन सात श्रमिकों की मौत हो रही है।
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